टिहरी हेरिटेज सीरीज #2

प्राचीन सिद्ध पीठ देवलसारी का कोनेश्वर महादेव मंदिर
- ‘‘मंदिर में जलेरी न होने के कारण आधी नहीं, पूरी की जाती है परिक्रमा।‘‘
- ‘‘आइए दर्शन करें कोनेश्वर महादेव के और आनन्द लें स्थानीय जीवनशैली का।‘‘
उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्रान्तर्गत जौनपुर ब्लॉक में एक शांत गांव देवलसारी, जो शहर की हलचल भरी दुनिया तथा मसूरी से लगभग 50 किमी दूरी पर स्थित है। प्रकृति की गोद में बसा यह गांव प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक समृद्धि और रोमांच का एक आदर्श मिश्रण है। आप चाहे प्रकृति प्रेमी हों, उत्साही ट्रेकिंग करने वाले हों या एकांत की तलाश में हों, देवलसारी आकर आप एक अविस्मरणीय अनुभव महसूस करेंगे।

देवलसारी में देवदार के घने जंगल के बीच स्थित प्रसिद्ध कोनेश्वर महादेव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर 1600 के दशक में बनाया गया था। देवलसारी मंदिर के इतिहास के बारे में पता लगाया गया तो पता चला कि यह मंदिर उत्तराखंड का ऐसा मंदिर है, जहां शिवजी ने क्रोधित होकर जंगल बनाया। स्थानीय लोगों से इस मंदिर के बनने की रोचक कहानी इस घाटी में सुनी जा सकती है। किंवदंती के अनुसार यहां के खेतों की रखवाली कर रहे एक ग्रामीण के खेत में एक साधु पहुंचा। साधु ने उस चौकीदार से कुटिया बनाने के लिए थोड़ी सी जगह मांगी, लेकिन फसल लगी होने के कारण चौकीदार ने साधू को जगह उपलब्ध कराने से मना कर दिया। इस पर साधु क्रोधित होकर वहां से चला गया। सुबह जब चौकीदार खेत में पहुंचा तो लहलहाती फसल की जगह देवदार का जंगल था। उन्होंने जंगल के बीचों-बीच एक शिवलिंग भी देखा। ग्रामीणों ने साधु को शिव का रूप मानकर यहां मंदिर बनाने का प्रयास किया, लेकिन मंदिर नहीं बन पाया। कुछ समय बाद एक ग्रामीण ने रोज सुबह शाम अपनी गाय को शिवलिंग पर दूध अर्पित करते हुए देखा तथा क्रोधित होकर उसने कुल्हाड़ी से शिवलिंग पर प्रहार किया। इस चोट से कुल्हाड़ी टूट गई और उस ग्रामीण के सिर में जा धंसी जिससे उसकी मृत्यु हो गई। गांव वाले समझ गए कि भोलेनाथ नाराज हो गए हैं। कुछ समय बाद एक ग्रामीण को सपने में उसी साधु के रूप में शिव भगवान ने दर्शन दिए और देवदार के बीच एक मंदिर बनाने और डोली निकालने को कहा। तब गांव वालों ने वहां लकड़ी का एक मंदिर बनाया, इसी मंदिर को कोनेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
‘‘मंदिर में जलेरी न होने के कारण आधी नहीं पूरी की जाती है परिक्रमा।‘‘
इस मंदिर में कुदरत का अनोखा चमत्कार देखने को मिलता है। मंदिर में जलेरी नहीं होने से इस मंदिर की आधी नहीं, बल्कि पूरी परिक्रमा की जाती है। इतना ही नहीं इस शिवालय की अनूठी परंपराएं और कई रहस्य श्रद्धालुओं को हैरत में डाल देते है। मंदिर के शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाले हजारों लीटर जल की निकासी कहां होती है? इस रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठा पाया है।
‘‘कैसे पहुंचें देवलसारी कोनेश्वर मंदिर।‘‘
देवलसारी मसूरी के रास्ते आसानी से पहुँचा जा सकता है। उत्तराखंड और उसके बाहर के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से यह स्थान जुड़ा हुआ है। मसूरी से आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या निकटतम शहर थत्यूड़ के लिए स्थानीय बस ले सकते हैं। थत्यूड़ से देवलसारी तक की यात्रा का अंतिम चरण एक छोटी ड्राइव या सुंदर परिदृश्य के बीच पैदल यात्रा करके पूरा किया जा सकता है।
‘‘कब जाएं देवलसारी कोनेश्वर मंदिर।‘‘
देवलसारी जाने का सबसे अच्छा समय बसंत ऋतु (मार्च से जून) और शरद ऋतु (सितंबर से नवंबर) के मौसम के दौरान होता है। इन अवधियों के दौरान मौसम सुहावना होता है और प्राकृतिक नैसर्गिक सुंदरता अपने चरम पर होती है। ग्रीष्मकाल मैदानी इलाकों की गर्मी से राहत प्रदान करता है। जुलाई से अगस्त तक मानसून का मौसम हरियाली लेकर आता है, लेकिन भारी बारिश के कारण यात्रा चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
देवलसारी में ठहरने के विकल्प सीमित, लेकिन आकर्षक हैं, स्थानीय लोगों के कुछ गेस्टहाउस और होमस्टे हैं जो बुनियादी और आरामदायक सुविधाएँ प्रदान करते हैं। होमस्टे में रहना सबसे अच्छा विकल्प हैं, क्योंकि यह स्थानीय जीवनशैली और आतिथ्य का प्रत्यक्ष अनुभव का अवसर प्रदान करता है।