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गंगी वालों ने बचाये थे आठ यात्री

विक्रम बिष्ट

गढ़ निनाद न्यूज़* 6 जून 2020

नई टिहरी: दोफंद के बाद  बुग्यालों की अनंत सी श्रृंखला है। घने जंगलों और फुलवारियों से परस्पर गुंथी हुई। बस पीने भर को पानी दिखा और थकान गायब। पँवाली के बाद कई जगहों पर वन गूजर पहले पहुंचकर छाछ लेकर इंतजार में मिले। व्यवस्था तो पँवाली में दूध की भी थी। शुद्ध था इसलिए कइयों को पचा नहीं।

ताली बुग्याल और….

गंगी जाने के लिए मीलों चलकर फिर भिलंगना नदी तट पर उतरना पड़ा। ताली बुग्याल से नीचे की ओर भैंस के खुरों के अलावा रास्ते का कोई चिन्ह नहीं। कहीं-कहीं पानी की तेज धार के बीच रिंगाल के सहारे फिसलते हुए उतरना हुआ। इस बीच पता चला कि हमारे साथ के कुछ यात्री रास्ता भटक कर कहीं घने जंगल में फस गए हैं। फिर राहत मिली कि वह अब सुरक्षित लौट रहे हैं। 

जब गंगी वालों ने बचाई 8 की जान

टिहरी परिसर में भूगोल विभाग के एक प्रवक्ता सहित आठ लोग विश्राम के दिन गंगी रवाना हो गए थे। इस जत्थे में शामिल भानु नैथानी ने बताया था कि वह लोग ताली में गुर्जरों के डेरे पर दूध पीने के लिए रुक गए थे। उनके आगे वाले तीन लोग सीधे निकल गए। आगे 

रास्ता स्पष्ट नहीं था। पशुओं के खुरों से कई रास्ते बनते मिटते दिख रहे थे। वहीं दाई ओर चले। फिर रास्ता नहीं मिला। दोपहर 1:00 बजे से अंधेरा होने तक रास्ता तलाशते रहे। फिर एक गुफा में आग जला कर बैठ गए। 

सुबह मिलकर सीटियां बजाई। बांस पर चादर लपेट कर हिलाते रहे। फिर गंगी से चार लोग नदी की दूसरी ओर पहुंचे। हाथों के इशारों से रास्ता बताकर पुल तक ले आये। 

27 घण्टे जंगल में फंसे रहे

अध्यापक छात्रों का यह जत्था लगभग 27 घंटे में घने जंगल में फंसा रहा था। उनके कपड़े फट गए थे। गंगी के लोगों को उन्होंने अपना जीवन दाता माना। उसी जंगल में एक साल पहले महाराष्ट्र के 2 यात्री गुम हो गए थे। हेलीकॉप्टर भी खोजने आए थे। खाली लौटे।

राष्ट्रपति पुरस्कार की मांग की थी 

ग्राम प्रधान बचन सिंह और उनके तीन गांववासी जीवनदाता थे। उन्होंने बताया कि आग देखकर वे समझ गए थे कि जंगल में कोई भटक कर फंस गया है। सो ये लोग मुंह अंधेरे मदद के लिए गांव से उतर गए। बस इतना ही कहा। न अहसान करने का भाव न आत्मप्रशंसा।

बड़ोनी जी और नौटियाल जी दो बड़े नाम इस यात्रा में साथ थे। दोनों ने ग्रामीणों के इस नेक काम को राष्ट्रपति पुरस्कार के योग्य माना। अखबार ने छापा। 

सालभर बाद विधानसभा पहुंच गए

अपने समर्थकों के साथ पँवाली तक की महान यात्रा से लौटे दो नेता सालभर बाद वीपी सिंह की चुनावी लहर में जीतकर लखनऊ विधानसभा पहुंचे। उन्होंने नहीं सुनी तो महामहिम राष्ट्रपति कहां से सुन पाते। निश्छल, अनपढ़, अनगढ़ गंगी के ग्रामीण जानते तक नहीं थे कि पुरस्कार क्या चीज होती है। उन्होंने तो वही किया जो उनको करना था। वे नहीं जानते थे कि जो मुसीबत में हैं कौन हैं! मदद के बाद भी जानना जरूरी नही था। 

अब नैन सिंह का गंगी

बचन सिंह का गंगी अब नैन सिंह का है। काफी कुछ जरूरी बदलाव हुआ है। कुछ अवांछित भी। घाघ नेताओं ,सरकारी काशकुनो की नजरें इनायत हैं। खतलिंग महायात्रा से स्व. इंद्रमणी बड़ोनी का अभिप्रायः था, ‘प्रकृति के समरस मानव विकास।’ अब सभ्य समाज के अनियोजित विकास मॉडल में अंतर्निहित कोरोना दस्तक दे रहा है।


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Govind Pundir

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