बुधू: लौट के बुधू….

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गढ़ निनाद समाचार* 18 मार्च 2021।

नई टिहरी। उनको अपने दरबार के लिए दो रत्न 4 साल में नहीं मिल पाये। उनके 8 रत्नों को ठोक पीट ग्रहण करने में इनको चार-पांच दिन लगे तो विघ्नसंतोषियों ने खूब हाय तौबा मचाई। भूल गए कि दोनों रत्न गुजराती टकसाल में तराशे गये हैं। दोनों बेशकीमती हैं।

बुधू को भरोसा था कि दरबार के नए पुराने रत्नों को लोकलुभावन बनाने में चार- छह महीने लग ही जाएंगे। नए रत्नों का चरम सुख लेने के लिए भी तो समय चाहिए। सौ डेढ़ सौ दिन दरबार का काम परमानेंट और असली रत्नों से चलाया जाता। चुनाव वर्ष है। असली रत्नों पर आरोपों, शिकायतों के पानी का असर नहीं होता। मार्च का महीना है। जनसेवा का धन खजाने मे बचा रहता। बाकी तो प्रभु इच्छा है। लेकिन लगता है कि टकसाल ने खबरदार कर दिया है। भैये टकसाल चलाने में खर्चा लगता है वह भी पूरे सौ टके।

दरबार पर भी हजारों टकसालें आशाएं लगाई बैठीं है। दो प्रतिशत वाली, 5 प्रतिशत वाली, 10 प्रतिशत वाली और पूरी की पूरी हड़प-गड़प वाली। वे भी तो प्रभु सेवा में लगी हुई है। भूखा तो भजन कर भी लेता है। भुक्कड़ का पेट कभी नहीं भरता। फिर इनको तो वोटों की टकसाल भी चलानी है। 

समय बहुत कम है। बाकी तो सब ठीक है, लेकिन पड़ोसी पहले की नीति में सबसे पहले लात! नेपाल चैनल पाक चैनल थोड़े हैं साब। चलने देते जैसे लोकल फॉर वोकल बाय।…बुधू।


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Govind Pundir

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