बुधू: ग्रीष्मकालीन राजधानी का कोरोना कनेक्शन

बुधू: ग्रीष्मकालीन राजधानी का कोरोना कनेक्शन
Please click to share News

सम्पादकीय, गढ़ निनाद न्यूज़ * 10 जून 2020

प्रधान जी कह चुके हैं कि कोरोना के साथ रहना सीखो। बुधू ने भी सुना है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक यही कह रहे हैं। उत्तराखंड तो देवभूमि है इसलिए इस महाकष्ट को पितृ प्रसाद मान गले उतार लो।

हमारे मुखिया जी ऐसे मामलों में दूरदर्शी हैं। जब कोरोना दूसरों का रोना था, तब भी उनको उत्तराखंड के शहीदों का सपना पूरा होना मांगता था। बर्फ से ढके गैरसैंण को गर्म करने के लिए उन्होंने इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर कर दिया। 

इससे एक तो उत्तराखंड के शहीदों का सपना पूरा होना था। यह तो बुद्धू को नहीं मालूम कि यह सभी शहीदों का सपना था या कोई एक अपनी चमत्कारी पार्टी के लोगों को बता गया था। वैसे गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने के लिए बाबा मोहन उत्तराखंडी भी शहीद हुए थे।

मुखिया जी के पार्टी वालों को यह मालूम है या नहीं, पता नहीं। हो सकता है वे बाबा मोहन उत्तराखंडी को शहीद ही नहीं मानते हों। नई टिहरी के गंभीर सिंह कठैत को भी तो आंदोलनकारी शहीद नहीं मानते हैं।

बताते हैं कि वीर चंद्र सिंह भंडारी “गढ़वाली” भी उत्तराखंड राज्य बनाने के पक्षधर थे। वह यहीं कहीं पहाड़ी राज्य की राजधानी बनाने के समर्थक थे। उत्तराखंड क्रांति दल वालों ने तो गैरसैंण को गढ़वाली के नाम से चंद्रनगर राजधानी भी घोषित किया हुआ है। वहां गढ़वाली की मूर्ति भी थरपी हुई है। गढ़वाली की मूर्ति और उत्तराखंड क्रांति दल के आज एक जैसे हाल हैं। उत्तराखंड के फील्ड मार्शल हरिद्वार से नारा लगाते हैं ‘गांव बसाओ-उत्तराखंड बचाओ।’ देहरादून, कोटद्वार हल्द्वानी के उनके चेले चांठे फुसफुसाते हैं, बचाओ-बचाओ। क्या खाक बचाओ! खुद पहाड़ चढ़ने से बचते हैं। हां संग्राद बजाने कभी कबार आ जाते हैं। थोड़े बहुत वोट मिलने तो यहीं ठहरे। यहीं के नाम पर असली राजधानी देहरादून हरिद्वार में चलती है।

देश के गांधी हों या पहाड़ के गांधी इनके सपनों से देश की तरक्की कैसे हो सकती है। ये खुद तो कभी ढंग के कपड़े नहीं पहन सके। ढंग का ठिया ठिकाना बनाया नहीं। चले हमें सपना दिखाने। बाबा मोहन से बहुत बढ़िया अपने ‘बाबा’ लोग हैं। एयर कंडीशन गाड़ी, आश्रम, परम अनुरागी भगतगण। जितना अनाज उत्तराखंड सरकार के गोदामों में नहीं होगा उससे अधिक कीमत के मेवा मिष्ठान। साथ में सीधे स्वर्ग लोक कनेक्शन!  वहां के टिकट तो इन्हीं के पास हैं। 

जब कोरोना गांव-गांव पहुंचकर उत्तराखंड को धन्य कर रहा है तो सरकार ने भी अपना ताला खोल दिया है। अब जो कोरोना आ रहा है उससे डरने की जरूरत नहीं है। यह कुछ नरम किस्म का है। इसमें जितनी गर्मी थी उससे मुंबई, दिल्ली पिघल रही है। आप आराम से घूमो  फिरो। भाई हमारे अफसर, नेता तब भी तो घूम रहे थे। नई टिहरी, देहरादून, हरिद्वार, रुड़की, रामनगर आ- जा नहीं रहे थे। ये बात अलग है कि दिखाई नहीं दे रहे थे। वैसे भी वह उतने ही दिखाई देते हैं, जितना जरूरी है। बाकी तो अपना काम करते हैं।

इधर सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया है। बताते हैं कोरोना को गर्मी से डर लगता है। जिस राज्य की राजधानी का नाम ही गरम-गरम हो वहां कोरोना तो आने से डरेगा ही। वाकी सरकार बेचारी को तो मन मसोस कर देहरादून से ही काम चलाना पड़ेगा। इसका रिमोट कंट्रोल डामकोठी हरिद्वार में जो है। रही बात स्थाई राजधानी की, अपने कांग्रेस वाले भाई तो हैं ही। भले अलग-अलग दिखते हों समस्याओं के मूल में सगे हैं। जनता इसको जानती है। इसलिए इन्हीं के बीच अदला-बदली चलती रहती है। 

दूसरी समस्या अभी की है,कोरोना। ग्राम प्रधानों को कोरोना संकट निवारण के लिए पांच-पांच हजार दे दिए हैं, सीधे उनके खाते में। पहले वालों के तो अपने ही थे विदेशों में।  जनता अब निश्चिंत और खुश है। सरकार जनता के खुश रहने की बात करती है तो बुधिया का बेसुरा राग शुरू हो जाता है। कह रही है पहले कहा दस-दस हजार प्रधानों को दे दिए हैं। अब पांच—। बताई बाखुरु,भड़यायी कुखुडू… पौंछलु लेंगड़ू कू टुकडू। 

सरकार जी बुधिया की बात पर नाराज मत होना। उसकी मेरी कामना तो यही है कि अपने गांव वाले खुशहाल रहें,सुखी रहें। सरकार लोग देहरादून रहें या…..इनका नहीं बुद्धू ।


Please click to share News

Govind Pundir

Related News Stories