अंकिता को न्याय मिला, लेकिन सवाल अब भी बाकी हैं

टिहरी गढ़वाल 30 मई 2025 । अंकिता भंडारी हत्याकांड में अदालत का फैसला आया — तीनों आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। साथ ही 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है। यह निर्णय न केवल एक बेटी को न्याय दिलाने की दिशा में कदम है, बल्कि उस सामूहिक संघर्ष की भी जीत है, जो समाज, मीडिया और आम नागरिकों ने मिलकर लड़ा।
: गोविन्द पुंडीर संपादक गढ़ निनाद न्यूज पोर्टल
लेकिन क्या केवल न्यायालय का यह फैसला ही पर्याप्त है? क्या इससे महिलाओं के कार्यस्थल पर सुरक्षित होने का भरोसा लौट आया है? क्या प्रशासन और व्यवस्था ने इस त्रासदी से कुछ सीखा है?
क्या है फैसला: अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश, कोटद्वार की अदालत ने आज बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड (मुकदमा अपराध संख्या 1/22) में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुख्य अभियुक्त पुलकित आर्य सहित तीनों दोषियों को विभिन्न धाराओं में कठोर दंड से दंडित किया है।
अभियुक्त:1 पुलकित आर्य को –धारा 302 आईपीसी (हत्या) में कठोर आजीवन कारावास एवं ₹50,000 जुर्माना ,धारा 201 आईपीसी (साक्ष्य नष्ट करना) में 5 वर्ष का कठोर कारावास एवं ₹10,000 जुर्माना, धारा 354ए आईपीसी (यौन उत्पीड़न) में 2 वर्ष का कठोर कारावास एवं ₹10,000 जुर्माना, धारा 3(1)(d), अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (ITPA) में 5 वर्ष का कठोर कारावास एवं ₹2,000 जुर्माना
अभियुक्त: 2,3 सौरभ भास्कर एवं अंकित गुप्ता को–धारा 302 आईपीसी में कठोर आजीवन कारावास एवं ₹50,000 जुर्माना , धारा 201 आईपीसी में 5 वर्ष का कठोर कारावास एवं ₹10,000 जुर्माना, धारा 3(1)(d), ITPA में 5 वर्ष का कठोर कारावास एवं ₹2,000 जुर्माना , न्यायालय ने मृतका के परिजनों को ₹4 लाख का प्रतिकर (मुआवज़ा) प्रदान करने का भी आदेश दिया है।
क्या है मामला: अंकिता एक रिसॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट थी — एक युवा लड़की जो अपनी मेहनत और ईमानदारी से जीवन गढ़ना चाहती थी। लेकिन जिस स्थान पर वह काम करती थी, वहां उससे अवैध काम करवाने का दबाव डाला गया। विरोध करने पर उसकी हत्या कर दी गई। यह हत्या केवल एक जीवन का अंत नहीं थी, यह उस व्यवस्था का चेहरा भी उजागर करती है जो प्रभावशाली लोगों के सामने अक्सर नतमस्तक हो जाती है।
इस मामले में तथाकथित ‘वीआईपी कोण’ और जांच में हुई देरी ने गंभीर सवाल उठाए। यदि जनदबाव, मीडिया की सतर्कता और पीड़ित परिवार की अडिगता न होती, तो शायद सच्चाई को दफन कर दिया जाता। यह स्थिति बताती है कि हमारी जांच एजेंसियों और प्रशासनिक तंत्र में अब भी पारदर्शिता और स्वतंत्रता की कमी है।
इस घटना ने यह भी साफ कर दिया है कि असंगठित क्षेत्र — खासकर पर्यटन, होटल और सेवा क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं के लिए कोई ठोस सुरक्षा ढांचा नहीं है। वहां कानून या तो लागू नहीं होते, या फिर प्रभावहीन हो जाते हैं। अंकिता की हत्या ने इस सच्चाई को कड़वी स्पष्टता से हमारे सामने रख दिया।
अदालत का फैसला स्वागत योग्य है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह केवल एक प्रकरण का अंत है, जबकि सामाजिक सुधार की यात्रा अभी शुरू हुई है। हमें ऐसे माहौल का निर्माण करना होगा जहां महिलाएं निडर होकर काम कर सकें, और यदि उनके साथ अन्याय हो, तो उन्हें न्याय मिलने में वर्षों न लगें।
सरकार को चाहिए कि वह इस मामले से सबक लेते हुए असंगठित क्षेत्रों के लिए विशेष निगरानी प्रणाली बनाए, कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानूनों को कठोरता से लागू करे, और जांच एजेंसियों को राजनीतिक या बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त रखे।
अंकिता चली गई, पर उसकी कहानी अब एक चेतावनी बन चुकी है— कि जब तक हम अपने संस्थानों को जवाबदेह और समाज को संवेदनशील नहीं बनाते, तब तक हर निर्णय अधूरा रहेगा।