” कृषक महिमा “

” कृषक महिमा “
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हे कृषक देव तुम हो महान ,
जन – जन की तुम हो शान!
बहाकर श्वेद खेत – खलिहान ,
हर मानव मे फूँकते हो जान ।
रात – दिन दोनों को कर एक ,
अचम्भा होता सबको देख !
भोर होते ही नंगे तन – पैर ,
खेत खलिहानों की करते सैर ।
लेकर फावड़ा हाथ दराँती ,
करते काम खेतों मे कई भाँति ।
कन्धे मे हल हाथ कुदाली ,
लेकर के हर डाली पाली ।
बैल ट्रैक्टर साधन जो भी हो ,
साथ देते तुम्हारा हर पल ओ ।
बच्चे बूढ़ौ को छोड़कर घर मे ,
ढोते रहते बोझ को सिर मे ।
मेहनत – कीमत लगती जादा ,
पर होता है लाभ सिर्फ आधा ।
किसान जो अन्न न पैदा करता ,
तो तब मानव भूखा ही मरता ।
हे अन्न दाता तेरा जीवन सारा ,
अभावों मे बीतता बन बेचारा !
उज्जवल होगा भविष्य तुम्हारा ,
सोच रहा अब जग है सारा ।
खुद भूखे – नंगे रहते हो सदा ,
दुनियां को भरपेट खिलाता ,
छू न सका कभी पद – प्रतिष्ठा ।
औरों को खूब सम्मान दिलाता ।
कर्ज – श्रम की गठरी से तेरा ,
कभी न टूटा रिश्ता – नाता ।
जिनको तूने धनवान बनाया ,
वह तुझको सदा रहा सताता !
नमन करते हिम्मत को तेरी ,
कभी भी हार नहीं मानी ।
ग्राम देवता हे अन्न दाता ,
दर्द भरी है तेरी कहानी !!
छप्पर – झोपड़ियों मे रहकर ,
औरों को महल प्रदान किये ।
-पेट – पीठ सिकुड़कर एक हुआ ,
जीवन भर जहर के घूँट पिये !
सामाजिक/प्राकृतिक अत्याचार ,
सहता रहता है हर बार !
पर मानता नहीं कभी तू हार , हिम्मत का पर्याय बनता हर बार ।

डॉ.सुरेंद्र सेमल्टी, पुजार गांव, चन्द्रबदनी

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Govind Pundir

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