समान नागरिक संहिता- उत्तराखंड एक पहल :  दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की आमजनसभा में चर्चा और  सुझाव : सी.ए. राजेश्वर  प्रसाद पैन्यूली 

समान नागरिक संहिता- उत्तराखंड एक पहल :  दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की आमजनसभा में चर्चा और  सुझाव : सी.ए. राजेश्वर  प्रसाद पैन्यूली 
Please click to share News

नई दिल्ली 14 जून 202समान नागरिक संहिता ( CCC/ UCC)  में विभिन्न समुदायों के लिए लागू अलग अलग कानूनों को जो आज के दौर में असंगत हैं को व्यवस्थित करने का समझदारी भरा साहसिक प्रयास कहा जा सकता है ।  इन कानूनों में हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, भारतीय तलाक अधिनियम, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम आदि सभी को  शामिल किया गया है|  हमे ध्यान देना होगा की शरिया (इस्लामी कानून) जैसे कुछ कानून जो पहले से ही संहिताबद्ध नहीं हैं और पूरी तरह से धार्मिक ग्रंथों व धार्मिक परम्पराओ पर आधारित रहे है। जिसमे सुधार के अवसर और आधुनिक समाज के बदलाओं के साथ तालमेल बमुश्किल ही होता है को भी प्रमुखता से शामिल किया गया है जो की काफी चुनौती भरा है ।  

समान नागरिक संहिता के प्रस्तावों में एक विवाह, पैतृक संपत्ति की विरासत पर पुत्र और पुत्री के लिए समान अधिकार और वसीयत दान,  संरक्षकता और अभिरक्षा के बंटवारे के संबंध में  सभी धर्मों, जाति  संप्रदायों के सदस्यों को एक ही तरह के सुविधाजनक कानूनी अधिकार की समभाव  अवधारणा को पोषित किया गया है। हालाँकि, मुख्य हिन्दू समाज जो की “हिंदू कोड बिल” से निर्देशित होते है की परिस्थितियों में इस समान नागरिक संहिता के प्रस्तावों से शायद बहुत अधिक अंतर न आए, लेकिन “वृहद भारतीय समाज” में सकारात्मक परिवर्तन की पहल निश्चित है।

‘धर्मनिरपेक्षता’ के मूल तत्व को भी प्रस्तावित “समान नागरिक संहिता” बिल सार्थक अर्थ दे सकती है। क्योंकी, वर्तमान में, विभिन्न नागरिक संहिताओं के मिश्रण के साथ, अलग-अलग नागरिकों को उनके धर्म के आधार पर अलग-अलग व्यवहार की व्यवस्था है। “समान नागरिक संहिता” समाज के सभी नागरिकों को “समान अधिकार व सुविधाओ” की कानूनी पैरवी करता है। जो की संविधान के अनुच्छेद 44 की विवेचना के अनुसार संविधान सम्मत है। साथ ही एक बड़ा तबका जो इसे गैर इस्लामिक कह कर “नागरिकों के मौलिक अधिकारों” पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है उन्हे यह समझना होगा की इस्लामिक विद्वान श्री कुतुब किदवई के अध्ययन के नतीजों के अनुसार भी मुस्लिम पर्सनल लॉ पूरी तरह से इस्लामिक न होकर “एंग्लो-मोहम्मडन” हैं।     

भारतीय जनता पार्टी  (बीजेपी ) ने अपने चुनावी घोषणा पत्रों में समय समय पर वरीयता के साथ समान नागरिक संहिता के मुद्दे  को उठाती रही है। वास्तव में भाजपा देश की पहली पार्टी है जो चुनावी घोषणा पत्रों के मुद्दों को तमाम गतिरोधों के बावजूद  संवैधानिक – बौद्ध्यीक- सामाजिक समरसता के साथ संतुलन बनाते हुवे पूरा करती अवश्य है। उदाहरण स्वरूप गोवा भारत का एकमात्र राज्य है जहां सन् 1961 से लागू मूल रूप से लागू पुर्तगाली नागरिक संहिता की जगह एक समान नागरिक संहिता (Unified Civil Code) लागू की गई है। 

यूसीसी को 1998 और 2019 के चुनावों के लिए बीजेपी के घोषणापत्र में शामिल किया गया था और यहां तक ​​कि नारायण लाल पंचारिया द्वारा नवंबर 2019 में पहली बार संसद में पेश करने का प्रस्ताव भी रखा गया था।  समान नागरिक संहिता( Unified Civil Code) कि वर्तमान स्तर तक पहुँचने की यात्रा तमाम संवैधानिक बहसो-चर्चाओं, याचिकाओ, प्रावधानों, ऐतिहासिक उदाहरणों, धार्मिक-सांस्कृतिक आलोचनाओ के पड़ावों से गुजरते हुवे धार्मिक समानता और महिलाओं के लिए सम्मानजनक समान अधिकार प्राप्त करने के साधन के रूप में “समान नागरिक संहिता” की प्रगति जारी है।

इसी क्रम में ध्यान देने योग्य विषय यह भी है की मार्च 2022 में, पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड सरकार ने राज्य में यूसीसी के कार्यान्वयन पर काम करने का फैसला किया।  भाजपा की बौद्धयीक विंग “स्वयं सेवक संघ”  के नेतृत्व ने भी  इस पर सैद्धांतिक सहमति देते हुवे कहा है की “समान नागरिक संहिता (यूसीसी) सभी समुदायों के लिए फायदेमंद” होनी चाहिए और “सुविचारित” होना चाहिए-जल्दबाजी नहीं।

जाहिर है की सुविचारित, विशेष रूप से समाज के सबसे कमजोर तबके तक  धर्मनिरपेक्षता के मूल तत्व के साथ ही नागरिक सम्मान, स्वतंत्रता, सामाजिक गौरव अर्थ- संपती-संतान-विवाह आदि से जुड़े कानूनी अधिकारों का भारतीय गणराज्य के अन्य “नागरिकों” की तरह लाभ उठा सकने की दिशा में, समान नागरिक संहिता( Unified Civil Code) सबसे सशक्त कदम साबित होगा। 

विशेषज्ञ समिति की अध्यक्षता श्री शत्रुघ्न सिंह-आईएएस ने, प्रतिभाग श्री मनु गौर, सेवानिवृत जस्टिस श्री मेहता, श्री रंजन प्रकाश देसाई, सुरेखा डँगवाल जी, उपकुलपति गढ़वाल विश्वविध्यालय द्वारा किया गया।

बैठक में बताया गया की लगभग साढ़े तीन लाख लोगों ने अपनी लिखित प्रतिक्रिया “समान नागरिक संहिता के लिए दी है। अब तक इस विषय पर 37 पब्लिक मीटिंग की जा चुकी है और इस विषय पर आज दिल्ली में यह सबसे अधिक प्रतिभगियों के साथ आयोजित या इस विषय पर यह अंतिम बैठक है।


Please click to share News

Garhninad Desk

Related News Stories