क्लासरूम में एआई टूल्स का स्वागत है- अमृता चंद्र राजू

क्लासरूम में एआई टूल्स का स्वागत है- अमृता चंद्र राजू
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लेख

क्या इस नए चैटबॉट से शिक्षा का अंत हो जाएगा, जैसा कि हम सभी को लगता है? पिछले कुछ समय से इस सवाल में शिक्षकों को परेशान कर रखा है।

शिक्षण प्रक्रिया का इतिहास सदियों पुराना है, और छात्रों ने हमेशा अपने मस्तिष्क के अंदर हो रहे चिंतन पर विचार किया है। लेकिन एआई टूल्स के आगमन के साथ यह अवरोध समाप्त हो गया है। आज के छात्र एआई बॉट्स, टूल्स और जेनेरेटिव प्रोग्राम्स से भरी दुनिया में ग्रेजुएट हो सकते हैं।

पिछले हफ्ते हमारे स्कूल में छात्रों के साथ एक खुली परिचर्चा आयोजित की गई, और इस दौरान हमने यह समझने का प्रयत्न किया कि छात्रों के बीच एआई टूल्स के प्रति आकर्षण कितना बढ़ गया है। हमारे पाठ्यक्रम में हमेशा से ही गहराई से चिंतन करने पर खास ध्यान दिया गया है, और छात्रों ने अपनी कक्षाओं के असाइनमेंट तैयार करने के लिए रिसर्च के हुनर में महारत हासिल की है। लेकिन एआई टूल्स की इस अदृश्य दुनिया ने उन्हें एक बेहद दमदार विकल्प दिया है।

हालाँकि, एक शिक्षक होने के नाते मैं मानती हूँ कि एआई टूल्स हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाएंगे। इनमें न केवल सुधार होगा, बल्कि वे आज की तुलना में और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाएंगे। इसके अलावा, अत्याधुनिक सुविधाओं वाले देश के सबसे बड़े संसाधन केंद्र, नीति आयोग ने एआई साक्षरता की अहमियत को स्वीकार किया है और इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता माना है। यूनेस्को ने “भारत के लिए शिक्षा रिपोर्ट की स्थिति: शिक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस” जारी की, जिसमें स्कूलों में एआई से संबंधित विषयों को प्राथमिकता देने के बारे में नीति अयोग की सिफारिशों का उल्लेख है। इतना ही नहीं, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी IX और XI कक्षाओं के पाठ्यक्रम में एआई को एक विषय के रूप में शामिल करने पर बल दिया गया है।

शिक्षक और एआई की जुगलबंदी

हमारी शिक्षा व्यवस्था बड़े पैमाने पर तकनीकी बदलावों के दौर से गुजर रही है, और शिक्षक होने के नाते हमें छात्रों का सही दिशा में मार्गदर्शन करना चाहिए। छात्रों को इन टूल्स के बारे में, साथ ही उनकी ताकत और कमजोरियों के बारे में जानने की जरूरत है, ताकि वे उनके साथ काम कर सकें। इस तरह के टूल्स छात्रों के लिए आसानी से उपलब्ध हैं, लिहाजा बच्चों को शिक्षा प्रदान करने में सहायक साधन के तौर पर एआई टूल्स को सोच-समझकर अपनाना बेहद जरूरी है। स्कूल इन एआई टूल्स के साथ काम करने का तरीका ढूंढ सकते हैं – ताकि इसकी मदद से छात्र अपना असाइनमेंट लिखने के लिए रूपरेखा तैयार कर सकें और फिर वे खुद से निबंध लिख सकें। वे अपनी कक्षा में एआई टूल्स द्वारा तैयार किए गए लेखन के नमूने का मूल्यांकन भी कर सकते हैं, एआई टूल्स के लेखन की खामियों पर चर्चा कर सकते हैं और सुझाव दे सकते हैं कि एक अच्छे लेख में कौन-सी बातें शामिल होनी चाहिए। इस तरह, इनका इस्तेमाल हमारे बच्चों के दिमाग पर हावी होने वाले जनरेटिव टूल्स की तरह नहीं किया जाएगा, बल्कि यह एक सहयोगात्मक अभ्यास होगा।

शिक्षक होने के नाते, हमें बच्चों के होमवर्क और परीक्षाओं की ग्रेडिंग पर भी काफी समय बिताना पड़ता है। ऐसे कामों में एआई मदद कर सकता है और काम तेजी से पूरा हो सकता है। स्कूल के प्रशासनिक कार्यों को एआई की मदद से स्वचालित कर दिया जाए, तो इससे शिक्षकों को अपने छात्रों के साथ बिताने के लिए अधिक समय मिलेगा, और वे छात्र की आवश्यकता को बेहतर ढंग से समझकर पाठों को उसी के अनुरूप संशोधित कर पाएंगे।

जो लोग एआई रूपी जिन्न को बोतल में वापस बंद करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि कक्षा में पढ़ाई के तरीके पर नए सिरे से विचार करने और सीखने के मॉडल का पुनर्गठन करने की तुलना में छात्रों को नियंत्रित रख पाना काफी कठिन होगा।

बिल्ली और चूहे के खेल की तरह परिस्थितियों के निर्माण से छात्रों के साथ संबंधों में प्रतिकूलता आएगी और यह संदेश जाएगा कि टेक्नोलॉजी पर भरोसा करना छात्रों के लिए उचित नहीं है।

सभी चिंताओं को खारिज करते हुए, शिक्षकों के तौर पर हमें खुले दिमाग से एआई टूल्स के बारे में विचार करना चाहिए। ऐसा लग सकता है कि वे अल्पावधि में शिक्षा के लिए चुनौती पैदा कर रहे हैं। परंतु भारतीय संदर्भ में देखा जाए, तो एआई लंबे समय में शिक्षण को छात्रों पर केंद्रित बनाने के विचार को बढ़ावा देने में सबसे अहम योगदान दे सकता है।

लेखिका: अमृता चंद्र राजू , वाइस प्रिंसिपल, द हैदराबाद पब्लिक स्कूल, बेगमपेट


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Garhninad Desk

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