कौन सुनेगा सैन्य प्रशिक्षण अकादमी से मेडिकल श्रेणी पर बाहर हुए अधिकारी कैडेट का दुःख-दर्द

कौन सुनेगा सैन्य प्रशिक्षण अकादमी से मेडिकल श्रेणी पर बाहर हुए अधिकारी कैडेट का दुःख-दर्द
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गोविन्द पुण्डीर

गढ़ निनाद समाचार* 9 जनवरी 2021

नई टिहरी। 

लगभग चार साल पहले 17 साल के युवा टॉपर रोहित कुमार चौबे ने जब एनडीए में जाने का विकल्प चुना तो न माँ-बाप और न ही रोहित ने सोचा था कि उसके साथ ऐसी अनहोनी घट सकती है जो एक उच्च रैंकिंग अधिकारी के रूप में उसे देखने की उसकी स्वंय और उसके परिवार की महत्वाकांक्षा को नेस्तनाबूद कर देगा। 

दरअसल चंडीगढ़ निवासी रोहित कुमार चौबे नवंबर 2019 में एनडीए से सिर्फ इसलिए बाहर हो गए कि प्रशिक्षण के दौरान उनके कंधे पर चोट लग गयी और वह सैन्य सेवा के लिए अयोग्य घोषित करार दिए गए। एक होनहार बेटे को अयोग्य करार दिए जाने के बाद चौबे परिवार को कितना दर्द हुआ होगा इसकी कल्पना वही कर सकता है जिस पर बीतती है। 

टॉपर रोहित जून 2016 में एनडीए में शामिल हुआ और अप्रैल 2019 में प्रशिक्षण के अंतिम वर्ष के दौरान घायल हो गया था। वह अस्पताल में भर्ती हुआ और अंत में 40% विकलांगता के साथ एनडीए से बाहर हो गया। बाहर होने के साथ ही वह सैन्य सेवा के लिए अयोग्य हो गया।

प्रशिक्षण के दौरान घायल होने के कारण सैन्य सेवा जारी रखने के लिए अनफिट घोषित किए जाने के बाद रोहित जैसे युवा लड़कों के पुनर्वास के लिए केंद्र की अतार्किक नीति पर सवाल खड़े होने लाज़मी हैं। एक रोहित ही नहीं आधिकारिक आंकड़ों की माने तो हर साल 8 से 10 ऐसे होनहार बच्चे किसी न किसी वजह से बाहर हो जाते हैं, चाहे मामला चोटिल होने का हो या अन्य। ऐसे लोगों की लड़ाई के लिए कतिपय समाजसेवी लोग/संगठन अब आगे आने लगे हैं, आना भी चाहिए। भई, रोहित हो या कोई भी आखिरकार इनके जो सपने थे, उनको साकार करने में सरकार दूसरा सम्मान जनक विकल्प भी तो तलाश सकती है।

रोहित की मां सरोज चौबे ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय रक्षा मंत्री को बड़ा कड़ा पत्र लिखकर इस मुद्दे पर अपना हस्तक्षेप करने की मांग की है। उनका भी कहना है कि ट्रेनिंग के दौरान लगी चोटों व अन्य कारणों से हर साल लगभग 8-10 कैडेट्स को सैन्य सेवा से बाहर किया जाता है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। उनके पूर्ण स्वस्थ होने पर उन्हें फिर से क्यों नहीं मौका दिया जाता है। हालांकि, अकादमी से बाहर निकलने का मतलब न केवल एक उज्ज्वल कैरियर का अंत है, बल्कि पूर्व सैनिकों जैसी कोई स्थिति नहीं है। 

ऐसे होनहार बहुत कम उम्र में यूपीएससी द्वारा आयोजित कठिनतम प्रतियोगी परीक्षाओं में से एक और सशस्त्र बलों द्वारा व्यक्तित्व परीक्षण के बाद पद पर शामिल करने के लिए अर्हता प्राप्त करते हैं। अब सवाल यह है कि जब ऐसे बेटों को चोटों के कारण अकादमी छोड़नी पड़ी तो उन्हें न केवल पूर्व सैनिक, सभ्य पेंशन या फिर से सेटलमेंट की स्थिति से वंचित किया गया। क्या यह न्यायोचित है? रोहित जैसे अनेक होनहार जांबाजों की माताओं की भावनाओं को समझना होगा। जब उसके बेटे को ग्रेड डी की नौकरी सिर्फ इसलिए दी जाती है क्योंकि उसने ट्रेनिंग में अपना सर्वश्रेष्ठ दिया और दुर्भाग्य से वह घायल हो गया।

रोहित के परिवार को अन्य NDA कैडेट्स के साथ JNU से बीएससी (कंप्यूटर साइंस) की डिग्री पूरी करने की अनुमति लेने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। जबकि अन्य कैडेटों को सैन्य अकादमियों में उनके पूर्व-कमीशन प्रशिक्षण को पूरा करने के लिए भेजा गया था। रोहित के पिता संजय कुमार चौबे का मानना है कि उनके बेटे जैसे कैडेट्स को गैर-लड़ाकू प्रकृति के अन्य वर्ग- I के पदों पर समायोजित किया जाना चाहिए था। उनका कहना है कि “वे सबसे अच्छी प्रतिभा और प्रशिक्षित मानव संसाधन हैं और उन्हें एकमुश्त पूर्व राशि या विकलांगता राशि का भुगतान करके बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए।” 

अब वक्त आ गया है कि सैन्य प्रशिक्षण अकादमी से मेडिकल श्रेणी पर बाहर हुए इन अधिकारी कैडेटों के साथ हुई मनमानी के खिलाफ नीति को बदलने के लिए और ऐसे मामलों को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को न्यायोचित नीति तो बनानी ही होगी। नहीं तो हर साल न जाने कितने रोहित सरकार की इस अदूरदर्शी नीति के शिकार होते रहेंगे। इस दिशा में देर से ही सही कदम आगे बढ़ाने वाले स्वयंसेवी संस्थाओं एवम मनीषियों को तो आगे आना ही होगा। 

इस कड़ी में एक्टिविस्ट स्वप्निल पांडेय ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर ऐसे कैडेट्स को न्याय दिलाने के लिए आगे आने का वीडियो भी जारी किया है।


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Govind Pundir

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