विशेष: हिमाचल से गढ़वाल भ्रमण पर आए थे गुरु कैलापीर

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13-14-15 दिसम्बर को होगा तीन दिवसीय गुरु कैलापीर मेला

बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगसीर की दीपावली धूमधाम से मनाई जाएगी

टिहरी गढ़वाल 10 दिसम्बर। दीपावली के ठीक एक माह बाद यानी 11-12 दिसंबर 2023 (मंगसीर माह) को बूढाकेदार क्षेत्र में दीपावली मनाई जाएगी। साथ ही 13 से 15 दिसंबर को आस्था के प्रतीक आराध्य देव गुरु कैलापीर देवता का बलराज मेला मनाया जाएगा। इस दीपावली पर देश-विदेश के विभिन्न शहरों में रह रहे प्रवासी उत्तराखंडियों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगसीर की दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है। 

ये भी है मान्यता

इस त्योहार को दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाये जाने के पीछे मान्यता है कि माधो सिंह की तिब्बत विजय के उपलक्ष में मंगसीर बग्वाल मनायी जाती है। दूसरी मान्यता यह है कि प्रभु श्रीराम के रावण पर विजय श्री प्राप्त करने और अयोध्या लौटने की सूचना ठीक एक माह बाद मिली जिससे दीपावली के ठीक एक महीने बाद यह बग्वाल  मनायी जाती है। तीसरी मान्यता यह है कि काश्तकार अथवा स्थानीय लोगों को खेती बाड़ी के काम से फुर्सत मिल जाती है, इसलिए इस बग्वाल के उत्सव को मनाया जाता है।

सामूहिक रूप से खेलते हैं 1001 भैले 

यहां के जो भी प्रवासी महानगरों में रहते हैं उन्हें  मंगसीर की दीपावली का बेसब्री से इंतजार रहता है। दरअसल इस दीपावली को मनाने के पीछे यहां के इष्ट देवता गुरु कैलापीर हैं, जिनके नाम से मेला लगता है। बूढाकेदार क्षेत्र में दीपावली से तीन दिवसीय गुरु कैलापीर मेला 13,14,15 दिसम्बर से शुरू होगा। बताते चलें कि कार्तिक की बग्वाल (दीपावली) के ठीक एक माह बाद बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगसीर की दीपावली मनाई जाती है। इसके लिए 1001 भैले तैयार कर गांव के पास के खेतों में सामूहिक रूप से खेले जाते हैं।

देव निशानों के साथ दौड़ देखने लायक होती है

13 दिसंबर को गुरु कैलापीर देवता की झंडी को मंदिर से बाहर निकाला जाएगा। इसके बाद ग्रामीण देव निशान के साथ खेतों में दौड़ लगाएंगे। यह ऐतिहासिक दौड़ देखने लायक होती है। देवता का खेत मानते हुए इन खेतों में कोई मकान नहीं बनाता है। क्षेत्र की समृद्धि और अच्छी फसल के लिए यह दौड़ होती है। इस दौड़ को देखने के लिए आस पास के गांवो से बड़ी संख्या में लोग आते हैं।

मंदिर से बाहर निकल ग्रामीणों को देते हैं आशीर्वाद 

मेले के पहले दिन जब गुरु कैलापीर देवता मंदिर से बाहर निकलते हैं तो वह ग्रामीणों को आशीर्वाद देते हैं। स्नान आदि के बाद देवता बाहर निकाले जाते हैं। इसके बाद खेतों में दौड़ लगाने को ले जाए जाते हैं। दोपहर दो बजे देवता मंदिर से बाहर निकलते हैं और सूर्यास्त होने से पहले मंदिर में प्रवेश करते हैं।

300 साल पहले हिमाचल से गढ़वाल भ्रमण पर आए थे गुरु कैलापीर

बताते हैं कि आज से करीब 300 साल पहले हिमाचल क्षेत्र से इष्ट देवता गुरु कैलापीर गढ़वाल भ्रमण पर आए थे और विभिन्न जगहों का भ्रमण करने के बाद उन्‍हें बूढ़ाकेदार क्षेत्र की जंदवाड़ा नामक जगह बहुत ही पसंद आई। देवता ने वहां निवास करने का मन बनाया। उस समय मंगसीर (मार्गशीर्ष) का महीना था।  इसके बाद यहां के लोगों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा और ग्रामीणों ने छिलकों (चीड़ के पेड़ की दली) को जलाकर देवता का स्वागत किया। तब से मंगसीर माह में बूढ़ाकेदार क्षेत्र में दीपावली मनाई जाती आ रही है। 

व्रत तोड़ का आयोजन

मंगसीर बग्वाल पर तीन दिन का कार्यक्रम होता है। पहले दिन छोटी बग्वाल, दूसरे दिन बड़ी बग्वाल और तीसरे दिन बदराज का त्यौहार होता है। इस मौके पर ग्रामीणों द्वारा मोटा व मजबूत रस्सा बनाया जाता है जिसे ग्रामीण दो हिस्सों में बांटकर अपनी अपनी तरफ खींचते हैं। इस रस्सी को स्थानीय भाषा में व्रत भी कहते हैं। इस रस्सी को तोड़ने की प्रक्रिया को व्रततोड़ कहते हैं। इस दौरान गांव घरों में लोग सफाई करते हैं और स्वांला, पकौड़ी और पापड़ी बनाते हैं।


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Govind Pundir

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