इसलिए उत्तराखंड बेबस है…

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विक्रम बिष्ट

उत्तराखंड के मामले में गठित जार्ज फर्नाडीज समिति कोई समाधान नहीं सुना सकती है। चूंकि उसमें एक ओर पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल अपनी बात पर अड़े हुए हैं तो दूसरी ओर कल्याण सिंह।  फरवरी 99 में टिहरी परिसर छात्रसंघ के शपथ ग्रहण समारोह में सांसद मानवेंद्र शाह ने यह बात कही थी।

तब भाजपा सांसद शाह ने दो टूक कहा था उत्तर प्रदेश द्वारा पारित संशोधन वाला उत्तराखंड स्वीकार नहीं है। आज हमारा जो उत्तराखंड राज्य है, वह कुछ वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश विधान सभा द्वारा संशोधित उत्तरांचल था, सिर्फ न नाम का बल्कि अकाली दल सहित तमाम दबाव समूहों के सामने आंचल उतार कर लिए गए अवसरवादी राजनीतिक निर्णय का नमूना। आत्मनिर्भर,शोषणमुक्त पर्वतीय राज्य की अवधारणा के उन्मूलन की स्थाई व्यवस्था के साथ।

अप्रैल 2000 में तत्कालीन केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री बच्ची सिंह रावत ने टिहरी में उत्तराखंड पत्रकार परिषद द्वारा आयोजित संगोष्ठी में कहा था कि हरिद्वार शहर प्रस्तावित उत्तरांचल राज्य में शामिल होगा।

सितंबर 2002 में उत्तराखंड जनवादी पार्टी ने तराई के भू माफियाओं के खिलाफ जोरदार आंदोलन चलाया था। पार्टी के अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान ने नैनीताल में तब कहा था (27 सितंबर दैनिक हिंदुस्तान- रिपोर्ट रविन्द्र देवलियाल) तराई की सोना उगलने वाली जमीन भू माफियों के लिए वरदान साबित हो रही है। लगभग 21000 एकड़ जमीन (2 फार्म हाउस) पर कब्जा जमाए भू माफियाओं का उदाहरण देकर उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी से उनके (भूमाफिया) अच्छे संबंधों पर निशाना साधा था।

आज भाजपा विधायक श्री चौहान उत्तराखंड के सबसे प्रमुख विधायकों में से हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा में पुनर्गठन विधेयक 1998 पर बहस के दौरान मुन्ना सिंह चौहान उत्तराखंड के हितों के पैरोकार थे। इसलिए उन्हें खासी लोकप्रियता और सम्मान हासिल किया। 

लेकिन उत्तराखंड के मूल सवाल तो जब के तस हैं। तराई की बात करते हैं। यह कृषि योग्य जमीन अंग्रेजों ने पहाड़ी पूर्व सैनिकों के लिए तैयार की थी। थारू, बोक्सा आदि समाज तराई के मूल निवासी हैं। उनका जीवन आज कितना सुधरा है? गंगा यमुना और शारदा प्रबंध बोर्ड से हम अपना नैसर्गिक जायज हक क्या हासिल करेंगे,जब टीएचडीसी में अपना हिस्सा मांगने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाए। जसवंत परमार जैसे दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना उत्तराखंड की रीति नीति संचालन तंत्र के भीतर इस कोरोना से हैं किस तरह से लड़ेंगे? बेशक उत्तराखंड में कोरोना वायरस का प्रवेश हमारी इस बेबसी का लक्षण है।

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Govind Pundir

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