महाशिवरात्रि पर विशेष:शिवलिंग पर जल चढ़ाने का वैज्ञानिक आधार एवं महत्व

महाशिवरात्रि पर विशेष:शिवलिंग पर जल चढ़ाने का वैज्ञानिक आधार एवं महत्व
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वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार यदि भारत के रेडियो एक्टिव मैप का अध्ययन किया जाए तो भारत सरकार के न्यूक्लियर रिएक्टर के अलावा अधिकतर ज्योतिर्लिंगों के स्थान पर सबसे अधिक रेडिएशन पाया जाता है।
उत्तराखंड ज्योतिष रत्न एवं मुख्यमंत्री द्वारा ज्योतिष वैज्ञानिक की उपाधि से विभूषित आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल शिवरात्रि पर शिवलिंग पर जलाभिषेक के आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व का विश्लेषण करते हुए बताते हैं कि शिवलिंग एक तरह का न्यूक्लियर रिएक्टर है।हिंदू धर्म के अनुसार दूध जल बेलपत्र आम अमरूद धतूरा गुड़हल आदि चढ़ाने का शिवलिंग पर विधान है क्योंकि दूध मिलावट जल शिवलिंग रूपी न्यूक्लियर रिएक्टर को शांत करता है तथा बेलपत्र आदि रिएक्टर की एनर्जी को खोजने में कारगर होते हैं।



विज्ञान एवं वेदांत में निष्णात आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पर चढ़ा जल जिस निकासी से निकलता है उसको लांघना नहीं चाहिए किससे भगवान शंकर रुष्ट होते हैं ऐसा कहा जाता है यदि उसका वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाए तो शिवलिंग पर चढ़ा जल न्यूक्लियर रिएक्टर के साथ क्रिया करके रिएक्टिव हो जाता है इसलिए उसे स्पर्श करना और लांघना हानिकारक हो जाता है परंतु होम्योपैथिक सिद्धांत के अनुसार वही शिवलिंग पर चढ़ा जल यदि नदी में जाकर मिलता है तो वह औषधि का रूप धारण कर लेता है इसीलिए विभिन्न तरह से किया हुआ रुद्राभिषेक शारीरिक मानसिक आर्थिक लाभों के साथ-साथ सकारात्मक ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण प्रदान करता है जल से रुद्राभिषेक वर्षा कराने को कुशा से रुद्राभिषेक असाध्य रोगों की चिकित्सा में दही से भवन वाहन की प्राप्ति गाय के घी से धन वृद्धि तीर्थों के जल से मोक्ष प्राप्ति इत्र से बीमारी नष्ट दूध से पुत्र प्राप्ति शक्कर से विद्वता सरसों के तेल से शत्रुओं पर विजय तथा टीवी की बीमारी दूर करने मैं सहायता प्राप्त होती है और पंचामृत से रुद्राभिषेक करने से सभी मनोकामना ओं की पूर्ति होती है आज के वैज्ञानिक युग में जब नई पीढ़ी किसी चीज पर विश्वास बिना तर्क की कसौटी पर नहीं करना चाहती है तो आवश्यक हो जाता है उन्हें प्रत्येक पूजा का वैज्ञानिक आधार बताने की।
श्रीमद् भागवत व्यास पीठ पर आसीन होने वाले आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि वेद और पुराणों के अनुसार रावण तथा भस्मासुर ने रुद्राभिषेक द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न किया रुद्र का अर्थ है दुखों का अंत रुद्राभिषेक का अर्थ है दुखों का अंत करने वाला शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाले बेलपत्र का आयुर्वेद में औषधीय महत्व है आयुर्वेद के अनुसार बेलपत्र कई महीनों तक खराब नहीं होता है उसको पुनः पुनः धोकर शिवलिंग पर अर्पण किया जा सकता है यह बेलपत्र अच्छा वायु नाशक कफ और पित्त निवारक जठराग्नि के लिए अत्यंत लाभप्रद होता है इसका जठराग्नि तेल वही इगलिन नामक क्षार तत्व औषधीय गुणों से भरपूर है घर के उत्तर पश्चिम में लगा हुआ बेल का पेड़ वंश वृद्धि करता है जबकि उत्तर दक्षिण में लगा हुआ सुख और शांति को प्रदान करता है बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।


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Garhninad Desk

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