भाई बहन के अनूठे प्रेम का प्रतीक है भैयादूज — नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज

भाई बहन के अनूठे प्रेम का प्रतीक है भैयादूज — नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
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रायवाला हरिद्वार। नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज  के अनुसार रिश्तों की डोर से यमराज को भी बांध देने के इस पुनीत पर्व के पीछे एक दर्शन और रहस्य भी छिपा है। शायद कम ही लोग जानते होंगे कि भारतीय मनीषियों ने भाई-बहन के रिश्ते को सदा जीवंत रखने के लिए ही कुछ बड़े पर्वों के बाद भाई दूज की व्यवस्था रखी गई है। इसका उद्देश्य भाई-बहन के स्नेह को सदैव कायम रखना ही है, जो इस पर्व की डोर में सदियों से बंधा हुआ है। आज के भागमभाग के दौर में यह पर्व और भी प्रासंगिक सिद्ध हो रहा है।

छोटी उम्र में विवाह

भारत वर्ष में कम उम्र में ही विवाह की व्यवस्था रही है। खेलने खाने की उम्र में ही विवाह का बंधन भाई-बहन को एक-दूजे से दूर कर देता था। परिवहन के साधनों का अभाव तो था ही रास्ते भी दुर्गम थे। कहीं ऐसा नहीं हो कि विवाह के बाद बहन और भाई एक दूसरे से बहुत दूर हो जाएं। एक-दूसरे से मिल ही न पाए पराए जैसे हो जाएं। वे एक-दूसरे के यहां आ जा ही नहीं पाएं। इसलिए भारतीय मनीषियों ने भाई दूज का दिन रखा गया। इस दिन भाई-बहन का एक-दूसरे से मिलना अनिवार्य नियम बन गया।

तीन होती हैं भाई दूज

भारतीय परम्परा में चार बड़े पर्व हैं। इनमें रक्षाबंधन, दीपावली, दशहरा और होली शामिल हैं। रक्षाबंधन पर भाई-बहन का स्नेह जग जाहिर है। इस दिन बहनें भाई के घर मेहमानी पर आती हैं। भाई राखी बंधवाकर बहनों को उपहार देते हैं। इसी तरह दीपावली की दोज व होली की दोज को भाई विवाहित बहनों के यहां भी जाते हैं। बहन के हाथों से भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन बहनें भाई को तिलक लगाकर पूजन की सुपारी, नारियल पर उपहार आदि देती हैं। भाई अगर छोटा हुआ तो उपहार ले लेता है और यदि बड़ा हुआ तो वह अपनी ओर से बहनों को उपहार भेंट करता है।

सुख-दु:ख बांटने का पर्व

पर्व के पीछे दर्शन केवल इतना है कि भाई बहन का रिश्ता प्रगाढ़ रहे। ससुराल पक्ष को लगे कि बहन के सिर पर उसके भाई का साया है। वहीं बहन सदा महसूस करे कि उसके भय को दूर करने वाला यानी भाई सदा उसके साथ है। भय+हाई का अर्थ ही होता है भय का हरण करने वाला…। पर्व पर बहन और भाई एक-दूसरे से पारिवारिक परिस्थितियों पर विचार-विमर्श करते हैं। एक दूसरे को अपनी समस्याएं बताते हैं और उनके निराकरण के लिए मिल-जुलकर प्रयास करने का वचन देते हैं।

ये है पौराणिक कथा

भगवान सूर्य की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थीं। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त रहने की वजह से यमराज बात को टालते रहे। यम द्वितीया के दिन यमुना ने भाई यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।

यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने स्नान कर पूजन करके भाई को पकवानों का भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।

यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे,उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पवज़् की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।


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Govind Pundir

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