मैं विद्यार्थी नहीं,मज़दूर हूँ!

मैं विद्यार्थी नहीं,मज़दूर हूँ!
Please click to share News

ओ कवियो! ओ लेखको!
किसके लिए लिख रहे हो?

मेरी दादी बन्नी-मजदूरी करती थी
अब मेरी माँ करती है

मेरे दादा मज़दूर थे
मेरे पिता विकलांग हैं पर मज़दूर हैं
अतः मैं विद्यार्थी से अधिक मज़दूर हूँ
पुस्तक से अधिक पेट की चिंता है मुझे

जितनी छात्रवृत्ति मिलती है ,
उससे काफ़ी अधिक है
उनकी एक किताब की कीमत
मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि
जिन्हें अपना गुरु मानता हूँ
उन्हें ख़रीद कर कभी नहीं पढूँगा
और जिन्हें अपना शिष्य मानता हूँ
उन्हें अपनी किताब ख़रीदने नहीं दूँगा !
-गोलेन्द्र पटेल (चर्चित कवि व छात्र, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी)


Please click to share News

Garhninad Desk

Related News Stories