कॉलम- समाज सेवा और राजनीति तब और अब

रामेश्वरी ने चप्पलें पहने नापी पर्वत शिखरों की ऊंचाई
खतलिंग को पांचवा धाम बनाने का सपना था- इंद्रमणि बड़ोनी का
विक्रम बिष्ट
गढ़ निनाद न्यूज़ * 9 जून 2020
नई टिहरी: गंगी के बाद दूसरा पड़ाव खरसाली था। गंगी सहित भिलंग के ग्रामीणों की छाने इस क्षेत्र में हैं। घने जंगलों के बीच बड़े भूस्खलन क्षेत्र हैं। रंग-बिरंगे फूलों से लदे-सजे छोटे-छोटे मैदान हैं। बताते हैं कि चीन से युद्ध से पूर्व यहीं से होकर गंगी वासियों का तिब्बत से व्यापार होता था। खरसाली के सामने ऊपर की ओर एक काफी ऊंचा सदाबहार की झरना गिरता है। यह पर्यटकों के लिए अतिरिक्त आकर्षण है।
रात भर हल्की बारिश होती रही है। रास्ते में घोड़े से गिरकर डॉ. नौटियाल को चोट लगी थी। उनको खरसाली से वापस लौटना पड़ा।
खतलिंग घाटी विकास संघ के अध्यक्ष श्रीराम सेमवाल और प्रधान शरणानंद तिवाड़ी हमसे दोगुनी से अधिक उम्र के दो यात्री, थकान का नाम नहीं। सेमवाल जी की तबीयत कुछ ढ़ीली थी। फिर भी चेहरे पर वही मुस्कान। जो युवा यात्रियों को और उत्साहित कर रही थी।
तिवाड़ी जी लगभग तीन दशकों के दरम्यान कई बार खतलिंग यात्रा कर चुके थे। उन्होंने कई रोचक संस्मरण सुनाए। वह स्थान भी दिखाया जहां तक कभी खतलिंग ग्लेशियर पसरा था। चौकी के सामने भयंकर मंसूरताल है। उन्होंने बताया कि यहीं से होकर यात्री पहले त्रिजुगीनारायण आया जाया करते थे।
पँवाली के बाद हमारे साथ इकलौती महिला यात्री थी रामेश्वरी सेमवाल। तब 12वीं की छात्रा रामेश्वरी श्रीराम सेमवाल जी की सुपुत्री हैं। उसने हवाई चप्पले पहने इन वेहद खतरनाक रास्तों को नाप कर खतलिंग यात्रा का एक अनूठा रिकॉर्ड बनाया।
केवल इस यात्रा के लिए खरीदे-पहने जूते जब हमारे पैरों की बेरहमी से मसाज कर रहे थे। जगह-जगह फिसलने से बमुश्किल बच पा रहे थे। रामेश्वरी सबसे पहले खतलिंग ग्लेशियर पहुंचने वाले गिने-चुने यात्रियों में अग्रणी रही थी। सभी मान रहे थे कि इस बहादुर लड़की को उचित प्रशिक्षण मिले तो वह पर्वतारोहण में नए कीर्तिमान रच सकती है।
वापसी में हम सीधे घुतू लौटना चाहते थे। लेकिन गंगी वासियों का आग्रह था कि एक दिन रूकें, इसलिए हम उनके उपगांव विरोध में रुक गए।
घुतू से पँवाली तक उस यात्रा पर स्वार्थी राजनीति मंडराती रही थी। तब ही लग रहा था कि साथ पार के बड़ोनी जी के बाद इस यात्रा पर राजनीति का ग्रहण लगना तय है। कुछ समय बाद जब उन्होंने इसको वृहद स्वरूप देने के लिए मासरताल, सहस्त्रताल से जोड़ा तो बूढ़ाकेदार में पहले पड़ाव पर ही इसकी उल्टी गिनती शुरू हो गई थी। बड़ोनी जी चारों धामों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ के ठीक मध्य स्थित खतलिंग को पांचवें धाम के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते थे।
एक बार यात्रा के दौरान उत्तराखंड क्रांति दल के कार्यक्रम की तैयारी चल रही थी। हम लोग दल का झंडा लगी गाड़ी में सिर्फ घुतू में शुरुआती कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। बाद में उन्होंने समझाया तुम लोगों को इस तरह के कार्यक्रमों में पार्टी का झंडा लेकर शामिल होने से बचना चाहिए। यह एक निश्चल समाजसेवी नेता की सीख थी। हमने तो उनकी सीख को 1994 के आंदोलन में माना था, कथित मुख्यधारा राजनीति ने भी! लेकिन पांचवा धाम खतलिंग और खुशहाल उत्तराखंड बडोनी के सपने आज क्या अप्रासंगिक हो गए हैं?