समीक्षा : गढवाली फीचर फिल्म- निखाण्यां जोग

समीक्षा : गढवाली फीचर फिल्म- निखाण्यां जोग
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  • समीक्षक – @ सोमवारी लाल सकलानी’निशांत’

“खुशनसीब परिवार था। अचानक मां का निधन हो जाता है। पिता न चाहते भी दूसरी शादी कर लेता है। विमाता का व्यवहार ठीक न रहा। पिता का रुख भी बदल गया। घर छोड़कर शहर चला गया। अथक प्रयास,परिश्रम और ईमानदारी के बल सफलता प्राप्त की। बड़ा आदमी बन गया। परिस्थितिजन्य एक गलती कर गया।जीवन बर्बाद हो गया। निराशा,बीमारी और बुरी हालत में घर लौटा और मर गया।” बस ! यही कथावस्तु तो है फिल्म निखाण्यां जोग की।

निखाण्यां जोग सामाजिक मार्मिक लघु फिल्म है। गायत्री बैनर्स के तले बनी गढ़वाली फिचर फिल्म है। पारिवारिक प्रताड़ना, रोजगार की तलाश,जीवन की आवश्यकता पूर्ति हेतु संघर्षमय जीवन की करुण दास्तान है। मेहनत और ईमानदारी से नायक को सफलता से मंजिल तक ले जाती है किन्तु छोटी सी भूूल और लापरवाही से सुखी जीवन को तबाही की ओर ले जाती है।

शिक्षाविद डॉ. मुनीराम सकलानी की कहानी पर आधारित यह दुखांत सामाजिक फीचर फिल्म है। निर्मात्री आशा मुनीन्द्र सकलानी और देबू रावत के निर्देशन में बनी यह सामाजिक फिल्म एक उत्कृष्ट फिल्म है। सभी कलाकारों ने बखूबी अपना रोल किया है लेकिन संपूर्ण फिल्म नायक के इर्द-गिर्द है घूमती है। मार्मिक दृश्यों के कारण अनेक बार आंखें नम हो जाती हैं। गढ वाली भाषा- शैली,ग्रामीण और शहरी संस्कृति की अच्छाई और बुराई, सुंदर कथोपकथन, करुण गीत और संगीत,पर्वत वादियों की मोहक छटा फिल्म को बार-बार देखने के लिए विवश करती है। हास्य कलाकारों का अभिनय, प्रीतम भरतवाण का गीत और बमुंड-सकलाना के सुंदर दृश्य मन में उल्लास जगाते हैं।

‘निखाण्यां जोग’ फिल्म में पाश्चात्य नाटकों का प्रभाव भी देखने को मिलता है।फिल्म का दु:खांत अंत होता है जबकि भारतीय फिल्मों में अक्सर यह सुखांत होता। शायद फिल्म के कहानीकार और निर्माता डॉ. सकलानी,जो अंग्रेजी में भी निष्णात हैं और अनेक भाषाओं के माने-जाने साहित्यकार हैं,उसका प्रभाव रहा हो या इससे पूर्व उन्होंने दो सच्ची फिल्म ( अमर शहीद श्रीदेव सुमन और वी सी गबर सिंह डॉक्यूमेंट्री फिल्में) बनायी हैं,वह भाव कहानी के अंत का रहा हो।

निखाण्यां जोग बहुत उत्तम पारिवारिक और सामाजिक मार्मिक फिल्म।है। बहुत मेहनत से बनाई गयी है। समाज को बड़ा संदेश देने वाली फिल्म है। जीवन के उतार-चढ़ाव,कष्ट और मेहनत,सत्संगति और कुसंगति के प्रभाव, गरीबी और भौतिकवाद का प्रभाव आदि सभी दृष्टिकोण से उपयुक्त है। किसी भी स्थिति में विवेक नही खोना चाहिए,यह भी फिल्म का उद्देश्य है।


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Govind Pundir

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