बिग ब्रेकिंग- लॉक डाउन अवधि का फुल वेतन देने सम्बंधी आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज, निजी कंपनियों को राहत

बिग ब्रेकिंग- लॉक डाउन अवधि का फुल वेतन देने सम्बंधी आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज, निजी कंपनियों को राहत
Supreme Court of India
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पूरे देश में प्रशासन को आदेश दिया कि पेमेंट देने में असमर्थ एंप्लॉयर्स पर केस नहीं करें

गढ़ निनाद न्यूज़, 15 मई 2020

नई दिल्ली।

कोरोना संक्रमण के चलते हुए लॉक डाउन की स्थिति में रोज़ी रोटी को मोहताज कर्मचारियों, मजदूरों के हित में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को एक सर्कुलर के जरिए निजी प्रतिष्ठानों को निर्देश दिया था कि वो राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान भी कर्मचारियों को पूरा पेमेंट दें। जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट ने पूरे भारत में किसी भी ऐसी कंपनी पर केस नहीं करने को कहा जो पूरा वेतन नहीं दे पा रही है। 

निजी कंपनियों को राहत

इस आदेश से लॉकडाउन में आर्थिक नुकसान से जूझ रहे निजी कंपनियों को बड़ी राहत मिली है।अदालत ने शुक्रवार को पूरे देश में प्रशासन को आदेश दिया कि वे उन नियोक्ताओं (एंप्लॉयर्स) के खिलाफ मुकदमा न चलाएं, जो कोविड-19 के कारण राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान कामगारों को पूरे पारिश्रमिक का भुगतान करने में असमर्थ हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब 

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, संजय किशन कौल और बी.आर. गवई की पीठ ने केंद्र और राज्यों से मजदूरी का भुगतान न कर पाने पर निजी कंपनियों, कारखानों आदि के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाने को कहा। शीर्ष अदालत ने औद्योगिक इकाइयों की ओर से दायर याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा है। ध्यान रहे कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को एक सर्कुलर के जरिए निजी प्रतिष्ठानों को निर्देश दिया था कि वो राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान भी कर्मचारियों को पूरा पेमेंट दें।

उत्पादन ठप्प:पेमेंट करने में मिले छूट

बता दें कि हाल ही में औद्योगिक इकाइयों ने अदालत से अनुरोध किया था कि लॉक डाउन के कारण उत्पादन ठप्प पड़ा है इसलिए वह भुगतान करने में असमर्थ हैं। याचिका कर्ताओं ने अदालत से कहा कि कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन की स्थिति में पेमेंट करने से पूरी तरह से छूट दी जानी चाहिए। 

मुंम्बई की कपड़ा फर्म ने की थी याचिका दायर

याचिका मुंबई के एक कपड़ा फर्म और 41 छोटे पैमाने के संगठनों के एक पंजाब आधारित समूह की ओर से दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 10(2) (I) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14,19(1)(G), 265 और 300 का उल्लंघन है, जिसे वापस लिया जाना चाहिए।


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Govind Pundir

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