डाॅ. धन सिंह रावत के स्वास्थ्य मंत्री बनने से मेडिकल प्रशिक्षित बेरोज़गारों में जगी आस

डाॅ. धन सिंह रावत के स्वास्थ्य मंत्री बनने से  मेडिकल प्रशिक्षित बेरोज़गारों में जगी आस
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लोकेंद्र जोशी

नई टिहरी। राज्य के नये मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के मंत्रिमंडल विस्तार में डाॅ. धन  सिंह रावत के स्वास्थ्य मंत्री बनने से मेडिकल प्रशिक्षुओं और उनके अभिभावकों में, रोजगार पाने की उम्मीद जगी हैं। 

उत्तराखंड राज्य में लम्बे समय से एलोपैथिक, आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक से जुड़े चिकित्सकों, फेरोसिस्टों/ पैरामेडिकल प्रशिक्षुओं और नर्सिंग से जुड़े प्रशिक्षुओं की बड़ी लंबी लाइन है । इनकी गिनती राज्य बनने से बढ़ती जा रही है और इससे जुड़े प्रशिक्षुओं की संख्या  हजारों में है। डाॅ. रावत के स्वास्थ्य मंत्री बनने से इनमें एक बार फिर सरकारी नौकरी  पाने की उम्मीद जागी है। 

उत्तर प्रदेश के जमाने में पहाड़ों में यह रिवाज था, कि गरीब घर के बच्चे किसी तरह फार्मेसी डिप्लोमा कर तत्काल सरकारी अस्पतालों में नौकरी पा जाते थे। और उसी में संतुष्ट रहकर, गांव में बीमारी का इलाज कर डॉक्टर की उपाधि पाते थे। अपने हाथों मरीजों को ठीक कर ,नाम और सम्मान के साथ खुशी खुशी से अच्छे नोट भी कमाते थे। 

धीरे-धीरे राज्य आंदोलन ने कड़े संघर्षों और दृढ़ इच्छा शक्ति के परिणामों के फलस्वरूप रफ्तार पकड़ी । जिससे राज्य के निर्माण से रोजगार पाने की बढ़ती और अधिक उम्मीदों से नौजवानों ने सरकारी नौकरी पाने के चक्कर में खूब एमबीबीएस की पढ़ाई के अलावा डॉक्टर बनने के सपनो को पंख लगाने के लिए, आयुर्वेद और होम्योपैथी से भी  डिग्रियां ली ।  इसके अलावा,कई युवकों ने आयुर्वेदिक और होम्योपैथी से फार्मेसी की पढाई और पैरामेडिकल का प्रशिक्षण लिया। इसके अलावा बीटेक, बीएड, बीपीएड, सीपीएड आदि, आदि  डिग्रियां ली।  मां बाप ने कर्ज पात कर सरकारी नौकरी की आस में बेटा बेटियों को  पढ़ाने के लिए भेजा कि अब तो राज्य बन गया ! हाँ! राज्य भी बना ! और नौकरियों की आस बलवती होती गई। एक एक कर सरकारें बनती और बिगड़ती जा रही है! लेकिन बेरोजगारों की किसी ने सुध नहीं ली। 

इस तरह एक-एक वर्ष  बीतता गया। आज राज्य निर्माण का 21वां वर्ष भी बीतने पर है, हालात बद से बदतर है। राज्य में दलालों और कलालों की संख्या में इजाफा हो का सरकारें माफियाओं के चंगुल में फंसती रही हैं।

अब राज्य का ग्यारहवां  मुख्यमंत्री होन हार युवा समझे जाने वाले श्री पुष्कर सिंह धामी काँटों का ताज पहनकर बन गए हैं। अगला वर्ष चुनाव का वर्ष भी है। मुख्यमंत्री बदलते ही मंत्रीगण भी बदलते चले आ रहे हैं। धीरे धीरे सरकारी विभागों में भरे पद सेवानिवृति के पश्चात भी खाली हो कर भारी संख्या रिक्त हो रहे हैं। स्थिति यह है कि,जिलाधिकारी के कार्यालयों में  उपजिलाधिकारी, तहसीलदार,नायब तहसीलदार,कानूनगो सहित स्टाफ की बड़ी भारी कमी से जूझ रहे हैं। 

वैश्विक महामारी कोविड -19 के गंभीर संकट के चलते और हजारों मेडिकल संबंधित प्रशिक्षितों के बावजूद भी स्वास्थ्य विभाग और राज्य का स्थानीय प्रशासन स्टाफ के अभाव में जूझ रहा है। जबकि विधायक और मंत्रिमंडल के प्रत्येक सदस्य एक एक करोड़ की निधियों पर ऐसे भीषण संकट में भी कुंडली मारकर बैठे है। राज्य की जनता को उनके हाल पर छोड़ रखा है। 

लोग स्वास्थ्य सुविधाओं और स्वास्थ्य कर्मियों के अभाव में बेमौत मारे जा रहे हैं, तब भी राज्य के अंदर और बाहर हजारों युवा रोजगार की प्रतिक्षा में बैठे हैं। जबकि उपनल, मरेगा और 108 कर्मियों को सरकार बाहर का रास्ता दिखा चुकी है। 108 सेवा कर्मी तथा राष्ट्रीय सेवा मिशन कर्मी  और उनके साथ  हजारों की संख्या में प्रशिक्षित बेरोजगार कुंठित खड़े हैं।

अब देखना होगा कि चुनावी वर्ष में इन युवाओं के सपनों को डाॅ. धन सिंह रावत हकीकत में बदलेंगे कि नहीं ? यह भविष्य के गर्त में है।


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Govind Pundir

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