अतिक्रमण हटाओ अभियान से हल्कान हैं पहाड़ के ग्रामीण व्यापारी, पर बड़े शहरों के मठाधीशों के अतिक्रमण हटाने की हिम्मत नहीं  : शांति प्रसाद भट्ट 

अतिक्रमण हटाओ अभियान से हल्कान हैं पहाड़ के ग्रामीण व्यापारी, पर बड़े शहरों के मठाधीशों के अतिक्रमण हटाने की हिम्मत नहीं  : शांति प्रसाद भट्ट 
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टिहरी गढ़वाल 2 सितम्बर। यूं तो प्रदेश भर में इन दिनों अतिक्रमण हटाओ अभियान जोरो पर है, किंतु पहाड़ी जिलों के परंपरागत ग्रामीण बाजारों में अतिक्रमण हटाओ अभियान जोर शोर से चल रहा है, इस अभियान में जहां आम जनता/ मतदाता हल्कान है, वहीं सत्ताधारी नुमाइंदे जनता से मुंह छिपाकर भागे फिर रहे है, वह अपनी डबल इंजन की सरकार से ही पूछ ले कि यह क्यों हो रहा है? क्यों लोगों को उजाड़ा जा रहा है? वैसे भी इन पहाड़ वासियों ने अभी भारी बारिश में आपदा का दंश झेला है और अब ऊपर से अतिक्रमण से भी जूझना पड़ रहा है।

🔴 क्या है अतिक्रमण अभियान की सच्चाई

दिल्ली निवासी एक व्यक्ति प्रभात गांधी द्वारा मा.उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल को एक पत्र लिखा गया कि “नैनीताल के खुटानी मोड़ से पदमपुरी तक”अतिक्रमण के कारण राजमार्ग की स्थिती खराब है”इस पर माननीय उच्च न्यायालय ने स्वत: सज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका (wppil no 117 of 2023) के तहत सुनवाई करते हुए मा.मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ द्वारा दिनांक 26 जुलाई 2023 को यह आदेश पारित किया गया कि 

 (संलग्न आदेश की प्रति)

 पैरा संख्या 05

“We would not like to jump to any conclusion but the possibility of tha officers on the ground belonging to the aforesaid departments being in hand in gloves with such encroachers cannot be ruled out”

साथ ही सभी DM और DFO को रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश है। यद्यपि कोई ऐसा राज्य नही है ,जो अतिक्रमण से न जूझा हो इसलिए समय समय अनेकों लैंडमार्क आदेश माननीय सुप्रीम कोर्ट के है,जिनमें अनेकों मार्गदर्शी सिद्धांतों का समावेश है,

जैसे: 

◾ओल्गा टेलिस बनाम बांबे नगर निगम व अन्य 1985,

◾जुबली हिल्स लेबर वेलफेयर एसोसिएशन बनाम हैदराबाद नगर निगम 2003

◾अभय राज सिंह बनाम महापालिका इलाहबाद 

◾सौदान सिंह बनाम नई दिल्ली नगर पालिका 1989

◾हल्द्वानी(बनभूलपुरा) केस जिसमे उच्च न्यायालय के आदेश पर मा. सुप्रीम कोर्ट ने स्थगन दिया था।

मा.न्यायालयो के उपरोक्त सभी आदेशो का आदर/ सम्मान है 👏

 ” किंतु वर्तमान में विशेष कर पहाड़ी जिलों के छोटे ग्रामीण बाजारों को उखाड़/तोड़ने पर आमादा सरकार के बुलडोजर कहर बनकर बरस रहे है। जबकि सरकार के पास उपरोक्त आदेशों के आलोक में मा. सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का न्यायिक रास्ता बाकी था? या अध्यादेश लाया जा सकता था? 

 ❓अब जनता सवाल पूछ रही है?

 1: जब मा. उच्च न्यायालय में उक्त पिटीशन पर सुनवाई हो रही थीं तब सरकारी वकीलों की फौज क्या कर रही थी, क्यो नही माननीय न्यायालय में धरातलीय रिपोर्ट प्रस्तुत की गई? क्यों नहीं मा. न्यायालय में चिन्हीकरण कर  रिपोर्ट प्रस्तुत करने का समय मांगा गया। 

 2 : जिन राजमार्गों पर ग्रामीणों ने अपनी ही भूमि पर निर्माण किया है, उन्हे किस कानूनी प्राविधान में तोड़ा गया है ? क्या उन्हें प्रतिकर दिया गया या दिया जाएगा?  (जैसा कि चंबा धनोल्टी मार्ग पर)

 3: जब सरकार शराब की दुकानों को बचाने के लिए अध्यादेश ला सकती है, तो अपने इन ग्रामीण बाजारों के व्यापारियों/मतदाताओं को बचाने के लिए क्यो नही? पहले इन पर GST की मार अब अतिक्रमण की मांग।

4: बड़े शहरों में बड़े रसूगदारो ने जो अवैध कब्जे किए हुए है उन्हें क्यों नहीं अतिक्रमण अभियान में तोड़ा जा रहा है, केवल गरीब और पहाड़ के परम्परागत लोगों पर ही यह कार्यवाही क्यो ? (देहरादून सहित अन्य शहरों के बड़े होटल, धार्मिक स्थल, और नेताओं के नाते रिश्तेदारो के अतिक्रमण)

5: बड़े शहरो में जो धार्मिक स्थल मुख्य राजमार्गो पर अवैध निर्मित है,और जिनसे हमेशा दुर्घटना संभावित है, उन्हे क्यो नही हटाया गया? 

 5 : क्या माननीय उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में किसी की दुकान/भवन आदि को तोड़ने के एवज में उचित प्रतिकर देने से मना नही किया है? तो क्या सरकार ने ध्वस्तीकरण से पूर्व कोई फौरी राहत की घोषणा की है।

 6:क्या राज्य सरकार मा. उच्च न्यायालय के आदेश को मा. सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी? या नही?

7: अतिक्रमण अभियान वाले क्षेत्रों से भाजपा के सांसद विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, सदस्य जिला पंचायत, प्रमुख सभासद, पंच प्रधान और उनके झंडाबरदार नदारद क्यों है ?

8: विगत पांच वर्ष पूर्व भी निकाय चुनावों से पहले अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया गया था, जबकि तब न्यायालय का कोई आदेश भी नहीं था, एक आदेश मा. उच्च न्यायालय ने दिया था कि “तालाबों पर जिसने अतिक्रमण किया है उसे हटाया जाए,(संलग्न आदेश की प्रति)

लेकिन तब भी पहाड़ो में इसी तरह से लोगों को परेशान किया गया था, जबकि पहाड़ में कोई ऐसा तालाब नही था।

कांग्रेस के साथियों ने जब इसका प्रतिकार किया तो मुझ सहित मेरे सहयोगी कांग्रेस के साथियों पर मुकदमे दर्ज किए गए, जिसे हमने मा. उच्च न्यायालय में चुनौती दी और मा उच्च न्यायालय ने हम पर जबरन किए मुकदमे खत्म कर दिए थे।

अब पुनः निकाय चुनाव सामने है और अतिक्रमण हटाओ अभियान भी जारी है। जनता तय करे कि क्या बेरोजगारी, महंगाई, खत्म हो गई? क्या पहाड़ की सड़कों की दशा सुधरी है? जंगली जानवरों के आतंक से राहत मिली है? आपने जिन्हें सांसद, विधायक, चुना वे इस संकट में आपके बीच खड़े है?


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Govind Pundir

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