एड्स की रोकथाम एवं जागरूकता में युवाओं का योगदान विषय पर एक दिवसीय सेमिनार

एड्स की रोकथाम एवं जागरूकता में युवाओं का योगदान विषय पर एक दिवसीय सेमिनार
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ऋषिकेश 03 दिसम्बर। पंडित ललित मोहन शर्मा श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय परिसर ऋषिकेश में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई एवं रेड रिबन क्लब के संयुक्त तत्वाधान मे विश्व एड्स दिवस के अवसर पर एड्स की रोकथाम एवं जागरूकता में युवाओं का योगदान विषय पर एक दिवसीय सेमिनार एवं नुक्कड नाटक, स्लोगन, पोस्टर प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।

सेमिनार की अध्यक्षता परिसर के निदेशक प्रो0 महावीर सिंह रावत द्वारा की गई । उन्होंने कहा की राष्ट्र के सर्वागीण विकास में युवाओं का योगदान सबसे महत्वपूर्ण होता है। आज देश को एड्स जैसी बीमारी से लड़ने के लिए युवा शक्ति की जरूरत है। ऐसे में युवाओ को चाहिए कि वे इस बीमारी की रोकथाम के प्रति जानकारी प्राप्त कर समाज के लिए रोल मॉडल बनकर उभरे।पिछले कई वर्षों से एड्स और एचआईवी को लेकर लोगों में जागरूकता पैदा करने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन फिर भी विड़म्बना ही है कि बहुत से लोग इसे आज भी छूआछूत से फैलने वाला संक्रामक रोग मानते हैं। एड्स तथा एचआईवी के संबंध में यह जान लेना बेहद जरूरी है कि इस संक्रमण के शिकार व्यक्ति के साथ हाथ मिलाने, उसके साथ भोजन करने, स्नान करने या उसके पसीने के सम्पर्क में आने से यह रोग नहीं फैलता। इसलिए एड्स के प्रति जागरूकता पैदा किए जाने की आवश्यकता तो है ही, समाज में ऐसे मरीजों के प्रति हमदर्दी और प्यार का भाव होना तथा ऐसे रोगियों का हौसला बढ़ाए जाने की भी जरूरत है। ऐसे बहुत से मामलों में आज भी जब यह देखा जाता है कि इस तरह के मरीज न केवल अपने आस-पड़ोस के लोगों के बल्कि अपने ही परिजनों के भेदभाव का भी शिकार होते हैं तो चिंता की स्थिति उत्पन्न होती है। इसलिए इस बीमारी का कारगर इलाज खोजे जाने के प्रयासों के साथ-साथ ऐसे मरीजों के प्रति समाज और परिजनों की सोच को बदलने के लिए अपेक्षित कदम उठाए जाने की भी सख्त जरूरत है।

राष्ट्रीय सेवा योजना के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी एवं सेमिनार के कन्वीनर डॉ. अशोक कुमार मैन्दोला ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा आज के समय जरूरत इस बात की है कि सरकारें इस दिशा में अपना नजरिया बदलें ताकि एड्स जैसी महामारी से मुकम्मल तरीके से मोर्चा लिया जा सके। युवा देश का आधार होते है। आज देश को युवा शक्ति की जरूरत है, क्योंकि हमारे समाज में एड्स जैसी खतरनाक बीमारी दिनोंदिन बढ़ रहीं है। देश से इस बीमारी को जड़ से उखाड़ फेंकने में युवा भागीदारी सुनिश्चित करे तभी इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। इस बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए जागरूकता एक मात्र हथियार है। उन्होंने युवाओ को यह शपथ लेने के लिए प्रेरित किया कि वे जहा भी रहे या जाएं इस बीमारी के रोकथाम के प्रति लोगों को जागरूक करते रहे। रक्तदान परोपकार का सबसे बड़ा कार्य है। जो व्यक्ति रक्तदान कर दूसरों का जीवन बचाता है वह रक्त दाता रक्त प्राप्त कर्ता के लिए भगवान के बाद दूसरा व्यक्ति बन जाता है।

उन्होने विद्यार्थियों से कहा कि अपने जीवन में रक्तदान को एक आदत के रूप में विकसित करें।ऐसा करके वे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में देश के विकास में अपना योगदान देते है। यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में एड्स पीडि़त सर्वाधिक संख्या किशोरों की है, जिनमें से दस लाख से भी अधिक किशोर दुनिया के छह देशों दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, केन्या, मोजांबिक, तंजानिया तथा भारत में हैं।अगर एड्स के कारणों पर नजर डालें तो मानव शरीर में एचआईवी का वायरस फैलने का मुख्य कारण हालांकि असुरक्षित सेक्स तथा अधिक पार्टनरों के साथ शारीरिक संबंध बनाना ही है लेकिन कई बार कुछ अन्य कारण भी एचआईवी संक्रमण के लिए जिम्मेदार होते हैं। शारीरिक संबंधों द्वारा 70-80 फीसदी, संक्रमित इंजेक्शन या सुईयों द्वारा 5-10 फीसदी, संक्रमित रक्त उत्पादों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया के जरिये 3-5 फीसदी तथा गर्भवती मां के जरिये बच्चे को 5-10 फीसदी तक एचआईवी संक्रमण की संभावना रहती है।सुखद तथ्य यह है कि एंटी-रेट्रोवायरल उपचार पद्धति को अपनाए जाने के बाद एड्स से जुड़ी मौतों का आंकड़ा साल दर साल कम होने लगा है। इसलिए लोगों को इस दिशा में जागरूक किए जाने की भी जरूरत है कि एड्स भले ही अब तक एक लाइलाज बीमारी ही है, लेकिन फिर भी एड्स पीड़ित व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है और एचआईवी संक्रमित हो जाने का अर्थ बहुत जल्द मृत्यु कदापि नहीं है बल्कि उचित दवाओं और निरन्तर चिकित्सीय परामर्श से ऐसा मरीज काफी लंबा और स्वस्थ जीवन जी सकता है। डॉ पुष्पांजलि आर्य ने सेमिनार में छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा ज्यादातर मामलों मे एचआईवी संक्रमण होने पर उन्हें घर छोड़ने को कह दिया जाता है। पत्नियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने एचआईवी पॉजिटिव पति का साथ निभाएं लेकिन पति कम ही मामलों में वफादार साबित होते हैं। इस तरह की समस्याओं के प्रति नजरिया बदलने की जरूरत है। क्योंकि यह सुखद संदेश है कि लोगों में जागरूकता और प्रयास से संक्रमित मामलों में कमी आ रही है।

डॉ पारूल मिश्रा ने अपने संबोधन में कहा उत्तराखंड की राज्य एडस समिति द्वारा किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा की और कहा की लाइलाज होने के बावजूद भी एड्स पीड़ित व्यक्ति पोष्टिक भोजन व उचित दवाइयों से स्वस्थ जीवन बिता सकता है ।मंच का संचालन कार्यक्रम अधिकारी डॉ प्रीति खंडूरी द्वारा किया गया उन्होंने अपने संबोधन में अध्यक्ष एवं सभी अतिथि एवं विषय विशेषज्ञों का आभार व्यक्त करते हुए कहा एचआइवी के लक्षण बेहद सामान्य से हैं, जिन्हें लोग नजरअंदाज कर देते हैं। एड्स में लगातार तेज बुखार, हमेशा थकान व नींद आना, भूख में कमी, रात में सोते समय पसीना आना, दस्त लगना व वजन में कमी होना इसके प्रमुख लक्षण हो सकते हैं। इस संक्रमण की स्थिति में त्वचा पर चक्कते भी पड़ सकते हैं तथा ग्रंथियों में सूजन आ सकती है। किसी व्यक्ति को अगर खुद के एचआइवी संक्रमित होने का शक हो और ऐसे लक्षण भी दिखें तो उसे एचआइवी संक्रमण की जांच जरूर करा लेनी चाहिए। इस अवसर पर सुषमा ,पीयूष गुप्ता ,पूजा वर्मा ,प्रतिभा पांडे ,काजल कौर, वैष्णवी ,साक्षी नैथानी, रोहित सिंह, रजत नेगी, पवन, तुषार ,साहिल ,सोनी वर्मा ,निकिता , माधुरी साहनीआदि उपस्थित रहे।


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Govind Pundir

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