रामपुर तिराहा कांड: न्याय का सूरज कब उगेगा

रामपुर तिराहा कांड: न्याय का सूरज कब उगेगा
विक्रम बिष्ट
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विक्रम बिष्ट 

गढ़ निनाद न्यूज* 14 अक्टूबर 2020

नई टिहरी। ‘हमारी इज्जत लूटी गयी, हमारे आंसू तो नीचे गिरे नहीं।  बाकी सब हो गया। क्या सजा मिलेगी उन्हें जो उन्हें नहीं करना था वह उन्होंने कर दिया । सब, वो हिंदुस्तानी खून तो था नहीं जो खाकी वर्दी में इस दिन रामपुर के तिराहे पर तैनात थे। वो हिंदुस्तानी खून रहता तो ऐसा सलूक नहीं करता । वह अपनी मां बहन बेटी को भी नहीं पहचानते थे ।विदेशी लोगों ने भी ऐसा अत्याचार नहीं किया होगा। औरतों पर।, (नभाटा 16 अक्टूबर 1994)

हिंदुस्तानी खून तो नहीं था न्यू खाकी वर्दी में या देना रामपुर तिराहे में तैनात था

यह लानत भेजी थी उत्तर प्रदेश पुलिस को रामपुर तिराहे की एक पीड़िता ने।  1-2 अक्टूबर 1994 की रात मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर खाकी वर्दी में जो शैतान तैनात थे , जाहिर है उन्हें क्या नहीं शर्म आती, उन आला अफसरों को भी  नहीं जिनके सरपरस्ती में मानवता भारतीय संस्कृति के इतिहास में इस जघन्य कांड को अंजाम  दिया गया। तब से अब तक उत्तराखंड की जनता के शानदार संघर्ष, शहीदों के सपनों को शाब्दिक श्रद्धांजलि की जुगाली दोहराने वाले राजनीतिक प्रतिष्ठान ने चमोली जिले की बहुत सीधी-सादी निष्कपट पहाड़न को न्याय दिलाने की दिशा में तिल भर कदम आगे नहीं बढ़ाया। सभी सीबीआई जांच की आड़ में छिपे बैठे हैं । 

दिल्ली से लेकर हाथरस और झांसी में कोई भी बेटी नरपिशाचों का शिकार बनती है तो समाज का हर संवेदनशील मन व्यथित होता है । आक्रोश जताता है। राजनीतिक लोग सिर्फ राजनीति करते हैं। यहां अपना चारागाह बनाने दूसरे का बर्बाद करने का कुत्सित खेल चलता- चलाया जाता है। 

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वर्ण मंदिर में इंदिरा गांधी द्वारा कराए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए सिखों से माफी मांगी थी। बेशक स्वर्ण मंदिर अकाल तख्त सिख समुदाय का सर्वोच्च धार्मिक प्रतिष्ठान है। हिंदू भी उसमें उतनी ही आस्था रखते हैं। ऑपरेशन ब्लूस्टार स्वर्ण मंदिर के खिलाफ नहीं था। उसको ठिकाना बना कर देश को तोड़ने के लिए आतंक मचाने वाले अलगाववादियों के खिलाफ जारी अभियान था। 

लेकिन 1-2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली जा रहे हजारों उत्तराखंडी तो अलगाववादी, आतंकवादी नहीं थे। वे तो पूरे विश्वास से अपनी सरकार और देश की राजधानी को अपनी मासूम से फरियाद सुनाने जा रहे थे। दिन भी चुन था अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी और जय जवान-जय किसानक मंत्र देने वाले लाल बहादुर शास्त्री जयंती।

पुलिस और प्रशासन ने दरिंदगी को अंजाम देने और उसे छुपाने के लिए जो कहानी गढ़ी उसमें थोड़ा भी सच्चाई होती तो बात लाठीचार्ज आंसू गैस हवाई फायर अति हो गई तो पैरों पर गोली चलाने की बात हो सकती थी। सीनों और सिरों को निशाना नहीं बनाया जाता। महिलाओं पर इस तरह का अत्याचार करने का कोई आदेश नहीं दे सकता, यदि कोई कहे तो इसका पालन किसी भी हालत में नहीं किया जा सकता है। क्या कांग्रेस को पूरी दुनिया की मातृशक्ति से माफी नहीं मांगनी चाहिए थी । 

दिल्ली पुलिस के एक उपायुक्त के पत्र की आड़ में या अन्य स्तरों पर षड्यंत्र, छात्रों की आड़ में दिल्ली रैली में इकट्ठे किए गए पत्थरबाजों से लेकर ‘न्याय की लड़ाई, को दरकिनार करने के प्रयास क्या स्वयं सब कुछ बयां नहीं कर रहे हैं?


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Govind Pundir

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