नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा देवी भागवत कथा कथा अमृतस्वरूपा है, इसके श्रवण से अपुत्र पुत्रवान् दरिद्र धनवान् और रोगी आरोग्यवान् हो जाता है

नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा देवी भागवत कथा कथा अमृतस्वरूपा है, इसके श्रवण से अपुत्र पुत्रवान् दरिद्र धनवान् और रोगी आरोग्यवान् हो जाता है
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देहरादून 20 सितम्बर। अजबपुर कंला स्थित प्राचीन शीतला माता मंदिर में चल रही देवी भागवत कथा में नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा कि यह कथा अमृतस्वरूपा है, इसके श्रवण से अपुत्र पुत्रवान् दरिद्र धनवान् और रोगी आरोग्यवान् हो जाता है। जो स्त्री वन्ध्या, का कवन्न्या और मृतवत्सा हो, वह भी देवीभागवत की कथा सुनने से दीर्घजीवी पुत्र की जननी बन जाती है। जिसके घर में श्रीमद्देवीभागवत की पुस्तक का नित्य पूजन होता है, वह घर तीर्थस्वरूप हो जाता है।

वहाँ रहने वाले लोगों के पास पाप नहीं टिक सकते। जो अष्टमी, नवमी अथवा चतुर्दशी के दिन भक्ति के साथ यह कथा सुनता या पढ़ता है, उसे परमसिद्धि उपलब्ध हो जाती है। इसका पाठ करने वाला यदि ब्राह्मण हो तो प्रकाण्ड विद्वान्, क्षत्रिय हो तो महान् शूरवीर, वैश्य हो प्रचुर धनालय और शूद्र हो तो अपने कुल में सर्वोत्तम हो सकता है। (अध्याय १)

मुनियों कहने पर हम पति-पत्नी दोनों के हृदय में अपार हर्ष छा गया। मैंने अत्यन्त भक्तिपूर्वक उनको प्रणाम किया और हाथ जोड़कर कहा- भगवन् ! आप परम दयालु हैं। यदि मुझपर आपकी कृपा हो तो मधुरापुरी में रहकर ही आप मेरे लिये भगवती जगदम्बिका की आराधना आरम्भ कर दीजिये । महामते ।

मैं यहाँ बंदी इस समय मुझसे कुछ होने की सम्भावना नहीं दीखती । अतः आप ही इस दुःखरूपी दुखर सागर से उद्धार करने की कृपा कीजिये । इस प्रकार मेरे कहने पर मुनिवर गर्गनी प्रसन्न होकर बोले-‘वसुदेव ! तुम मेरे अति प्रेमपात्र हो, अतश्व तुम्हारे कल्याणार्थ में अवश्य यत्न करूँगा।’

फिर तो, प्रेमपूर्वक प्रार्थना करने पर मुनिवर गर्ग जी ने भगवती जगदम्बिका की आराधना करने के लिये कुछ ब्राह्मणों को साथ लेकर विन्ध्यपर्वत पर चले गये। वहाँ पहुँचकर वे मक्कों के मनोरथ पूर्ण करने वाली जगन्माता के जप और पाठ संलम होकर उनकी आराधना करने लगे। अनुष्ठान समाप्त होने पर आकाशवाणी हुई- । मैं प्रसन्न हूँ तुम्हारा कार्य अवश्य सिद्ध होगा ।

पृथ्वी का भार दूर करने के लिये मैंने श्री विष्णु को आदेश दिया है। बहुदेव के यहाँ देवकी के गर्भ से वे अपना अंशावतार ग्रहण करेंगे। उनके प्रकट होते ही वसुदेवजी कंस के डर- से उन्हें लेकर गोकुल मै नन्दजी के घर पहुँचा देंगे।


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Garhninad Desk

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