गुरु के सान्निध्य में होता है हमारे विवेक का जागरण –नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज

हरिद्वार। नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला हरिद्वार में आज गुरु पूर्णिमा महोत्सव बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया गया।
इस अवसर पर नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने अपने आशीष उद्बोधन में कहा कि मनुष्य की सबसे बड़ी योग्यता वैचारिक योग्यता है। भगवान के अनुग्रह के रूप में उसे जो विवेक प्राप्त हुआ है, वह अन्य प्राणियों के लिए उपलब्ध नहीं है। इस विवेक के प्रकाश में ही वह नित्य-अनित्य वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त कर पाता है। शरीर एक जैसा नहीं है, वह बदलता रहता है। उसमें परिवर्तन है। कोई चीज जन्म लेती है तो उसका ह्रास भी है। विवेक से इन पदार्थों की अनित्यता का बोध होता है। विवेक यह भी बताता है कि यह जगत मरणधर्मा है। नित्य वस्तु केवल सत्य है। सत्य नित्य विद्यमान सत्ता है। आप चन्द्र की घटती और बढ़ती कलाओं के साक्षी रहे हैं। हमने पतझड़ देखा है उसके बाद बसंत देखा है, यहाँ तक कि हमने अपने शरीर को भी बदलते देखा है। इसके बाद भी मनुष्य का मन इन्हीं सांसारिक एषणाओं में लगा हुआ है। मनुष्य के मन में इस बात का अज्ञात डर है कि हमारा मान-सम्मान और सुख-संपदा कहीं खो न जाए।
उन्होंने कहा कि हमारी ये आकांक्षा आज की नहीं है। हिरण्याकच्छप भी तो यही चाहता था कि मुझे कोई मार न सके। किन्तु उसका ध्यान उस सत्ता पर नहीं गया, जो काल से परे की सत्ता है, जो त्रिकालाबाधित है, जिसका किसी काल में कभी क्षय नहीं होता और वह हैं – नारायण।
नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने बताया कि व्यक्ति पदार्थों से नहीं, अपितु ज्ञान से मुक्त होता है और ज्ञान अथवा विद्या का जो दान देता है – वही गुरु है। प्रत्येक बीज में उसकी नियति अर्थात् विशाल वृक्ष छिपा हुआ है, उसे उजागर करने की आवश्यकता है। हम परमात्मा के अंशी है, इसलिए जन्म से ही हमारे अन्दर परमात्मा होने की सम्भावनाएँ विद्यमान हैं। हमारी अज्ञानता की निवृत्ति में जो मुख्य कारक तत्व है – वो गुरु हैं। अंधकार की निवृत्ति में जो सहायक है – वह गुरु है। जो दु:ख दुविधा और दैन्य को दूर करे – वो गुरु है। गुरु विचार बनकर, साधन बनकर मंत्र बनकर हमारे जीवन में प्रकट होता है। गुरु के सान्निध्य में हमारे विवेक का जागरण होता है और फिर हमारा दुर्वोध-सुबोध बना जायेगा।
गुरु पूर्णिमा की परम पवित्र बेला पर आश्रम की सकल दैव सत्ता के साथ पूज्य महाराज श्री के दिव्य सान्निध्य में सम्पन्न यह दिव्य आयोजन सनातन धर्म – संस्कृति के दिव्य मूल्यों, आध्यात्मिकता और सामाजिक कल्याण के प्रति समर्पण का एक प्रेरणादायी संगम रहा। आज इस अवसर पर बड़ी संख्या में महाराज श्री के शिष्य एवं श्रदालु उपस्थित रहे।