संदिग्ध परिस्थितियों में वृद्धा का शव बरामद, पोस्टमार्टम को भेजा

संदिग्ध परिस्थितियों में वृद्धा का शव बरामद, पोस्टमार्टम को भेजा
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नई टिहरी। विकासखंड जाखणीधार के अंतर्गत ग्राम कफलना में एक 75 वर्षीय वृद्धा की संदिग्ध परिस्थितियों में लाश बरामद हुई । महिला अपने घर मे अकेले रहती थी। उनकी दो बेटियां हैं जो शादीशुदा हैं।

थाना प्रभारी हिंडोला खाल श्री जितेंद्र कुमार ने बताया कि ग्रामीणों ने कफलना गांव की एक वृद्ध महिला का शव खेत मे पड़ा होने की खबर दी थी। सूचना मिलते ही थाना हिंडोला खाल पुलिस तत्काल मौके पर गयी। खोजबीन करने पर उक्त वृद्धा भामा देवी पत्नी स्वर्गीय श्री कलम सिंह पंवार निवासी कफलना का शव घर से 25- 30 मीटर नीचे खेत में संदिग्ध परिस्थितियों में पड़ा मिला। 

बताया कि शव लगभग 4-5 दिन पुराना लग रहा था । पुलिस ने ग्रामीणों की सहायता से शव को मिट्टी पत्थरों से बाहर निकाला। शव का पंचनामा कर आज ही जिला अस्पताल बौराड़ी भेज दिया गया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही घटना के बारे में कुछ पता चल पाएगा।

थाना प्रभारी ने बताया कि मृतक भाना देवी की दो बेटियां हैं दोनों की शादी हो गयी है। उनका कोई बेटा नहीं है। पति की मौत भी कुछ साल पहले हो चुकी है । वह घर में अकेली रहती थी। इस घटना के बाद से गांव में भय का वातावरण है।

” (श्रीमती भामा देवी इलाके में काफूलधार वाली दादी के नाम से भी लोकप्रिय थी देखिए एक झलक)

          ** काफूल धार वाली दादी **

काफूल धार में रहती थी एक प्यारी सी दादी। जिसको लगभग सभी लोग दादी के नाम से जानते थे, दादी की दो बालिकाएं हैं जिनकी शादी हो चुकी है। दादा कलम सिंह जी की पिछले वर्ष ही स्वर्गवास हो गया था। दादी अपने घर में अपने ही एक कुत्ते के साथ अकेली रहती थी। 

दादा दादी पिछले साठ सालों से वहां (काफूल धार) में रहते थे। गांव के बच्चे जब स्कूल आते-जाते थे तो वहां पर दादा और दादी हमेशा अपने काम धंधे में व्यस्त दिखते थे । दादी लगभग दो किलोमीटर दूर करास के धारे जाती थी । ठंडा पानी सूखने के बाद दादी की पानी लाने की यात्रा अब कुछ और बढ़ गई थी । काफी समय से दादी अकेले ही जीवन यापन कर रही थी । उनकी देखभाल करने वाला भी कोई नहीं था और अब काफी बुजुर्ग भी हो गई थी। आंख और कान भी लगभग 75-80 की उम्र में धोखेबाज निकले। फिर भी ऐसा जज्बा कि खुद ही अपने कुदाल से अपने आसपास के खेतों को खोदकर दाल सब्जी का जुगाड़ खुद कर लेती थीं। रोज दो किलोमीटर दूर एक छोटा सा बर्तन लेकर पानी के लिए करास तक की पैदल यात्रा, जंगल से लकड़ियां लाना, सोमवार को पीपल के पेड़ में पानी चढ़ाना आदि दादी 

का रोजमर्रा के काम था। जिंदादिली व कभी हार न मानने वाली दादी को कर्म पर विश्वास था और वह शायद अब अपनी परिस्थितियों की आदी हो गयी थी। 

अब काफूलधार में घसियारियों को चाय-पानी पिलाने वाली दादी नहीं रही। दादी की आत्मा को ईश्वर अपने श्रीचरणों में लें।”


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Govind Pundir

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