नई टिहरी(14) मिनी स्विट्जरलैंड…** विद्यालयों, अस्पतालों जितने जरूरी हैं खेल मैदान *

नई टिहरी(14) मिनी स्विट्जरलैंड…** विद्यालयों, अस्पतालों जितने जरूरी हैं खेल मैदान *
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विक्रम बिष्ट*

नई टिहरी।  खेल के मैदान, हरियाली से भरे-पूरे पार्क शहर की आत्मा होते हैं। इनके बिना नागर सभ्यता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। देश का सबसे बड़ा पूंजीपति साढ़े हजार करोड़ रुपए का घर बना सकता है, लेकिन एक मिल्खा सिंह नहीं बना सकता है।

नई टिहरी दूसरे कस्बों, नगरों की तरह सामान्य ढंग से बसा-बढ़ा नगर होता और यहां खेल के मैदान, पर्याप्त संख्या में पार्क के लिए जगह नहीं होती तो किसे दोष देते! हालांकि जीवंत समाज तब भी इनके लिए कोई तरकीब निकाल लेते हैं। लेकिन यह तो बहुप्रचारित मास्टर प्लान के तहत बना आजाद भारत का पहला अनूठा पहाड़ी नगर है, यहां तो खेल के आधुनिक सुविधाओं से युक्त सर्वथा उपयुक्त मैदान, रंग बिरंगे फूलों, वनस्पतियों, मखमली दूब घास के पार्क हर मोहल्ले में होने चाहिए थे।

सवाल यह है कि क्या इन सब के लिए जगह आरक्षित-विकसित करने में दारुण कंजूसी बरती गई है या बहुत कुछ सर्वग्राही सफेदपोशों एवं सिस्टम की अंतहीन भूख की भेंट चढ़ गया है। 

टिहरी में टेनिस कोर्ट, प्रदर्शनी मैदान सबसे पहले टिहरी बांध परियोजना के टिन-टपारों के भेंट चढ़े। लेकिन वहां फिर भी खेलने, टहलने के लिए अंतिम सांस तक मैदान रहे। नई टिहरी में पार्कों के लिए कितनी जगहें आरक्षित थीं, सड़कों के किनारे, रिहायशी इलाकों में वृक्षारोपण के लिए कितनी जरूरी जगहें थीं, यह स्पष्ट तो होना ही चाहिए । 

अभी एक प्रकरण नगर की चर्चाओं में तैर रहा है। नगर पालिका परिषद यहां पार्क बना रही थी। बताते हैं कि पुनर्वास विभाग ने उस जगह को विस्थापितों के लिए आरक्षित बताकर काम रुकवा दिया है। कौन से विस्थापित ?  वह जगह सौभाग्यशाली है कि उसके नीचे सीवर टैंक बताया जा रहा है! दाढ़ी वाले बाबा का सत्संग आश्रम, अटल जी का पीएमओ और प्रमोशन प्रकरण याद आ रहा है!


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Govind Pundir

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