पौराणिक मौण मेले में उमड़ी भीड़, नदी में 4-5 किमी तक मछलियों को पकड़ते रहे ग्रामीण

पौराणिक मौण मेले में उमड़ी भीड़, नदी में 4-5 किमी तक मछलियों को पकड़ते रहे ग्रामीण
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नई टिहरी। यमुना नदी की सहायक अगलाड़ नदी में रविवार को ऐतिहासिक राज मौण मेला धूमधाम से मनाया गया। कोविड काल की वजह से दो साल के अंतराल के बाद मनाये गये मेले में टिहरी जिले के जौनपुर विकास खंड, देहरादून के जौनसार, उत्तरकाशी जिले के गोडर-खाटर क्षेत्र, विकास नगर व मसूरी सहित आसपास के लगभग 15 से 20 हजार लोगों ने सामूहिक मछली पकड़ने के इस अनूठे त्योहार में भाग लिया। दुर्भाग्य यह है कि इतने ऐतिहासिक और पौराणिक मेले में मौण स्थल तक रास्ता पूरी तरह से क्षतिग्रस्त होने पर शासन प्रशासान के प्रति लोगों में भारी आक्रोश है। 

1866 में टिहरी नरेश ने किया था शुभारंभ

आपको बता दें कि मौण मेले का शुभारंभ 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने किया था। तब से जौनपुर में निरंतर मेले का आयोजन किया जाता है। क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि इसमें टिहरी नरेश स्वयं अपने लाव लश्कर एवं रानियों के साथ मौजूद रहते थे। मौण मेले में सुरक्षा की दृष्टि से राजा के प्रतिनिधि उपस्थित रहते थे। सामंतशाही के पतन के बाद सुरक्षा का जिम्मा ग्रामीण स्वयं उठाते हैं और किसी भी प्रकार का विवाद होने पर क्षेत्र के लोग स्वयं मिलकर मामले को सुलझाते हैं। 

हर साल जून अंतिम सप्ताह में होता है मेला

प्रत्येक साल जून के अंतिम सप्ताह में अगलाड़ नदी में मछली पकड़ने का सामूहिक त्योहार मौण मेला मनाया जाता रहा है। मेले में क्षेत्र के हजारों ग्रामीणों के साथ ही देश-विदेश से लोग आकर शामिल होते हैं। मेले से पहले यहां अगलाड़ नदी में टिमरू के छाल से निर्मित पाउडर डाला जाता है। इससे मछलियां कुछ देर के लिए बेहोश हो जाती हैं। इसके बाद उन्हें पकड़ा जाता है। इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुण्डियाड़ा, फटियाड़ा, जाल तथा हाथों से पकड़ते हैं, जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती हैं, वह बाद में ताजे पानी में फिर जीवित हो जाती हैं। एक स्थानीय ग्रामीण ने बताया की इस ऐतिहासिक त्योहार में टिमरू का पाउडर डालने की बारी हर साल का जिम्मा सिलवाड़, लालूर, अठज्यूला और छैजूला पट्टियों का होता है।

टिमरू की छाल से बना पाउडर डालकर मछलियों को किया जाता है बेहोश

मछलियों को बेहोश करने के लिये औषधीय पादप टिमरू की छाल से बने महीन पाउडर का प्रयोग किया जाता है। जिसको तैयार करने की जिम्मेदारी अलग अलग पट्टियों की होती है। इस बार सिलवाड़ पट्टी के खरसोन, खरक, सुरांसू, बणगांव, जैद्वार तल्ला व मल्ला, टटोर, फफरोग, चिलामू, पाब, कोटी, मसोन व संड़ब गांव के ग्रामीणों ने टिमरू पावडर तैयार किया था।

रविवार को दिल्ली-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग 507 के अगलाड़ पुल से लगभग चार किमी ऊपर मौण कोट नामक स्थान पर सुबह से ही पांतीदार गांवों के ग्रामीण टिमरू पावडर लेकर एकत्रित होने शुरू हो गये थे। सभी पांतीदारों की मौजूदगी में विधिवत पूजा अर्चना व टिमरू पावडर का टीका करने के बाद नदी में टिमरू पावडर डालते ही ग्रामीण नदी में मछलियां पकड़ने कूद पडे़ और लगभग चार किमी तक मछलियां पकड़ते रहे। 


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Garhninad Desk

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