स्वतंत्रा संग्राम सेनानी पूर्व सांसद त्रेपंन सिंह नेगी की 27वीं पुण्य तिथि पर विशेष

स्वतंत्रा संग्राम सेनानी पूर्व सांसद त्रेपंन सिंह नेगी की 27वीं पुण्य तिथि पर विशेष
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घनसाली से लोकेन्द्र जोशी।
जीवन परिचय– त्रेपन सिंह नेगी एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। वे छठी और सातवीं लोकसभा के सदस्य थे । उन्होंने टिहरी गढ़वाल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और कांग्रेस राजनीतिक दल के सदस्य थे। वह टिहरी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से दूसरी, तीसरी और चौथी उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए थे।
1950 में प्रथम उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए मनोनीत हुए।
1962 में तीसरी उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए।
1967 में चौथी उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए।
1977 में छठी लोकसभा के लिए चुने गए।
1980 में सातवीं लोकसभा के लिए चुने गए।

त्रेपन सिंह नेगी का जन्म 17 मार्च 1923 को ग्राम दल्ला, उत्तराखंड में हुआ। वह श्री हरि सिंह नेगी और श्रीमती सावित्री देवी के पुत्र थे। उन्होंने गाँव के मेंदाधर बेसिक स्कूल में पढ़ाई शुरू की और माध्यमिक शिक्षा उत्तरकाशी में हुई। हाई स्कूल और इंटरमीडिएट: प्रताप इंटर कॉलेज, टिहरी (1942) और (1944) से किया। तत्पश्चात लाहौर से कला स्नातक की डिग्री (1945-1947) और लखनऊ विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक (1952-1955) की डिग्री हासिल की।
उन्होंने 1941 में राजशाही के विरोध में योग्यता छात्रवृत्ति के परित्याग पर चर्चा की। इसके अतिरिक्त, वे टिहरी को एक स्वतंत्र रियासत बनाना चाहते थे।

उन्होंने 1941 में श्री देव सुमन के नेतृत्व में प्रजामण्डल आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लाहौर में अपनी शिक्षा के दौरान उन्होंने प्रजामण्डल के लिए खुलकर काम किया और भूमिगत रहे।
प्रजामण्डल में रहते हुए उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1947 में जब देश स्वतंत्र हुआ, प्रजामण्डल ने टिहरी राज्य को भारत संघ से अलग करने के खिलाफ टिहरी में एक आंदोलन शुरू किया, जिसके कारण प्रजामण्डल के सदस्यों की गिरफ्तारी हुई। आंदोलन को जिंदा रखने के लिए खुशहाल सिंह रांगड़ के साथ नेगी जंगल के रास्ते फरार हो गए।
उन्होंने टिहरी राजशाही के खिलाफ मसूरी में कार्यकर्ताओं को संगठित करने में भाग लिया।
त्रेपन सिंह नेगी को टिहरी जेल भेज दिया गया। राज्य सरकार ने उन्हें दो माह से अधिक दिनों के कारावास के बाद रिहा कर दिया।

उन्होंने प्रण लिया था कि जब तक टिहरी रियासत स्वतंत्र नहीं हो जाती, तब तक वे घर नहीं लौटेंगे। उन्होंने कीर्तिनगर में एक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया और कांस्टेबलों द्वारा की गई अंधाधुंध गोलीबारी से बाल-बाल बचे। गोली लगने से उनके सिर पर गंभीर चोट आई थी।

15 जनवरी 1948 को नेगी ने नागेंद्र सकलानी और मोलू भरदारी के अंतिम संस्कार के जुलूस का नेतृत्व किया, जिसमे हजारों लोगों की भीड़ जुटी। उन्होंने हजारों शोकसभाओं के साथ चिता को मुखाग्नि दी। उस दिन से लोगों ने नेगी को अपना नेता मान लिया। और आज भी उनके राजनैतिक जीवन की बड़ी लम्बी पारी को बहुत आदर्श चरित्रवान ब्यक्ति के रूप में याद की जाती है।

1948 में प्रजा मण्डल अध्यक्ष चुने गए। बाद के वर्षों में नेगी जी ने गहराई से अनुभव किया की पृथक उत्तराखंड राज्य के बिना यहाँ का विकास नही हो सकता । इसी भावना से 1977 में उन्होंने दिल्ली में उत्तराखंड परिषद का गठन किया । 1979 मे बोट हाउस क्लब, दिल्ली में विशाल ऐतिहासिक रैली का आयोजन किया। जिसमे लाखों उतराखंडियों ने राज्य के गठन के लिए रैली मे भाग लिया और उसी रैली से उत्तराखंड राज्य की मांग प्रमुखता से अस्तित्व में आई। स्व नेगी के नेतृत्व् वाली इस रैली ने प्रवासियों में उत्तराखंड राज्य के प्रति ललक जगाने मे नेगी जी ने अपने ढंग से कार्य किया। जीवन के अंतिम क्षणों तक श्री नेगी जी उत्तराखंड राज्य प्राप्ति के लिए संघर्षरत रहे और 3 फरवरी 1996 को उनका निधन हो गया।

आज पृथक उत्तराखंड राज्य अस्तित्व मे आ गया है, काश नेगी यह सब देख पाते । व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में नेगी जी सदैव चरित्रवान रहे।
उनके पौत्र अरुणोदय सिंह नेगी अब कांग्रेस पार्टी के महामन्त्री के रूप में उनकी विरासत को संभालने का कार्य कर रहे हैं। स्वर्गीय नेगी का जीवन का बहुत साफ सुधारा रहा। और राजनीति में विरले ही लोग ऐसे होते हैं। एक रोट्, एक नोट और एक वोट का नारा उनके राजनैतिक स्वछ और ईमानदार छवि का बहुत बड़ा उदाहरण रहा। टिहरी की राजनीति को इस ईमानदारी के लिए स्व नेगी और उनके मित्र स्व बड़ोनी आज भी याद किए जाते है।

स्व. नेगी जी की 27 वीं पुण्य तिथि पर कोटि कोटि नमन करते हुए विनम्र श्रद्धान्जली।


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Govind Pundir

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