उत्तराखंड की ऊन को मिलेगी नई पहचान, भेड़पालकों को मिलेगा सीधा लाभ – “हिमालयी हर्बल ऊन” बनेगी ब्रांड

उत्तराखंड की ऊन को मिलेगी नई पहचान, भेड़पालकों को मिलेगा सीधा लाभ – “हिमालयी हर्बल ऊन” बनेगी ब्रांड
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राज्यमंत्री वीरेन्द्र दत्त सेमवाल कर रहे ऊन और हस्तशिल्प क्षेत्र का कायाकल्प

देहरादून। उत्तराखंड की पारंपरिक ऊन अब वैश्विक मंच पर “हिमालयी हर्बल ऊन” के रूप में पहचान बनाएगी। राज्य के हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास परिषद के राज्यमंत्री वीरेन्द्र दत्त सेमवाल ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भेंट कर ऊन और हस्तशिल्प उद्योग को सशक्त करने की दिशा में रोडमैप साझा किया।

श्री सेमवाल, जो टेक्सटाइल इंजीनियर हैं और पूर्व में केंद्र सरकार में सलाहकार भी रह चुके हैं, का कहना है कि प्रदेश की भेड़ें प्राकृतिक जड़ी-बूटियां खाकर पलती हैं, जिससे उनकी ऊन में औषधीय गुण होते हैं। इस विशिष्टता को अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रांड के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा।

भेड़ पालकों की पीड़ा से सरकार वाकिफ– मिलेगा उचित दाम
राज्यमंत्री ने बताया कि कई स्थानों पर भेड़पालकों को ऊन का वाजिब मूल्य न मिलने से वे इसे जंगल में फेंकने को मजबूर हैं। अब सरकार इस ऊन को बाजार से जोड़ेगी और किसानों को सीधे लाभ पहुंचाएगी।

13 जिलों में नए केंद्र, आधुनिक डिज़ाइन से जुड़ेगा पारंपरिक शिल्प
राज्य में कारीगरों को बाजार उपलब्ध कराने के लिए 13 नए शिल्प केंद्रों की योजना पर कार्य हो रहा है। साथ ही पारंपरिक डिज़ाइनों को आधुनिक रूप देकर “लोकल टू ग्लोबल” अभियान को मजबूती दी जाएगी।

तीन माह से लगातार निरीक्षण, सुधार को तैयार योजनाएं
श्री सेमवाल ने तीन महीनों में राज्य के सभी जिला उद्योग केंद्रों, ग्रोथ सेंटरों और खादी ग्रामोद्योग इकाइयों का निरीक्षण किया। कई केंद्रों में मशीनें महज मरम्मत न होने से बंद हैं, जबकि कारीगर संसाधनों के अभाव से जूझ रहे हैं। अब इन समस्याओं के स्थायी समाधान पर काम शुरू हो गया है।

राज्य का लक्ष्य– आत्मनिर्भर और समृद्ध उत्तराखंड
सरकार का उद्देश्य न केवल पारंपरिक शिल्प और जैविक संसाधनों को पहचान दिलाना है, बल्कि स्थानीय लोगों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है। “हिमालयी हर्बल ऊन” इस दिशा में एक क्रांतिकारी पहल साबित हो सकती है।


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Garhninad Desk

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