उत्तराखंड ज्योतिष रत्न द्वारा विवाह एक पवित्र बंधन विषय पर दिव्य प्रवचन

उत्तराखंड ज्योतिष रत्न द्वारा विवाह एक पवित्र बंधन विषय पर दिव्य प्रवचन
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ऋषिकेश। उत्तराखंड ज्योतिष रत्न एवं श्रीमद्भागवत रत्न से सम्मानित आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल आजकल विवाह एक पवित्र बंधन विषय पर गूगल के माध्यम से दिव्य प्रवचन की अमृत वर्षा कर रहे हैं।

देश एवं विदेशों में 500 से अधिक श्रीमद् भागवत कथा प्रवचन कर चुके आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल कहते हैं कि आज जितना अधिक पढ़ा-लिखा समाज हो गया है उतने ही संबंध  विच्छेद भी हो रहे हैं और विशेष रूप से पति-पत्नी के संबंधों में तलाक होना एक आम बात हो गई है।आखिर ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारा देश कारों से तो भर गया है परंतु संस्कारों की अवमानना से गुजर रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि नई पीढ़ी को विवाह के पवित्र बंधन के संबंध में गहराई से समझाया जाए इसी पवित्र उद्देश्य से उनके प्रवचन चल रहे है।

आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने कहा

कि-

विवाह के समय पति-पत्नी अग्नि को साक्षी मानकर एक-दूसरे को सात वचन देते हैं जिनका दांपत्य जीवन में काफी महत्व होता है। आज भी यदि इनके महत्व को समझ लिया जाता है तो वैवाहिक जीवन में आने वाली कई समस्याओं से निजात पाई जा सकती है इन्हीं सात वचनों की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि वे सात वचन इस प्रकार से हैं-

1. तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी!। 

(यहां कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)

किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नी का होना अनिवार्य माना गया है। पत्नी द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नी की सहभागिता व महत्व को स्पष्ट किया गया है।

2. पुज्यो यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम!!

(कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)

यहां इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रख वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।

3. जीवनम अवस्थात्रये पालनां कुर्यात

वामांग यामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृतीयं!

(तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे यह वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं।)

4. कुटुम्ब पालन सर्व कार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थ:।

(कन्या चौथा वचन यह मांगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिंता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जब कि आप विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दा‍यित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतिज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूं।) 

इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उत्तरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृष्ट करती है। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए, जब वह अपने पैरों पर खड़ा हो, पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।

5. स्वसद्यकार्ये व्यहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्‍त्रयेथा

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या!!

(इस वचन में कन्या कहती जो कहती है, वह आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्व रखता है। वह कहती है कि अपने घर के कार्यों में, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मंत्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)

यह वचन पूरी तरह से पत्नी के अधिकारों को रेखांकित करता है। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढ़ता ही है, साथ-साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है।

6. न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्वेत

वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम!!

(कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्‍त्रियों के बीच बैठी हूं, तब आप वहां सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आपको दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।) 

7. परस्त्रियं मातूसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कूर्या।

वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तमंत्र कन्या!!

(अंतिम वचन के रूप में कन्या यह वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगे और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगे। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)  

इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है।

“स्मरणीय है कि आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल राज्य लोक सेवा आयोग से चयनित संस्कृत प्रवक्ता है। उन्हें शिक्षा विभाग में प्रथम गवर्नर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही उन्हें उत्तराखंड ज्योतिष रत्न संस्कृत द्वारा ज्योतिष विभूषण ज्योतिष वैज्ञानिक जैसे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान से विभूषित किया जा चुका है।


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Govind Pundir

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