गीत

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इक रौशनी की ज़िद लिए
चलते रहे, चलते रहे
काली अंधेरी राह में
हम दीप बन जलते रहे।

हमने अपने दर्द को ही
गीत-ग़ज़लों में रचा
हमने ‘स्व’ से ‘सर्व’ हो कर
सामने ख़ुद को रखा
खिलखिलाती लौ रहे
हम मोम-सा गलते रहे …

इस तमस को चीर इक दिन
होगी उजली-सी सहर
हर बुझे दिल में उठेगी
सदियों से सोई लहर
उस सहर की आस में
हम शाम-सा ढलते रहे …

  • शैलजा सिंह

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Govind Pundir

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