मानव ही पृथ्वी को नस्ट कर रहे हैं पृथ्वी को बचाना होगा- डॉ. हृदयेश कुमार

मानव ही पृथ्वी को नस्ट कर रहे हैं पृथ्वी को बचाना होगा- डॉ. हृदयेश कुमार
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(विश्व पर्यावरण दिवस विशेष – 05 जून 2023)

अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के संस्थापक
डॉ. हृदयेश कुमार ने विश्व पर्यावरण दिवस विशेष चर्चा करते हुए बताया कि पर्यावरण पृथ्वी पर जीवन का आधार है। सभी सजीव और निर्जीव तत्वों से मिलकर पर्यावरण बना हैं। पशु पक्षी, पेड़, जंगल, समुद्र, पहाड़, हवा, खनिज और यह सभी पर्यावरण का हिस्सा है। पर्यावरण को जीवन के अनुकूल बनाये रखना हम सबकी जिम्मेदारी है, परन्तु पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान मनुष्य ही पहुँचाता है। पर्यावरण के प्रति जागरूकता के लिये हर साल 5 जून को “विश्व पर्यावरण दिवस” एक नई थीम के साथ दुनियाभर में मनाया जाता है। इस वर्ष 2023 की थीम प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान पर केंद्रित है। प्लास्टिक प्रदूषण दुनियाभर में बहुत बड़ी समस्या बनकर उभरा है। हर साल तकरीबन 40 करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है, उसमें से आधे का केवल एक बार उपयोग किया जाता है। आज हम माइक्रोप्लास्टिक खा रहे, पी रहे और ऑक्सीजन में भी प्लास्टिक मिश्रित दूषित हवा ले रहे है, जिसके कारण हर 30 सेकंड में एक मौत हो रही है। जलवायु परिवर्तन में प्लास्टिक प्रदूषण का बहुत बड़ा योगदान है। प्रदूषण के कारण पर्यावरण का संतुलन लगातार बिगड़ रहा है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग, बीमारियां, प्राकृतिक आपदा जैसी समस्या बढ़ी है, परिणामत मानव जीवन के लिए खतरा निर्माण हो गया है। प्लास्टिक जानवरों को मारता है, मिट्टी को प्रदूषित करता, प्लास्टिक की थैलियां नालियों को बंद कर देती हैं। प्लास्टिक प्रदूषण से बांझपन, मोटापा, मधुमेह, प्रोस्टेट या स्तन कैंसर, थायरॉयड की समस्याएं, हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। टियरफंड के नए शोध के अनुसार, प्लास्टिक की समस्या से दुनिया भर के विकासशील देशों मे प्लास्टिक प्रदूषण से समुद्री जीवन तबाह :- पृथ्वी के 71% भाग में पानी है और कुल पानी का 97% पानी समुद्र में है, मानव गतिविधियों के परिणामस्वरूप समुद्री प्रदूषण पर्यावरण के लिए घातक हैं। हर मिनट दो बड़े भरे हुए ट्रक जितना प्लास्टिक कचरा महासागरों में फेंका जाता हैं। यूनोमिया 2016 अनुसार, हर साल 12 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र में फेंक दिया जाता है और हर साल महासागरों में बहने वाले प्लास्टिक कचरे की मात्रा साल 2040 तक 29 मिलियन मीट्रिक टन होने की संभावना है। विभिन्न रूपों में माइक्रोप्लास्टिक दुनिया की लगभग सभी जल प्रणालियों में मौजूद हैं। मारियाना ट्रेंच स्थान में 36,000 फीट गहराई पर भी प्लास्टिक पाया गया है। आईयूसीएन 2020 अनुसार, समुद्री मलबे का 80% सिर्फ प्लास्टिक कचरा है। महासागरों में 2025 तक मछली के मुकाबले एक तिहाई प्लास्टिक मिलेगा और 2050 तक महासागरों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, प्लास्टिक हर साल अनुमानित 10 लाख समुद्री पक्षियों और 1 लाख समुद्री जीवों को मारता है और वैज्ञानिकों का मानना है कि यही दर रही, तो दुनिया की 99% समुद्री पक्षी प्रजातियां 2050 तक प्लास्टिक खा रही होंगी। प्लास्टिक से कोरल रीफ पर बीमारी की संभावना 22 गुना बढ़ जाती है। समुद्री जीवों में प्लास्टिक विषाक्तता खाद्य श्रृंखला को खत्म कर रही हैं, जिसमें विनाशकारी स्वास्थ्य प्रभावों की संभावना है।

प्लास्टिक खा रहे, पी रहे और प्लास्टिक की हवा में सांस ले रहे :- पकड़ी जाने वाली हर तीन में से एक मछली में अब प्लास्टिक होता है। खाद्य श्रृंखला के आधार पर कई जानवर माइक्रोप्लास्टिक्स खाते हैं, फिर उनको दूसरे जीव खाते है, मनुष्य भी उन जीवों को खाते हैं। वैज्ञानिकों ने 114 समुद्री प्रजातियों में माइक्रोप्लास्टिक पाया है, और इनमें से लगभग एक तिहाई प्रजाति मनुष्य के खाद्य के रूप में जानी जाती हैं। कृषि मिट्टी के भीतर भी प्लास्टिक टूटकर माइक्रोप्लास्टिक्स के रूप में दबा रहता है। लैंडफ़िल में गहरे दबे प्लास्टिक कचरे से हानिकारक रसायन निकल सकते हैं जो भूजल में फैल सकते हैं। हमारे लैंडफिल में 20 लाख टन से अधिक पानी की बोतलों का ढेर लगा हुआ है। प्लास्टिक अनजाने तरीके से हमारी थाली में पहुंचता है, निष्कर्ष से पता चला है कि हम हर साल हजारों प्लास्टिक कणों को निगलते हैं। प्लास्टिक में उपलब्ध खाद्य पदार्थ, डिब्बाबंद खाद्य सामग्री से भी प्लास्टिक हमारे शरीर में प्रवेश कर सकता है। हम बोतलबंद पानी के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक पीते हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2018 में चौंकाने वाला शोध प्रकाशित किया था, जिसमें 90% बोतलबंद पानी में माइक्रोप्लास्टिक्स की उपस्थिति का पता चला था, परीक्षण में 259 में से केवल 17 बोतलबंद पानी प्लास्टिक से मुक्त थे। खराब अपशिष्ट प्रबंधन के कारण खुली हवा में कचरा जलाने से दूषित वायु में लोग सांस लेते है। मार्च 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चलता है कि विश्व स्तर पर 5 अरब लोग कचरा संग्रहण या योग्य अपशिष्ट निपटान के बिना रहते हैं, परिणामस्वरूप प्रत्येक वर्ष लगभग 90 लाख लोग मारे जाते हैं। 1 टन प्लास्टिक के उत्पादन से 2.5 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है। हम कपड़ों के माध्यम से भी प्लास्टिक को अवशोषित करते हैं, ग्लोबल अपैरल फाइबर कंजम्पशन के शोध अनुसार, एक वर्ष में दुनिया भर में खपत होने वाले 100,000 किलोग्राम फाइबर में से 70% सिंथेटिक हैं।

प्लास्टिक जल्द नष्ट नहीं होता :- अब तक उत्पादित प्लास्टिक का हर टुकड़ा आज भी पर्यावरण में मौजूद है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ऑस्ट्रेलिया (विश्व वन्यजीव कोष) के अनुसार, प्लास्टिक के उत्पादों को पूर्णत नष्ट होने में लंबा समय लगता है, यह उनके गुणवत्ता पर निर्भर होता है जैसे – प्लास्टिक बैग को नष्ट होने में 20 साल, कॉफी कप 30 साल, प्लास्टिक स्ट्रॉ 200 साल, प्लास्टिक की बोतलें 450 वर्ष, प्लास्टिक के कप 450 साल, डिस्पोजेबल डायपर – 500 साल और प्लास्टिक टूथब्रश को नष्ट होने में साधारणत 500 साल का कालावधी लगता है। अमेरिकी प्रतिदिन 50 करोड़ से अधिक प्लास्टिक स्ट्रॉ का उपयोग करते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 1950 के दशक से अब तक 8.3 अरब टन प्लास्टिक का निर्माण किया जा चुका है। दुनिया भर में हर मिनट 10 लाख सिंगल-यूज़ प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं और सालाना 1200 अरब से अधिक प्लास्टिक की बोतलें बेची जाती हैं। पॉलीस्टाइनिन 10 लाख से अधिक वर्षों तक पर्यावरण में बना रह सकता है।

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट पर तथ्य :- द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट 2018 अनुसार, देश में कुल प्लास्टिक कचरे का केवल 60% पुनर्नवीनीकरण किया जा रहा है। भारत में लगभग 43% निर्मित प्लास्टिक का उपयोग पैकेजिंग उद्देश्य के लिए किया जाता है और प्लास्टिक की प्रति व्यक्ति औसत खपत लगभग 11 किग्रा है। सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार, कुल ठोस कचरे में प्लास्टिक का योगदान 8% है, सर्वाधिक प्लास्टिक का उत्पादन में दिल्ली, इसके बाद कोलकाता और अहमदाबाद का स्थान है। समुद्री तटों से प्लास्टिक कचरे से बरामद भारी मात्रा में जहरीली भारी धातु जैसे तांबा, जस्ता, सीसा और कैडमियम का तटीय पारिस्थितिक तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्लास्टिक मुक्त वातावरण के लिए योग्य पहल :– प्रत्येक टन प्लास्टिक कचरे के पुनर्चक्रण से लगभग 3.8 बैरल पेट्रोलियम की बचत होती है। देश के चेन्नई में जंबुलिंगम स्ट्रीट 2002 में बनी भारत की पहली प्लास्टिक सड़कों में से एक थी। 2015-16 में, राष्ट्रीय ग्रामीण सड़क विकास एजेंसी ने लगभग 7,500 किलोमीटर सड़कें प्लास्टिक कचरे का उपयोग करके बनाईं। सैन फ्रांसिस्को इंटरनेशनल एयरपोर्ट ने अगस्त 2019 से शुरू होने वाली अपनी सभी रियायतों में प्लास्टिक की पानी की बोतलों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है।

प्लास्टिक अपशिष्ट जलाना और प्लास्टिक में विशेषत गर्म खाद्यपदार्थों का उपयोग पूर्णता बंद करना होगा क्योकि प्लास्टिक जलने या गर्म होने पर जहरीला पदार्थ छोड़ता है। प्लास्टिक कचरे का योग्य प्रबंधन करने के लिए कड़े कानून बनाकर लागू करना, प्लास्टिक पैकेजिंग में वैकल्पिक पैकेजिंग का उपयोग करना होगा। रीसायकल द्वारा प्लास्टिक की वस्तुओं को नए उत्पादों में बदलना। जैव-आधारित प्लास्टिक अर्थात वनस्पति तेल, मक्का, गेहूं, सोया, आलू, चुकंदर, गन्ना जैसे नवीकरणीय संयंत्र स्रोतों से बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक विकसित करना। प्लास्टिक के निर्माण की प्रक्रिया में उपयोग करने के लिए सुरक्षित रसायनों का विकास करना जो विषाक्त नहीं हों। कंपनी और लोगों ने भी जागरूकता दिखाकर सरकारी दिशानिर्देशों नियमों का पालन करना चाहिए, प्रत्येक व्यक्ति ने खुद के स्तर पर प्लास्टिक के उपयोग को कम करते हुए उसे ख़त्म करना चाहिए। पर्यावरण को बचाने प्लास्टिक उत्पाद पर हमें अपनी निर्भरता कम करनी होगी। पर्यावरण की रक्षा ही हमारे जीवन की सुरक्षा है।


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Garhninad Desk

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