टिहरी सत्येश्वर महादेव मंदिर में भंडारे का आयोजन: 200 साल पुराना है मंदिर का इतिहास

टिहरी गढ़वाल, 10 अगस्त। सावन के अंतिम सोमवार से एक दिन पहले रविवार को सत्येश्वर महादेव मंदिर में भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें शहर के बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। महंत गोपाल गिरी ने बताया कि यह परंपरा हर वर्ष निभाई जाती है और यह 21वां भंडारा है।भंडारे में पूरी बेलती महिलाएं….

महंत गोपाल गिरी के अनुसार, उनके पूर्वजों को तत्कालीन राजा ने मंदिर का पुजारी नियुक्त किया था। उस समय राजा की ओर से पुजारी को ₹15 मासिक वेतन और पूजा-पाठ व अन्य प्रबंधन के लिए ₹10,000 वार्षिक बन्धान दिया जाता था, लेकिन वर्ष 1998 से यह वेतन व बन्धान राशि बंद है। प्रबंध समिति न होने के कारण मंदिर की सारी व्यवस्था वर्तमान में महंत स्वयं संभाल रहे हैं।
मुख्य मंदिर में विशाल शिवलिंग के साथ माता लक्ष्मी और विघ्नहर्ता गणेश की मूर्तियां हैं, जबकि अन्य मंदिरों में भैरव बाबा, भगवान शिव-पार्वती, मां त्रिपुर सुंदरी, मां काली और गणेश की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
करीब 200 साल पहले इस मंदिर की स्थापना एक अद्भुत घटना के बाद हुई। कथा के अनुसार, एक चरवाहे ने देखा कि उसकी गाय जंगल की झाड़ियों में रोज अपना दूध गिराती है। जांच करने पर वहां शिवलिंग मिला। सूचना राजा को दी गई, जिन्होंने विद्वानों से सलाह लेकर यहां मंदिर बनवाया और पुजारी नियुक्त किया।
इतिहास में गोरखा आक्रमण के दौरान इस मंदिर को तोड़ने का प्रयास हुआ। शिवलिंग को उखाड़ने में असफल होने पर उस पर प्रहार किया गया, जिससे उसका एक हिस्सा टूटकर देवलसारी में जा गिरा। वहां आज भी वह शिवलिंग स्थापित है। इसी घटना के बाद मंदिर का नाम “सत्येश्वर महादेव मंदिर” पड़ा।