टीएचडीसी इंडिया: अब खा माछा

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विक्रम बिष्ट

कहते हैं बड़ा माछा छोटे माछे को खा जाता है। बेचारी टीएचडीसी पर यह नियम भारी पड़ रहा है। टिहरी बांध का पहला चरण पूरा होते-होते टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कार्पोरेशन की महत्वाकांक्षा आसमान छूने लगी। उसे टिहरी छोटी लगने लगी। पहले कम्पनी के नाम से टिहरी शब्द हटाया गया। कहा गया कि यह अब ग्लोबल कम्पनी बनने जा रही है। जिस तरह कम्पनी के छोटे बड़े साहब  समस्या ग्रस्त विस्थापितों की क्षुद्र शिकायतों को फुरसत के साथ (न) सुनते थे, उसी तरह टिहरी की पहचान भी उन्हें असहज लगने लगी थी।   

पुनर्वास, पर्यावरण, वनस्पति, आपदा, विकास के आधे-अधूरे और कुछ कागज़ी आंकड़े गढ़ कर टीएचडीसी ने सरकारों को समझा दिया कि उसने सब कुछ बढ़िया कर दिया है। कम्पनी को उत्तराखंड के अलावा यूपी, महाराष्ट्र, गुजरात और केरल के साथ पड़ोसी देश भूटान में भी बिजली पैदा करने के ठेके मिल गये। ग्लोबल कम्पनी बनने की महत्वाकांक्षा में कम्पनी प्रबंधन के आला मैनेजर शायद भूल गये की देश में ग्लोबल कोई और है

बहरहाल अब कांग्रेस टीएचडीसी की बिक्री पर घड़ियाली आंसू बहा रही है। जबकि कम्पनी की इस उछल-कूद की वह सबसे बड़ी प्रशंसक समर्थक रही है। हुआ यूँ कि छोटी माछी को खुशफहमी हुई कि अब वह गदेरे से बाहर सीधे समुद्र में तैरने की हैसियत में है! उसने उछाल मारी धड़ाम से नदी में जा गिरी जहां बड़ा माछा इसी ताक में था।


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