सत्येश्वर महादेव मंदिर में भंडारे का आयोजन किया गया

सत्येश्वर महादेव मंदिर में भंडारे का आयोजन किया गया
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टिहरी गढ़वाल 13 अगस्त । सत्येश्वर महादेव मंदिर में रविवार को सावन के अंतिम सोमवार के एक दिन पहले भंडारे का आयोजन किया गया। भंडारे में शहर के तमाम श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया।  सत्येश्वर महादेव मन्दिर के महंत गोपाल गिरी के अनुसार हर साल सावन के अंतिम सोमवार से एक दिन पहले भंडारे का आयोजन किया जाता रहा है। जिसमें श्रद्धालु अपनी भागीदारी निभाते हैं। 

वर्तमान महंत श्री गोपाल गिरि जी के अनुसार उनके पूर्वजों को राजा ने इस मंदिर का पुजारी नियुक्त किया था।  राजा की तरफ से मंदिर के पुजारी का पन्द्रह रुपये मासिक वेतन, और मंदिर के पूजा-पाठ तथा अन्य व्यवस्था-प्रबंधन हेतु दस हजार रुपये वार्षिक बन्धान निर्धारित था लेकिन वर्ष १९९८ से अब तक वेतन और बन्धान राशि दोनों में से कुछ भी नहीं दिया जा रहा है।  मंदिर की प्रबन्ध समिति गठित न होने के कारण मंदिर की सारी व्यवस्था अब महंत स्वयं संभालते हैं।

*तो आइए जानते हैं सत्येश्वर महादेव मंदिर के बारे *

टिहरी बांध के कारण जब टिहरी का विस्थापन होने लगा तो मन्दिरों को भी विस्थापित किया जाने लगा। इस क्रम में नगर के सभी मन्दिरों की नई टिहरी नगर में स्थापना की जाने लगी। इस मन्दिर की स्थापना वर्ष 2000 में की गई थी। मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा तीन छोटे, दो मध्यम मंदिर है ।

मुख्य मंदिर में एक विशाल शिवलिंग और उसके पीछे माता लक्ष्मी और विघ्न हर्ता गणेश जी की मूर्तियां स्थापित हैं। जबकि छोटे वाले मंदिरों में से एक मे “भैरव बाबा का मंदिर” दूसरे में भगवान शिव तथा माता पार्वती की वरदहस्त मुद्रा वाली मूर्तियां तीसरे में मां त्रिपुर सुन्दरी दुर्गा, विघ्नहर्ता गणेश और मां काली की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं।  

** पौराणिक कथा **

पुरानी टिहरी में लगभग 200 साल पहले इस  मंदिर की स्थापना हुई थी । कहा जाता था कि किसी चरवाहे की गाय जंगल की कुछ झाड़ियों में रोज स्वयं दूध गिरा कर आया करती थी। चरवाहे ने जब उस स्थान पर जाकर देखा तो पाया कि झाड़ियों में एक शिवलिंग था जिस पर गाय रोज दूध गिरा देती थी। चरवाहे ने इस घटना के बारे में राजा को सूचित किया और राजा ने कुछ बुद्धिजीवियों की सलाह पर वहां एक छोटे से मंदिर का निर्माण कर पुजारी नियुक्त कर दिया। इस मंदिर के पुजारी महंत हैं।

बताते हैं कि जब गोरखाओं ने उत्तराखंड पर आक्रमण किया तो उन्होंने यहां के कई मंदिरों और धार्मिक स्थलों को तहस-नहस करना शुरू कर दिया। जब वे इस मन्दिर तक पहुंचे तो इस मन्दिर को भी तोड़ा और शिवलिंग को उखाड़ फेंकने का प्रयास किया, लेकिन बहुत खोदने के बाद भी शिवलिंग को पूरा नहीं निकाल पाये। अंत में उन्होने शिवलिंग तोड़ने का प्रयास किया, शिवलिंग पर प्रहार करते ही शिवलिंग का एक हिस्सा टूटा और टिहरी से कुछ दूर देवलसारी में गिरा, जहां आज देवलसारी मन्दिर का शिवलिंग स्थापित है। कहा जाता है कि तभी से इस मन्दिर का नाम "सत्येश्वर महादेव मंदिर" पड़ा।

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Govind Pundir

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