कविता: योग* *मिटोदु* *रोग*

कविता: योग* *मिटोदु* *रोग*
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योग दिवस पर मन कु कबलाट आपैं सेवा मा सादर एवं मार्गदर्शन वास्ता भी

हैं दिदा मेरी भी सुण धैं 

क्षणिक छ यु शरीर दिदा

सुबेर खणा उठीक कर योग

किलै कि योग मिटोदु रोग

डांडि काठियों की हवा

ओणी छ सुरबुट डिड्याला खलियाण मा

तु एक दिन चाखण त अउ खलियाण मा

किलैं कि योग मिटोदु रोग

डिन्डयाला मा चाही तू देवतों कु ध्यान कर

चाही तु छोटु मोटु प्राणायाम कर

यु शरीर छ नाजूक दिदा तु कर योग 

किलैं कि योग ही मिटोदु रोग

चाही तु  डिडांयाला मा घुमदी रा 

चाही तु बैठीक अपणा ईष्ट कु ध्यान कर 

मेरी लाटी काली अक्ल मानी कर

किलैं कि योग मिटोदु रोग

गों गुठियार खाली ह्वैगी दिदा

खैती बाड़ी भी होदी नि होली

भली मिठ्ठि दवैं मिलदी नि  दिदा

 अबत योग करीतैं ही मिटला रोग

योग करी एक ताकत औदी

मांसपेशियां भी मजबूत होंदी

जर्र बुखार भी जड सी मिटोदी

किलैं कि योग मिटोदु रोग

तुम आज संकल्प लिया धैं

सुबेर कु एक घंटा योग करा धैं

*धूल* भी यें कारण करनु प्रार्थना 

किलै कि योग मिटोदु रोग                         

  • नवीन जोशी, साहित्यकार ग्राम कोट पोस्ट थौलधार उदयपुर

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Govind Pundir

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