‘कार्बन क्रेडिट योजना’ बनेगी ग्रामीण विकास का आधार: किशोर

उत्तराखंड के ग्रामीण विकास का हरित भविष्य, अब गांवों के हाथ में
टिहरी गढ़वाल। उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत सामान्य निर्वाचन 2025 के अवसर पर टिहरी विधायक श्री किशोर उपाध्याय ने एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए पंचायत चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशियों से अपील की है कि वे ‘कार्बन क्रेडिट योजना’ को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करें और जीतने के बाद इसे अपने गांवों में लागू करने का संकल्प लें।
श्री उपाध्याय ने कहा कि अब समय आ गया है जब गांवों की हरियाली, जंगल और पर्यावरण को केवल संरक्षित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उन्हें आर्थिक सशक्तिकरण का आधार भी बनाया जाना चाहिए। कार्बन क्रेडिट योजना के माध्यम से ग्राम पंचायतें अंतरराष्ट्रीय कार्बन बाजार में भागीदारी कर सकती हैं और जंगलों द्वारा अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड के बदले में आय प्राप्त कर सकती हैं।
उन्होंने बताया कि इस योजना से पंचायतों को न केवल स्थायी वार्षिक आय होगी, बल्कि युवाओं को रोजगार, पर्यावरण की सुरक्षा और स्थानीय संसाधनों के पारदर्शी उपयोग के रास्ते भी खुलेंगे। टिहरी जनपद के हेरवाल गांव में इस योजना को प्रायोगिक तौर पर लागू किया जा चुका है, जहां इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
श्री उपाध्याय ने प्रत्याशियों से आह्वान किया कि वे अपने क्षेत्रों की वन भूमि का वैज्ञानिक मूल्यांकन कराएं, कार्बन प्रोजेक्ट पंजीकरण के लिए राज्य और केंद्र सरकार की प्रक्रियाओं को अपनाएं तथा विशेषज्ञ एजेंसियों के माध्यम से कार्बन क्रेडिट को बाजार तक पहुंचाने की दिशा में ठोस प्रयास करें।
उन्होंने यह भी कहा कि गांवों की समृद्धि अब उनके जंगलों और हरियाली में निहित है। “हर पेड़, हर जंगल पंचायत की आर्थिक रीढ़ बन सकता है – बशर्ते हम इसे नीति और संकल्प का हिस्सा बनाएं।”
इस पहल को राज्य में ग्रामीण विकास के एक नए और हरित मॉडल के रूप में देखा जा रहा है, जिससे न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा बल्कि गांवों की आत्मनिर्भरता को भी बल मिलेगा।
🌿 क्या है कार्बन क्रेडिट योजना?
यह एक पर्यावरणीय आय प्रणाली है, जिसमें जंगलों द्वारा अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड को एक निश्चित मात्रा में मापा जाता है और उसका आर्थिक मूल्य तय कर उसे बेचा जाता है। इससे ग्रामीणों को सीधे वित्तीय लाभ मिलेगा।
🌱 गांवों को होंगे ये लाभ:
- पंचायत स्तर पर बाजार से सीधे वार्षिक आय
- स्थानीय युवाओं की भागीदारी और रोजगार
- वनों की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा
- आत्मनिर्भर ग्राम पंचायतों की दिशा में ठोस कदम