दुखद समाचार: नहीं रहे समाजसेवी कामरेड बच्ची राम कौंसवाल 

दुखद समाचार: नहीं रहे समाजसेवी कामरेड बच्ची राम कौंसवाल 
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देहरादून। वरिष्ठ पत्रकार, समाजसेवी कामरेड बच्ची राम कौंसवाल का देहरादून में निधन हो गया है। उनके निधन पर तमाम राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने शोक जताया है। वह अपने पीछे पत्नी जगदेश्वरी देवी, दो पुत्र और एक पुत्री को छोड़ गए है। 88 वर्ष की आयु में अपने नवादा, देहरादून स्थित घर में आज (बुधवार) दोपहर को उन्होंने अंतिम सांस ली।

टिहरी के पूर्व विधायक किशोर उपाध्याय ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि श्री बच्ची राम कंसवाल जी के निधन से सर्वहारा वर्ग ने अपना मसीहा खो दिया है। वे सदैव समाज के अन्तिम छोर पर और उपेक्षित वर्ग के हितों की रक्षा के लिये समर्पित रहे। कहा कि सामाजिक सरोकारों के लिये समर्पित एक मूर्धन्य हस्ताक्षर का जाना समाज की अपूरणीय क्षति है। टिहरी की राजनीति को उन्होंने सकारात्मक रूप से प्रभावित किया।अनेक आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल यात्रायें की। मेरी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।

कांग्रेस के जिलाध्यक्ष राकेश राणा ने भी दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में जगह देने और शोक संतप्त परिवार एवं इष्ट मित्रों को इस असहनीय दुख को सहने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है। जिला कांग्रेस कमेटी टिहरी गढ़वाल की ओर से पुण्य आत्मा को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।

उत्तराखंड कांग्रेस के महामंत्री शांति प्रसाद भट्ट ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि “टिहरी के पुरोधा नेता आदरणीय बच्ची राम कंसवाल जी के निधन से टिहरी की सामाजिक सौहार्द की राजनीति को गहरा आघात लगा है।

मैने उनके साथ एक शिष्य के रूप में काम किया, और “भूदेव लखेड़ा स्मृति मंच” में पंचायतश्री सम्मान में आपसे बहुत कुछ सीखा, आपने हमेशा प्रेरणा दी।

जर्नलिस्ट यूनियन के जिलाध्यक्ष गोविन्द पुंडीर ने कहा कि पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में उनसे काफी कुछ सीखने को मिला। जब वह श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के जिलाध्यक्ष चुने गए तो मुझे भी उनके साथ महामंत्री के तौर पर काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।

आइए उनके बारे में यह भी जानते हैं–

वह 1960 के दशक में युवावस्था में ही वामपंथी आंदोलन में शामिल हो गए थे। वह मरोड़ा गांव के प्रधान भी रहे। खास बात यह भी है कि वह पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा के गॉंव के ही हैं। 1960 के दशक में ही जब कम्युनिस्ट पार्टी संयुक्त थी, तब सदस्य बन गए थे। 1964 में विभाजन के बाद से आजीवन सीपीएम में सक्रिय रहे। जिला सचिव के बाद उत्तराखंड सचिव मंडल के सदस्य भी रहे। पार्टी और वामपंथी आंदोलन से बाहर भी एक प्रखर वक्ता के रूप में जाने जाते रहे। वह कई वर्षो तक नवभारत टाइम्स के संवाददाता भी रहे।

1970 के दशक में शिक्षक की नौकरी छोड़ उत्तर प्रदेश प्रदेश विधान परिषद (शिक्षक स्नातक सीट) का चुनाव लड़ा। तब नित्यानंद स्वामी जो बाद में उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री बने, से मात्र 27 वोट से चुनाव हारे थे। उन्होंने इसके बाद टिहरी से एक बार एमएलए और एक बार एमपी का चुनाव भी लड़ा।


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Govind Pundir

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