बुधू: बंदर के हाथ में उस्तरा!
नारायण -नारायण ! देव धुनि सुन के कदम रुक गए। पीछे पलट कर देखा, मन मयूर हो नाच उठा। साक्षात नारद जी। ब्रह्मांड के सबसे बड़े खबरनवीस यानी पत्रकार। दंडवत प्रणाम किया। रात भर नारायण -नारायण का जाप करता रहा। अब बेटा कोरोना ,कहां छुपेगा। देवऋषि आए हैं तो तेरी खोज खबर जरूर लाये होंगे।
उठो वत्स, नारद जी का आदेश मान बुधू हाथ जोड़ खड़ा हो गया । नारद जी ठहरे दिव्य दृष्टि वाले पत्रकार । इस धरती पर उनके हजारों लाखों चेले-चेलियां हैं, उनमें कई इतने तेज हैं कि वे आगे पहुंच जाते हैं और खबरें पीछे रह जाती हैं।
तुम महीनों से कोरोना खोज रहे हो। वैज्ञानिक उसको खत्म करने की दवा ढूंढ रहे हैं। भारत से लेकर अमेरिका तक नेता उसमें अपना अपना भविष्य ढूंढ रहे हैं। चीन, रूस तो पा भी चुके हैं। दवा कम्पनियां, चमत्कारी बाबा लोग तो हमेशा से ऐसे मौकों पर खूब कमाई करते ही रहते हैं। तुम ढूंढने में लगे रहो।
एक कथा सुनाता हूँ। न्याय पीठ के धर्मेश्वर को पता चला कि राज्य में बड़ा अन्याय हो रहा है। धूर्त लोग गरीबों का हिस्सा लूट रहे हैं। उन्होंने मंत्री को इस लूट को रोकने और धूर्तों को पकड़ने का आदेश दिया। मंत्री जी के सिपाही चारों ओर दौड़ पड़े। कुछ तो सही रास्ते पर चले। कुछ राह भटक गए। धूर्तों की पान्त में खड़े हो गए। धर्मपीठ की आज्ञा से लूट के जाल काटने का उस्तरा यहसन वहां बेकसूरों पर चलने लगा। उस्तरा चलाने वालों को पता ही नहीं कि यह उल्टा भी चलता है। इसलिए इस कहावत को ध्यान में सुनना- बन्दर के हाथ में उस्तरा! नारायण-नारायण । नारद जी अंतर्ध्यान हो गए। बुधू कोरोना को खोजे या उल्टे उस्तरे वालों को?