“मातृभूमि के प्रति”

“मातृभूमि के प्रति”
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डॉ0 सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी

अध्यक्ष- हिंदी सेवा समिति टि0ग0

                  कविता

कहाँ गया वह सारा वैभव,खेतों की सुंदर हरियाली,

हो चुकी आंखों से ओझल, टिहरी की सारी खुशहाली।

भिलंगना-भागीरथी के मध्य, टापू सा था यह एक शहर, 

जिधर भी जाती थी दृष्टि, उठती थी देख खुशी की लहर। 

शिक्षा-स्वास्थ्य का केंद्र बिंदु , प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना, 

कचोट रहा हम सबके दिल को, हर पल जल में छुप जाना।

तीन धारा प्राकृतिक जलस्रोत, घंटाघर संगम राज दरबार,

रानीबाग भादू की मगरी, छीन लिये सबके घरबार। 

हिंदू मुस्लिम सिख सभी के, मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे, 

अथाह जलराशि के भीतर, कैद हो चुके हैं सारे। 

चनाखेत जेल सेमलतप्पड़, और अठूर के समतल खेत, 

रहती थी जहां रोनक हर पल, वहां अब मात्र जल बालू रेत। 

खुद का जीवन अंधकार बनाकर, यह शहर बना एक ऐसा दीप, 

जो फैलायेगा विद्युत प्रकाश देश में, वक्षस्थल पर चलेंगी हर पल शीप।


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Govind Pundir

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