कैलापीर यात्रा के छटवें दिन कोटी पहुँचने पर भब्य स्वागत

कैलापीर यात्रा के छटवें दिन कोटी पहुँचने पर भब्य स्वागत
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पिनास्वड से महासर ताल रज्जु मार्ग (ट्राली) से जुड़े
(घनसाली से-लोकेन्द्र जोशी)

गुरु कैलापीर यात्रा पिनस्वाड पहुँचने पर गाँव के लोगों ने अपने देव डोली के साथ भब्य स्वागत किया। रात भर ग्रामीणों ने भजन कीर्तन कर गीत गाने गा बजा कर आनंद लिया। पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य,भरत सिंह राणा, पूर्व प्रधान सुरेंद्र राणा,धर्म सिंह जखेडी और वर्तमान प्रधान के नेतृत्व में आराध्य देव गुरु कैलापीर को अग्रिम पड़ाव के लिए विदा किया।
गुरु कैलापीर बालगंगा घाटी के सुदूर एवं अंतिम गाँव पिनस्वाड से वापस उर्णी गाँव हो कर कोटि गाँव में पहुँचने पर प्रधान जयवीर सिंह पूर्व प्रधान दिनेश चंद्र भट्ट, सूरत सिंह,कुँवर सिंह विजेंद्र सिंह आदि के आगवानी में पूरे ग्राम वासियों के द्वारा अपने आराध्य देव का भब्य स्वागत कर आशीर्वाद लिया गया।

वैसे तो गुरु कैलापीर का क्षेत्र कुश कल्याणी तक है – जिसके संबंध में इतिहासकार बताते हैं कि अक्रांताअों के भय से चम्पावत से लोग गुरु कैलापीर को लेकर चलते चलते थाती बूढाकेदार में रहने लगे संक्षिप्त है कि– 18 वीं सदी में महराज सुदर्शन शाह की माता के स्वप्न में गुरु कैलापीर आए और उनके द्वारा गोरखाओं पर विजय प्राप्त करने का विधान बताया उसी का अनुसरण करते हुए राजा ने ब्रिटिश हुकूमत से मदत मांग कर, आराध्य देव गुरु कैलापीर को को आमंत्रित कर बोगस्याली विद्या से गोरखाओं को परास्त किया। और इस बड़ी विजय से राजा ने अपनी रियासत के नब्बे जुला क्षेत्र की आय को गुरु कैलापीर को भेंट कर दी।

नब्बे जुला के तीन कठूड – थाती कठूड टिहरी में तथा, गाजणा और नैल्ड कठूड अब उत्तरकाशी जनपद में प्रशासनिक इकाई के रूप में बंटे हैं। किंतु यहाँ के वासिन्दों का आराध्य देव गुरु कैलापीर आज भी है और क्षेत्र वासियों का रोटी बेटी का रिस्ता कायम है, किंतु मोटर मार्गों का बड़ा अभाव है।

थाती और थाती कठूड का पूरा क्षेत्र चार धाम पैदल चार धाम के यात्रा पड़ाव में बूढाकेदार के साथ गुरुकैलापीर के प्रति सदियों से लोगों की आस्था यथावत चली आ रही है । और गुरु कैलापीर की महिमा का इतिहास 500 वर्षों के अधिक समय से है।

आपको बताते चलें कि उत्तराखंड के गांधी श्रद्धेय इंद्रमणि बडोनि राज्य विरोधियों को राज्य के समर्थन में तर्क देते कि अकेला भिलंगना क्षेत्र उत्तराखंड राज्य का प्रयाप्त संसाधन वाला क्षेत्र है। यहाँ की नदी घाटियाँ, ऊँचे हिम शिखर, और विशाल बुग्याल, जड़ी बूटियों से भरे क्षेत्र और सघन बन प्रमुख है। साहसिक और धार्मिक / तीर्थाटन वाला यह क्षेत्र किसी रूप में कम नहीं है।

वास्तव मे हमारे लोग प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी की बोतलों में शुद्ध और पवित्र जल भर भर कर भी बेचेंगे तो उनकी स्वयं की अर्थिकी बहुत मजबूत होगी। और यहाँ के युवाओं को दस पन्द्रह हजार की नौकरी के लिए महा नगरों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। आज हमारी उस संभावनाओं पर पांच सितारा होटल संस्कृति ने डाका डाल कर विसलरि और क्या क्या नाम से बाजार में उतरी हुई है।

भिलंगना क्षेत्र के खास कर गुरुकैलापीर के महासरताल, सहस्र ताल, क्यार्की बुग्याल और कुश कल्याणी का चारों ओर के सुंदर अद्भुत अलौकिक क्षेत्र को धार्मिक और साहसिक पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की आवश्यकता है और चार धाम क्षेत्र को मोटर मार्ग से जोड़ना जरूरी है।

मेरी बात गौर से पढ़िए और उस पर मनन कीजिए कि– पिनस्वाड से महासर् ताल की अनुमानित पैदल दूरी चार किलोमीटर है।जिसकी हवाई दूरी मुशिकल से डेढ़ से दो किलोमीटर होगी। कितना अच्छा और लाभकारी होगा!? कि– अगर “पिनस्वाड से महासर् ताल” को माँ सुरकंडा मंदिर की तर्ज रज्जू मार्ग से जोड़ा जाय। तो आज का अति दुर्गम और पिछड़ा पिनस्वाड क्षेत्र के प्रत्येक नागरिक का भविष्य हर तरह से खुशहाल होगा।

इसी तर्ज पर गेवाली से सहस्र ताल की खड़ी चढ़ाई पर रज्जु मार्ग से जोड़ने पर भी लाभ ही लाभ होगा। यह उदाहरण मात्र आपके सामने है। जिसको वर्षों पहले साकार हो जाना चाहिए था। असीमित सम्भावनाओं का खजाना इस सुंदर और अलौकिक क्षेत्र विकास की बाट जोह रहा है।

—” मेरा मानना है कि यहाँ का निवासी राजनीति के मोहरे न बनें ! और सावधान हमे होना चाहिए! हमारी कई पिढियाँ संसाधनों के अभाव से कष्ट को झेलते हुए मर कफ् गयी है।जिसका अहसास हमे रति भर नहीं हुआ।और वर्तमान पीढ भी पिछलगु बनी हुई है।हमें गुलाम मानसिकता से बाहर आना ही पड़ेगा तभी कुछ साकार हो सकेगा ।

सुझाव है कि चल रही गुरु कैलापीर पवित्र और ऐतिहासिक यात्रा जैसे संगठित रहते हुए क्षेत्र के विकास में काम करने की अवश्यक्ता है। फालतू की राजनैतिक प्रतिबद्धता त्यागनी होगी।

हमे आपदा की दृष्टि पर गहन विचार करना होगा और पहले से तैयार रहना होगा। साशन प्रशासन तभी जागता है, जब पानी सर गुजर जाता है। ऐसा इस लिए की गुरुकैलापीर यात्रा क्षेत्र ही नहीं बल्कि समूचा विकास खण्ड आपदा संभावित क्षेत्र है।जँहा मौसम बे मौसम में भी आपदा आती रहती है। धर्म गंगा बाल गंगा के लोग प्रति वर्ष इससे प्रभावित होते हैं। इसके लिए कोटि गाँव से जराल ताल मारवाड़ी मेड गाँव को मोटर मार्ग से जोड़ने होंगे।झाला कोटि रग्स्या, अगुँडा कोटि मोटर मार्ग भी आपदा की दृष्टि से निर्मित किया जाना ब्यापक जन हित में अवश्यक है। वैज्ञानिक तरीके से मोटर मार्गों का निर्माण करना होगा। और मलबे को इधर उधर बिखेरने के बजाय उसके लिए डॉम्पिग याड की ब्यवस्था की जानी आवश्यक है।

एक खास बात और है विकास के नाम पर लूट पाट वाली संस्कृति पर हमे रोक लगानी होगी। एक अच्छा अस्पताल, अच्छे स्कूल और दुर्घटना विहीन मोटर मार्ग की कल्पना तभी जाकर सार्थक होगी।”

गुरु कैलापीर आज अपने सेकडों यात्रियों की टोली के साथ निर्धारित पड़ाव मेड गाँव में है। जंहा लोग श्रद्धा के साथ सत्कार कर रात्रि में कीर्तन भजन के साथ हर्ष और उल्लास में हैं। क्षेत्र वासियों की सुख समृद्धि एवं दीर्घायु की अनंत शुभकामनाएं। जय गुरु कैलापीर। जय बूढाकेदार।
: —क्रमशः -जारी


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Govind Pundir

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