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उत्तराखंड के माननीय सांसदों के नाम खुला पत्र

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माननीय सांसद महोदय,

आप सुविज्ञ हैं कि टिहरी जल विकास निगम की स्थापना देश की महत्वाकांक्षी टिहरी बाँध परियोजना के निर्माण के लिए की गयी थी। इस परियोजना के प्रथम और द्वितीय चरण से 1400 मेगावाट बिजली उत्पादन हो रहा है। 1000 मेगावाट के अंतिम चरण का निर्माण कार्य जारी है।

इस बीच निगम का नाम परवर्तित कर टीएचडीसी इंडिया कर दिया गया है। केंद्र सरकार ने हाल में टीएचडीसी के विनिवेश का फ़ैसला लिया है। बेशक यह नीतिगत मामला है। लेकिन इस निर्णय के साथ ऐसी कौन सी शर्तें शामिल हैं, जिनसे टिहरी बांध प्रभावितों  और उत्तराखंड तात्कालिक हित प्रभावित होते हैं, इस पर भ्रम बना हुआ है।केंद्र,उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने स्थिति स्पष्ट करनी जरूरी नहीं समझी है।

केन्द्र सरकार ने 19 जुलाई 1990 में टिहरी बांध परियोजना को सशर्त मंजूरी दी थी। बांध की सुरक्षा, स्थायित्व के साथ निम्न प्रमुख शर्तें निम्नवत हैं।

  1.  बांध विस्थापितों का उचित पुर्नवास, जिसमें उनके जीवन स्तर में बेहतरी सुनिश्चित हो।
  2. जलागम क्षेत्र का उपचार।
  3. सिंचाई आच्छादन क्षेत्र (कमांड एरिया )का विकास।
  4. वनस्पति तथा प्राणी जगत
  5. आपदा प्रबंधन योजना
  6. जल संग्रहण क्षेत्र के स्वपोषणीय विकास के लिए भागीरथी नदी घाटी घाटी विकास प्राधिकरण के गठन।

केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि इन शर्तों पर इंजीनियरिंग कार्यों के साथ-साथ अमल नहीं होने पर बांध निर्माण कार्य रोक दिया जाएगा। इंजीनियरिंग कार्य चलते रहे।अन्य कार्यों को निगम ज्यादातर आंकड़ों में ही(Pari passu) होना दिखाता रहा  है।

निवेदन है कि टीएचडीसी इंडिया जब तक टिहरी बांध जल संग्रहण क्षेत्र और सभी प्रभावितों के हितों को अपना दायित्व पूरा नहीं करती तब तक इस कम्पनी के भाग्य पर कोई निर्णय लेना न्यायसंगत नहीं होगा।कम्पनी में केंद्र और उत्तरप्रदेश सरकार की क्रमशः 75:25 फीसदी हिस्सेदारी है । उत्तराखंड राज्य को यूपी के हिस्से में विधि सम्मत हिस्सेदारी नहीं दी गयी है।यह अन्याय है।इसके लिए जिम्मेदार कौन है? 

विनम्र निवेदन है कि केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करवाया जाए कि विनिवेश प्रक्रिया सम्पन्न करने से पूर्व टीएचडीसी के सभी दायित्व पूरे करवाए जाएं। शतों पर अमल के उसके दावों की उच्चस्तरीय जांच की जाए। टीएचडीसी के पास उत्तराखंड की सम्पत्तियां उत्तराखंड को वापस दिलाई जाएं और टिहरी के वाशिन्दों के त्याग के सम्मान में टीएचडीसी में उत्तराखंड को हिस्सेदारी दी जाए इससे कम्पनी पर कोई निर्णय लेने से पहले उत्तराखंड के लोगों, सरकार एवं जन-प्रतिनिधियों की सलाह, सहमति आवश्यक होगी।

सादर,

विक्रम बिष्ट एवं प्रार्थी


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