राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्य ने वन अनुसंधान संस्थान का दौरा किया

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्य ने वन अनुसंधान संस्थान का दौरा किया
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देहरादून 28 मई 2025 । राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के माननीय सदस्य श्री निरुपम चकमा ने आज प्रतिष्ठित वन अनुसंधान संस्थान (FRI), देहरादून का दौरा किया। इस दौरे का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के लिए संस्थान में लागू सुरक्षा उपायों की समीक्षा करना और संस्थान की विविध विरासत एवं अनुसंधान पहलुओं का अवलोकन करना था।

इस अवसर पर वन अनुसंधान संस्थान के निदेशक की सह-अध्यक्षता में एक समीक्षा बैठक आयोजित की गई, जिसमें FRI और NCST के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। बैठक के दौरान निदेशक महोदय ने एक विस्तृत प्रस्तुति के माध्यम से संस्थान की संरचना, अनुसूचित जनजाति कर्मचारियों की वर्तमान स्थिति तथा उनके प्रतिनिधित्व से संबंधित पहलुओं पर प्रकाश डाला।

संस्थान के संग्रहालयों का भ्रमण और विरासत का अनुभव

बैठक के पश्चात श्री चकमा ने संस्थान के विभिन्न संग्रहालयों, हर्बेरियम, और ज़ाइलारियम का भ्रमण किया। उन्होंने संस्थान के समृद्ध वानिकी विरासत संग्रह की सराहना करते हुए कहा कि यह भारत की जैविक विविधता और पारंपरिक ज्ञान का अद्भुत संकलन है।

हर्बेरियम संग्रह, जिसमें लगभग 3,50,000 वनस्पति नमूने शामिल हैं, ने आयोग का विशेष ध्यान आकर्षित किया। इस दौरान बुंदेलखंड क्षेत्र से संबंधित ‘संजीवनी बूटी’ का एक दुर्लभ नमूना भी प्रदर्शित किया गया, जिसने उपस्थित जनों की विशेष रुचि प्राप्त की।

ज़ाइलारियम भ्रमण के दौरान आयोग को भारत सहित 45 देशों की लकड़ी के 20,000 से अधिक नमूनों की जानकारी दी गई। प्रतिनिधिमंडल को भारत की महंगी एवं वाणिज्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण लकड़ी की प्रजातियों — जैसे कि लाल चंदन, चंदन, सागौन, साल, शीशम — के बारे में वैज्ञानिकों द्वारा विस्तार से बताया गया।

आयोग के सदस्य ने वन संवर्धन संग्रहालय, इमारती और गैर-इमारती वन उत्पाद संग्रहालय तथा वन कीट विज्ञान संग्रहालय का भी अवलोकन किया, जहां संस्थान के विशेषज्ञों ने अनुसंधान और संरक्षण प्रयासों से संबंधित विविध जानकारियाँ प्रस्तुत कीं।

संस्थान को सराहना और धन्यवाद

अपने समापन उद्बोधन में श्री चकमा ने वन अनुसंधान संस्थान के निदेशक एवं वैज्ञानिकों द्वारा दी गई जानकारी तथा संस्थान की अनुसंधान विरासत से जुड़े अनुभव को “अत्यंत उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक” बताया। उन्होंने अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा के क्षेत्र में संस्थान की भूमिका की प्रशंसा करते हुए भविष्य में भी इसी तरह के सहयोग की अपेक्षा जताई।


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Garhninad Desk

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