विशेष: करवा चौथ व्रत-मान्यताएं और आस्था

विशेष: करवा चौथ व्रत-मान्यताएं और आस्था
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गोविन्द पुंडीर/लोकेंद्र जोशी

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत मनाया जाता है। महिलाएं इस दिन सज धज कर,अपने पति की लम्बी आयु हेतु  निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान शंकर एवं माता पार्वती से अपने पति की लम्बी आयु की कामनाएं करती है। महिलाएं रात को चाँद के दर्शन कर, चंद्रमा की पूजा अर्चना कर शुद्ध जल से अर्ध्य देने के पश्चात अपने पति के हाथों से जल ग्रहण कर अपना उपवास तोडती है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर, खूब सज धज कर रहती है और कथा वाचन कर एक दूसरे को भी सुनाती है। 

मान्यता है कि,प्राचीन समय में करवा नामक स्त्री अपने पति के साथ एक गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। नदी में मगरमच्छ उसका पैर पकड़कर अंदर ले जाने लगा। तब पति ने अपनी सुरक्षा के निमित्त अपनी पत्नी करवा को पुकारा। उसकी पत्नी ने भागकर पति की रक्षा के लिए एक धागे से मगरमच्छ को बांध दिया। धागे का एक सिरा पकड़कर उसे लेकर पति के साथ यमराज के पास पहुंची। करवा ने बड़े ही साहस के साथ यमराज के प्रश्नों का उत्तर दिया। यमराज ने करवा के साहस को देखते उसके पति को वापस कर दिया। साथ ही करवा को सुख-समृद्धि का वर दिया और कहा ‘जो स्त्री इस दिन व्रत करके करवा को याद करेगी, उनके सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा। कहा जाता है कि इस घटना के दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि थी। तभी से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है।

करवा चौथ और चांद

करवा चौथ व्रत में चन्द्रमा की पूजा की मुख्य वजह यह है कि जिस दिन भगवान गणेश जी का सिर धड़ से अलग किया गया था, उस दौरान उनका सिर सीधे चन्द्रलोक चला गया था। पुरानी मान्यताओं के मुताबिक, कहा जाता है कि उनका सिर आज भी वहां मौजूद है। चूंकि गणेश जी को वरदान था कि हर पूजा से पहले उनकी पूजा की जाएगी, इसलिए इस दिन गणेश जी की पूजा तो होती है साथ ही गणेश जी का सिर चन्द्रलोक में होने की वजह से इस दिन चन्द्रमा की खास पूजा की जाती है। 

बता दें कि इस दिन भगवान शंकर, पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। पार्वती जी की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि हर सौभाग्य व्रत की तरह पार्वती जी ने कठिन तपस्या कर भगवान शंकर जी को हासिल किया था और अखण्ड सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त किया था। जिस तरह पार्वती जी को अखण्ड सौभाग्य का वरदान मिला था।

यह भी मान्यता है…

* करवाचौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘करवा’ यानी ‘मिट्टी का बर्तन’ और ‘चौथ’ यानी ‘चतुर्थी’। इस त्योहार पर मिट्टी के बर्तन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं और इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा भाव से पूरा करती हैं। 

** कई प्राचीन कथाओं के अनुसार करवा चौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। 

ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत की परंपरा शुरू हुई। 

एक अन्य किंवदंती के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने भी द्रौपदी को करवा चौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होने लगती है। श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की। इस प्रकार करवा चौथ को लेकर कई मान्यताएं हैं। कुल मिलाकर इस दिन पत्नियां अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं और चांद आने पर अपना व्रत तोड़ती हैं।

पहाड़ों में पहले के बजाय अब करवा चौथ को लेकर महिलाओं में काफी उत्साह दिखाई देने लगा है। पिछले दस वर्षो में करवाचौथ को लेकर तीर्थनगरी से लेकर गांवों तक सुहागन महिलाओं में काफी सक्रियता बन गयी है। विशेषकर नवविवाहिताएं पहली करवा चौथ को लेकर कई दिन पहले से ही तैयारी में जुट जाती हैं। कोरोना के चलते करवा चौथ को लेकर सुहागन महिलाएं पति के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु को लेकर अधिक संवेदनशील दिखाई देती हैं।

क्या कहते हैं ज्योतिषाचार्य…

उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि इस वर्ष 24 अक्टूबर रविवार के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए तथा वर्ष पर्यंत पति पर कोई भी संकट ना आए इसके लिए करवा चौथ का व्रत रखेंगी। रविवार होने से व्रत का बहुत महत्व बढ़ गया है क्योंकि भगवान सूर्य का भी आशीर्वाद रहेगा और साथ में चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृष राशि में तथा अपने प्रिय नक्षत्र रोहिणी में संचरण करेंगे इसलिए अति विशिष्ट संयोग बन रहा है।

24 अक्टूबर को प्रातः काल 3:00 बजे से कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि प्रारंभ हो जाएगी जो 25 अक्टूबर को प्रातः काल 5:43 तक रहेगी। रविवार के दिन उदय व्यापिनी चतुर्थी और चंद्र व्यापिनी भी चतुर्थी होने से इस व्रत का बहुत महत्व हो रहा है ऐसा विशेष संयोग लगभग 5 वर्ष के बाद पड़ रहा है। 

डॉ घिल्डियाल के अनुसार चंद्रोदय का समय सायंकाल 8:10 पर रहेगा और पूजन का अति विशिष्ट समय सायंकाल 6:58 से 8:56 तक रहेगा उस समय महिलाएं भगवान गणेश सहित कार्तिकेय माता पार्वती और भगवान शिव का पूजन करें चंद्रमा को दूधिया जल से अर्घ्य देकर पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें भोजन करते समय ध्यान रखें 5 कौर मीठा भोजन ले उसके बाद नमक ले सकते हैं।


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Govind Pundir

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