लोकतंत्र में सवाल, गुनाह कब से

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विक्रम बिष्ट 

गढ़ निनाद न्यूज़ 

नई टिहरी: विपत्ति काल में राज्य के पास अपनी जनता की सुरक्षा के लिए कुछ सामान्य कानूनों के उपयोग का अतिरिक्त अधिकार प्राप्त है। मूल में ‘जनता-जनहित’ है। राज्य जिसके प्रति उत्तरदायी है। यह भी स्पष्ट है कि इन कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग करने का अधिकार किसी को भी किसी भी दशा में नहीं है। व्यक्ति, पद, संस्था किसी को नहीं।

स्वस्थ लोकतंत्र में कर्तव्य सर्वोपरि है। संकट काल राज्य और जनता (नागरिक) की सबसे खरी परीक्षा है। मानव सभ्यता के  ज्ञात  इतिहास में शत प्रतिशत सफलता का शायद ही कोई उदाहरण हो। अज्ञान, अहंकार, हठ और अक्षमता के कारण भीषण त्रासदियों के असंख्य उदाहरण हैं।

मानवता के सामने बड़ा सवाल

विकास के चरमोत्कर्ष पर अधिकार के उन्माद का भयावह उत्पाद सामने है कोरोना। मानवता के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है आखिर यह क्यों?

बहरहाल संकट हमारे ऊपर दिनों-दिन गहरा रहा है। यहां-वहां की छोड़ आज इस संकट से जूझते हुए अपनी नाकामियों को स्वीकार करना जरूरी है। दोहराने की जरूरत नहीं है कि यह न पहली और न आखरी त्रासदी है। सीख लेकर आगे की तैयारी में जुटें तो भविष्य के लिए बेहतर होगा। 

लेकिन क्या हम सबक लेने को तैयार दिख रहे हैं? 

सरकार क्वारेन्टीन, किससे करें उम्मीद

उत्तराखंड जो कल तक देश के भीतर कोरोना महामारी के मामले में काफी सुरक्षित माना जा रहा था, तेजी से गंभीर स्थिति की ओर बढ़ रहा है। क्या हमारे पास सावधानी बरतने के लिए अन्य कई राज्यों की अपेक्षा काफी ज्यादा समझ  और समय नहीं था?  प्रदेश सरकार को ही क्वॉरेंटाइन स्थिति में पहुंचना पड़ा है तो उम्मीद किससे करनी चाहिए? सरकार और सरकारी तंत्र के सवाल पूछे जाते हैं, बेशक उसमें दलगत राजनीति क्यों न हो उसका जवाब सवाल पूछने वालों को गरियाने में नहीं है। मत भूलिए कि कल आप उसी भूमिका में थे, जिसमें सवाल करने वाले आज हैं और आज सवाल करने वाले तब जवाबदेही में उतने ही वैसे ही 

ढीठ थे जैसे आज आप हैं। 

सब (अ) व्यवस्था के हमाम में—-

संकट गहरा रहा है। व्यवस्था के निर्णय क्षण क्षण रंग बदलते भ्रम का वातावरण गहरा कर रहे हैं। लोगों की परेशानियां बढ़ा रहे हैं, तो एक बात स्पष्ट है कि हम संकट से निपटने के उपायों के मामले में सबसे निचले पायदान पर हैं। इसके लिए कोई एक पक्ष दोषी नहीं है। (अ) व्यवस्था के हमाम में—-

जनसेवा बनाम सेवा की राजनीति 

(दाढ़ी और साहब मतलब इंद्रमणि बडोनी)

1 सितंबर 1988 की बात है टिहरी गढ़वाल के घुतु गांव से खतलिंग महायात्रा के लिए सैकड़ों लोगों का जत्था निकला। इस महा यात्रा की शुरुआत इंद्रमणि बडोनी ने काफी पहले से की थी। इस बार महायात्रा के साथ वाली जोड़ दिया गया था। इसलिए समय और मार्ग लंबा खींचना था। बडोनी जी के साथ पूर्व शिक्षा मंत्री डॉक्टर शिवानंद नौटियाल तत्कालीन मंडलायुक्त सुरेंद्र सिंह पांगती, जिलाधिकारी राजीव गुप्ता, प्रख्यात पर्वतारोही चंद्रप्रभा एतवाल भी यात्रा मे थी। 

जब गुर्जर मुखिया बोला—-

पँवाली पहुंचने से पहले ही बूंदाबांदी शुरू हो गई। पँवाली में हमें वन गुर्जरों का मुखिया मस्तु शायद ऐसा ही कुछ नाम था मिला  बहुत खुश था। बोला दिल्ली गया था। उत्तराखंड की रैली में प्रधानमंत्री के साथ ऊपर मंच पर बैठा था। प्रधानमंत्री जी का आशय बडोनी जी से था। 

हमारे यां एमले नही होता

इससे पूर्व एक छानी में कैलबागी के नागेंद्र दत्त से चाय पीते बातचीत में एक साथी ने यूं ही पूछ लिया था आप का एमएलए कौन है। जवाब मिला हमारा एमले नहीं होता। किसी नेता को जानते हो हां दाडिया साहब को इंद्रमणि बडोनी। 

घुतू में भी जनता विद्यालय बडोनी जी ने खुलवाया था  शिक्षा पर उनका खास जोर रहता था।

पलकों की छांव में

अंधेरा घिरने के साथ बारिश की धार भी तेज हो रही थी। बस पलकों की छांव में गुर्जरों के डेरे और एक पुरानी धर्मशाला यही ठिकाने थे। किसी ने बताया बाबा काली कमली वालों ने धर्मशाला बनवाई है। चौंकिए मत बाबा काली कमली वाले किसी जड़ी बूटी की खोज में यहां नहीं आए थे। दरअसल गंगोत्री केदारनाथ के बीच एक प्राचीन पैदल यात्रा मार्ग यहां से गुजरता है। 

पहली बार आये होंगे इतने यात्री

आज भी संभावनाएं बहुत हैं पँवाली में। पँवाली में इतनी संख्या में यात्री पहली बार पहुंचे थे। बडोनी जी थे तो खाने की पर्याप्त व्यवस्था होनी ही थी। बारिश मूसलाधार जिसको जहां जगह मिली बैठ लेट गया। टिहरी से हम सात लोग मनोज रांगड़, दीपचंद पंत, अनिल अग्रवाल, कुलदीप थपलियाल, राजीव नेगी और कांति कर्णवाल। उस भीड़ में टेंट लगाने का अवसर ही नहीं मिला। 

और वो प्रधान खीर खा गए–

आधी रात को हम कुछ दूर चलते एक एंडके की ओर गए बड़ोनी जी बैठे थे। बड़े से पतीले पर चाय उबल रही थी। लोग आकर चाय पीकर राहत पाते। बड़ोनी जी ने पूछा तुम लोगों ने खीर खाई , हमने कहा नहीं तो। वह थोड़ा शहमे हुए बोले कुछ नहीं। सुबह किसी ने बताया बडोनी जी ने यात्रियों के लिए खीर बनवाई थी। मंत्री भाई (नैथानी) के साथ आए प्रधान खा गए। कुछ दिन बाद ब्लॉक प्रमुख चुनाव होने थे। नैथानी जखोली ब्लॉक प्रमुख की तैयारी में जुटे थे। 

तब जाकर बुग्यालों ने ली राहत की सांस!

सुबह इंद्रधनुषी छटा के साथ अधिकारियों के साथ ज्यादातर नेता लौट गए। पँवाली के खूबसूरत बुग्यालों ने राहत की सांस ली। विश्राम का दिन था। जमकर रडघोसी और फोटोग्राफी की। 

जब 8 साथी रास्ता भटक गए

रास्ते में पांगती जी ने बताया था कि पँवाली में शीतकालीन खेलों के लिए बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं। मक्खन, दूध और रास्ते भर में छाछ की व्यवस्था थी। इस बीच गंगी गांव के लोग मिले। उन्होंने बताया कि हमारे कुछ साथी  रास्ता भटक गए थे। उनको घने जंगलों से सुरक्षित निकलवा लिया है। टिहरी परिसर के भूगोल विभाग के एक प्रवक्ता सहित कुल 8 यात्रियों से कल मिलते हैं।


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Govind Pundir

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