श्रावण मास में शिव आराधना से मिलती है मोक्ष की राह: नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में 16 जुलाई से शुरू होगा सावन, हरेला पर्व से होती है शुरुआत
हरिद्वार 15 जुलाई। सनातन धर्म में श्रावण मास को भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्ति का श्रेष्ठ समय माना गया है। नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने श्रावण मास की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह महीना अध्यात्मिक साधना, मंत्र जाप, रुद्राभिषेक और सात्विक जीवनशैली के लिए विशेष फलदायी है। यह मास न केवल शिव की आराधना के लिए, बल्कि साधना और आत्मिक उन्नति के लिए भी सर्वोत्तम माना गया है।
स्वामी रसिक महाराज ने गढ़ निनाद न्यूज को बताया कि जहां देश के अधिकांश हिस्सों में श्रावण मास 11 जुलाई से प्रारंभ हो चुका है, वहीं उत्तराखंड, हिमाचल और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्रों में यह सौर पंचांग के अनुसार 16 जुलाई से शुरू होगा। इन क्षेत्रों में सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश को मासांतरण का आधार माना जाता है, जिसे संक्रांति कहा जाता है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में श्रावण मास की शुरुआत हरेला पर्व से होती है, जो प्रकृति पूजन और हरियाली के सम्मान का प्रतीक है। कुमाऊं अंचल में इस दिन घर-घर पूजा-अर्चना कर सावन का स्वागत किया जाता है।
स्वामीजी ने श्रद्धालुओं से आग्रह किया कि श्रावण मास में प्रत्येक सोमवार “ॐ नमः शिवाय” का जप कम से कम 1100 बार करें और शिव सहस्त्रनाम का पाठ करें। इससे व्यक्ति को अकाल मृत्यु, पितृ दोष, कालसर्प दोष और गृह दोष से मुक्ति मिलती है।
उन्होंने कहा कि शिव पूजन में बेलपत्र का विशेष महत्व है। बेलपत्र का अर्पण भक्तों को समस्त पापों से मुक्त करता है। हालांकि बेलपत्र को अमावस्या, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी और सोमवार के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
श्रावण मास में मंगला गौरी व्रत का भी उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह व्रत अविवाहित कन्याओं और विवाहित स्त्रियों के लिए अत्यंत शुभ होता है। माँ पार्वती की पूजा से योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति और वैवाहिक जीवन में सौहार्द बढ़ता है।
पूजा विधि की सावधानियों पर बल देते हुए उन्होंने बताया कि शिव पूजन में तुलसी, हल्दी, शंख, केतकी और चंदन का प्रयोग वर्जित है। साथ ही पूजा में क्रोध और नकारात्मकता से दूर रहना चाहिए। पूजन के दौरान शिव के साथ-साथ उनके परिवार – पार्वती, गणेश, नंदी और कार्तिकेय की पूजा भी करनी चाहिए।
स्वामी रसिक महाराज ने अंत में कहा कि श्रावण मास केवल एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धता और सात्विकता का पर्व है। इस मास में तामसिक भोजन, मद्यपान और हिंसा से दूर रहना चाहिए। भगवान शिव सभी के लिए समभाव रखते हैं – राक्षसों को भी वरदान देने वाले भोलेनाथ श्रद्धा और समर्पण मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं।