कुमाऊनी लोक गायक हीरा सिंह राणा का निधन: दिल्ली के निगमबोध घाट पर आज होगा अंतिम दाह संस्कार

कुमाऊनी लोक गायक हीरा सिंह राणा का निधन: दिल्ली के निगमबोध घाट पर आज होगा अंतिम दाह संस्कार
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Govind Pundir

गढ़ निनाद न्यूज़* 13 जून 2020

नई टिहरी:उत्तराखंड के वरिष्ठ लोक गायक, कुमाऊनी के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतकार, संगीतकार, गायक उत्तराखंड भाषा अकादमी दिल्ली के उपाध्यक्ष हीरा सिंह राणा का कल शुक्रवार रात 2.30 बजे विनोद नगर, दिल्ली स्थित उनके निवास पर हृदय गति रुकने से निधन हो गया। उन्होंने कुमाऊंनी भाषा में अनेक गीत रचे और गाए। उनके जाने से उत्तराखंड संस्कृति जगत को अपार हानि हुई है। आज 9.30 बजे दिल्ली के निगम बोध घाट में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

राणा वर्तमान में कुमाऊनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष भी थे। वे 77 साल के थे। उनका जन्म 16 सितम्बर 1942 को उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल के ग्राम-मानिला डंढ़ोली, जिला अल्मोड़ा में हुआ था। उनकी माता स्व: नारंगी देवी, पिता स्व: मोहन सिंह थे।

राणा ने प्राथमिक शिक्षा मानिला से हासिल करने के बाद वे दिल्ली मैं नौकरी करने लगे, नौकरी में मन नहीं रमा तो संगीत की स्कालरशिप लेकर कलकत्ता पहुंचे और आजन्म कुमाऊनी संगीत की सेवा करते रहे। राणा 15 साल की उम्र से ही विभिन्न मंचों पर गाने लगे थे।

हीरा सिंह राणा के कुमाउनी लोक गीतों के अल्बम रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला, आहा रे ज़माना जबर्दस्त हिट रहे। उनके लोकगीत ‘रंगीली बिंदी घाघरी काई,’ ‘के संध्या झूली रे,’ ‘आजकल है रे ज्वाना,’ ‘के भलो मान्यो छ हो,’ ‘आ लिली बाकरी लिली,’ ‘मेरी मानिला डानी,’ कुमाऊनी के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में शुमार हैं।

हीरा सिंह राणा के निधन से उत्तराखण्ड के संगीत जगत को अपूरणीय क्षति पहुंची है। उत्तराखंड के लोक गायन के क्षेत्र में दिए गए अतुलनीय योगदान के लिए राणा को हमेशा याद रखा जाएगा। महान विभूति को गढ़ निनाद परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।


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