*जानकारी*

*जानकारी*
Please click to share News

📯 अपामार्ग एक दिव्यऔषधीय पादप है। इसका वैज्ञानिक नाम अचिरांथिस अस्पेरा है। यह चिरचिटा, चिड़चिड़ा, ओंगा और लटजीरा आदि नामों से जाना जाता है औऱ देश के लगभग हर हिस्से मिल जाता है। यह पौधे 10-15 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेते हैं । अपामार्ग की ऊंचाई लगभग 60 से 120 सेमी होती है। आमतौर पर लाल और सफेद दो प्रकार के अपामार्ग देखने को मिलते हैं। सफेद अपामार्ग के डंठल व पत्ते हरे रंग के, भूरे और सफेद रंग युक्त होते हैं जबकि लाल अपामार्ग का डंठल लाल रंग का और पत्तों पर भी लालिमा होती हैं। इस पर बीज नुकीले कांटे के समान लगते है इसके फल चपटे और कुछ गोल होते हैं दोनों प्रकार के अपामार्ग के गुणों में समानता होती है फिर भी सफेद अपामार्ग श्रेष्ठ माना जाता है इनके पत्ते गोलाई लिए हुए 1 से 5 इंच लंबे होते हैं चौड़ाई आधे इंच से ढाई इंच तक होती है- पुष्प मंजरी की लंबाई लगभग एक फुट होती है, जिस पर फूल लगते हैं, फल शीतकाल में लगते हैं और गर्मी में पककर सूख जाते हैं। इनमें से चावल के दानों के समान बीज निकलते हैं। इसकी दो प्रजातियां होती हैं सफेद और लाल। तंत्र और आयुर्वेद दोनों में ही इसकी दोनों की प्रजातियों का उपयोग होता है।
इस वनस्पति को रवि-पुष्य नक्षत्र मे या आवश्यकता होने पर विधि पूर्वक शुभ नक्षत्र में लाकर निम्न प्रयोग कर सकते हैं

  1. इसकी जड़ को जलाकर भस्म बना लें। फिर इस भस्म का नित्य गाय के दूध के साथ सेवन करें, संतान सुख प्राप्त होगा।
  2. लटजीरे की जड़ अपने पास रखने से धन लाभ, समृद्धि और कल्याण की प्राप्ति होती है।
  3. इसकी ढाई पत्तियों को गुड़ में मिलाकर दो दिन तक सेवन करने से पुराना ज्वर उतर जाता है।
  4. इसकी जड़ को दीपक की भांति जला कर उसकी लौ पर किसी छोटे बच्चे का ध्यान केन्द्रित कराएं तो उस बच्चे को बत्ती की लौ में वांछित दृश्य दिखाई पड़ेंगे।
  5. इसकी जड़ का तिलक माथे पर लगाने से सम्मोहन प्रभाव उत्पन्न हो जाता है।
  6. इसकी डंडी की दातून 6 माह तक करने से वाक्य सिद्धि होती है।
  7. इसके बीजों को साफ करके चावल निकाल लें और दूध में इसकी खीर बना कर खाएं, भूख का अनुभव नहीं होगा
    सफेद अपार्माग का एक पौधा अपने घर में अवश्य लगाये इससे आपके घर को बुरी नज़र ऊपरी बाधा का असर कभी नहीं होने देगा। त्वचा रोग, सर्प दंश, बिच्छू डंक, कान, आख, श्वांस, खासी, दमा, अर्श रोग, भस्मक रोग, प्रसव में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसकी राख में पोटैशियम की मात्रा अधिक पाई जाती है। इसकी दातून करने से दांतों मसूड़ों का रोग तुरन्त ठीक हो जाता है और मुंह से दुर्गन्ध आना बंद हो जाता है। इस पौधे का पौराणिक महत्व भी है। ऐसी मान्यता है कि चिचिड़ी के पौधे में गंगा का वास होता है और ठाकुर जी को प्रसन्न करने के लिए चिचिड़ी की दातून करके भैंस के दूध का दही और चावल लोग खाते हैं। –डॉ0 प्रमोद उनियाल

Please click to share News

Govind Pundir

Related News Stories