पुलिस और युवाओं को भिड़ाना माफिया तंत्र की साजिश का हिस्सा तो नहीं-?

पुलिस और युवाओं को भिड़ाना माफिया तंत्र की साजिश का हिस्सा तो नहीं-?
Please click to share News


— लोकेन्द्र जोशी, राज्य आंदोलनकारी।
देहरादून में युवाओं के साथ घटी, घटना से तो यही साबित हुआ कि, राज्य के युवाओं को रोजगार देने के बजाय उन्हें पुलिस के आमने-सामने कर पिटवाओ और राज्य भर के युवाओं और पुलिस महकमा के बीच घृणा फैलाओ! व रोजगार के स्थान पर अपने अधिकारों की बात करने वाले बेरोजगार युवाओं को मुकदमों में फंसा कर जेल की हवा खिलाओ और इतना भय पैदा करो कि दुबारा कोई सरकार के खिलाफ आवाज न उठा सके। ताकि माफिया तंत्र खुली हवा में बेरोक टोक अपना धंधा चला सके। ,पुलिस और युवाओं को भिड़ाना माफिया तंत्र की साजिश का हिस्सा तो नहीं- ? इस पर लगा पर्दा भी जाँच से हटाना चाहिए।
काफी संभावनाएं है कि बेरोजगारों के साथ पुलिस बरबर्रता एक साजिश का हिस्सा है, जो कि माफियाओं के इशारे पर हुआ होगा। उन्होंने युवा वर्ग और पुलिस को आपस में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ाने का षडयंत्र रचा, ताकि शैतान बना भ्रष्ट और माफिया तंत्र तमाशा देखते हुए अपनी फसल काटते रहे।
राज्य के पुलिस विभाग का बड़ा वर्ग युवा ही है, जो अधिकांशतः गरीब घरानों से तालुक रखते हैं।, जो कि राज्य के विकास पक्षधर हैं,माफिया-तंत्र से त्रस्त हैं।वह यह भली-भाँति जानता है कि उनके खिलाफ आवाज उठाने वाले भी गरीब घरानों से ही वास्ता रखते हैं। और वे जानते हैं इन मध्यम वर्ग का क्या? गरीब घरानों के युवाओं के पास भी नारे-धरनों के अलावा करने को कुछ भी नहीं। थक-हारकर अवसाद के साथ खाली हाथ लौटने के सिवाय इनके भाग्य में कुछ भी तो नहीं बचता!
उत्तराखंड राज्य का बड़ा और बर्षों बर्षों का संघर्ष और उसके गठन के बाद की हिस्ट्री सबके सामने हैं। संघर्ष किसका और मलाई के हिस्सेदार कौन!?यह सब जग जाहिर है।
इसलिए माफिया-तंत्र को पुलिस और बेरोजगारों अथवा युवा वर्ग से कोई लेना-देना नहीं। ज्यादा से ज्यादा कम पैसे लेकर दो-चार को सरकारी दफ्तर में नौकरी का झुन झुना पकड़ा कर, कर्मचारीयों के बीच से कुछ लड़ाकूओं को, बेरोजगार युवाओं के खिलाफ खड़ा कर देंगे। विधान सभा भर्ती घोटाले के पीड़ित इसके बड़ा उदाहरण हैं। जिससे माफियों के दोनों हाथों लडडू!
पिछले वर्षों स्थाई राजधानी के सवाल पर गैरसैंण में भी जनता पर भारी पुलिस बल का प्रयोग किया जाना भी इसी साजिश का हिस्सा है। अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद की राज्य की सरकारी एजेंसी में घुले मिले राज्य विरोधी वफादारी आदि घटनाओं से सबक लेकर,पहाड़ के पूरे जनमानस को समझना होगा!
परंतु यह तो साफ है कि यदि उत्तराखंड राज्य की स्थाई राजधानी देहरादून ही रही, तो राज्य से भ्रष्टाचार समाप्त होना कल्पना मात्र है। मान लिया जाय कि इस बार भारी जन दबाव के कारण,सी.बी.आई. जाँच हो भी जाएगी, जो कि होनी भी चाहिए, तो भविष्य की क्या गारन्टी है कि , आज की पुनरावृत्ति नहीं होगी?
भारतीय संसद में उत्तराखंड राज्य की स्थापना के दिन ही राज्य की दुर्दशा के बीज बो लिए गए थे, जब अस्थाई राजधानी देहरादून बनी और स्थाई राजधानी का मामला चुनी जाने वाली भावी सरकार पर छोड़ दिया गया। और अंतरिम सरकार के मुख्यमंत्री पहाड़ की जन भावनाओं के विपरीत बना दिए गए।
आज उत्तराखंड के 22 वर्षों में भ्रष्टाचार का संघर्ष माफियाओं की बदौलत जिंदाबाद होकर राज्य में फल-फूल गया।और उसकी फसल लहलहा कर पूरे पहाड़ के स्वछ और चरित्रवान पहाड़ हिस्ट्री को चिढ़ा कर मजे लूट रहे हैं।परिणामस्वरूप, बाहरी राज्यों का माफिया-तंत्र यहाँ जल, जंगल, जमीन,माफियाओं के साथ साथ शराब माफियाओं से लेकर राज्य के मूल निवासियों के रोजगार जैसे अन्य सभी संवैधानिक अधिकारों जैसे मूल निवास समाप्ति आदि पर पर आए दिन डाका डाल रहे हैं।
पोस्ट ऑफिस भर्ती हो, या एम्स अथवा लोक सेवा आयोग जैसे पवित्र संवैधानिक संस्था की गरिमा! सभी पर डाका पड़ चुका है। जिनकी जड़ें और अड्डे तराई क्षेत्र और पडो़सी राज्यों से ही मजबूत हो रहे हैं। और उनके सामने धाकड़ कहे जा रही धामी नेतृत्व की सरकार मजबूर हो गयी है। भविष्य में इससे भी बुरे परिणाम होंगे, यह संकेत वर्तमान दे रहा है।
किंतु चिंता की बात यह है कि युवा वर्ग गलत रास्तों पर चलने के लिए मजबूर होगा तो उत्तर प्रदेश से अलग होकर पृथक पर्वतीय राज्य की कल्पना व्यर्थ ही होगी। बर्षो बर्षों के संघर्षों और 42 शाहदातों के साथ सहा गया उत्पीड़न सब बेकार हुआ।तब निराशा के अलावा कुछ भी नहीं रहेगा।
हमारा मानना है कि समय रहते राजधानी एवं उच्च न्यायालय सहित राज्य के सभी बड़े कार्यालयों को तराई से हटाकर पर्वतीय क्षेत्रों में स्थापित करना चाहिए। नहीं तो उत्तराखंड राज्य बिहार से कई कदम आगे बढ़ जाएगा। देहरादून में पुलिस की बर्बरतापूर्ण कार्यवाही से पहाड़ की शांत वादियों का युवा भी प्रतिशोधपूर्ण दिशा में कदम रखने के लिए कहीं विवश हुआ तो यह दुर्भाग्यपूर्ण ही होगा।


Please click to share News

Govind Pundir

Related News Stories