उत्तराखंड राज्य आंदोलन, भुलाये गये नींव के पत्थर-4

उत्तराखंड राज्य आंदोलन, भुलाये गये नींव के पत्थर-4
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विक्रम बिष्ट

गढ़ निनाद समाचार* 24 फरवरी 2021

नई टिहरी। समय के साथ कई नीतियां और रीतियां कुरीतियों में बदल जाती हैं। जातिवाद और लिंगभेद ने भारत को दुर्बल कर गुलाम बना दिया था । चंट चालाक और धूर्त लोग इसका फायदा उठाते रहे हैं और येन केन प्रकारेण से यथास्थिति बनाए रखने की कोशिशों में जुटे रहते हैं। राजनीति इसका सबसे सुलभ और व्यापक माध्यम है। लेकिन जिस प्रबुद्ध वर्ग पर समाज को सही दिशा देने की ज़िम्मेदारी है, इसने उत्तराखंड की एकता में बाधक ख़तडू जैसी प्रेत बाधाओं को सच के आईने से निर्मूल साबित करने की कितनी कोशिशें की हैं। सच यही है एक बड़ा वर्ग इसकी आड़ में निहित स्वार्थ साधना में लिप्त रहा आया है।

उत्तराखंड आंदोलन के चर्मोत्कर्ष दौर की अराजकता और बिखराव का राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के साथ यह मूल कारण रहा है। शासकों के बीच छोटे बड़े संघर्षों की कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है। उत्तराखंड में यह होता रहा है। लेकिन किसी ख़तडू नामक राजा का गैयडा राजा से युद्ध का कोई जिक्र कहीं नहीं है। निर्बल तबके के लोगों को ख़तडू,जुठू और यहां तक कुत्ता जैसे नाम देने की शर्मनाक सच्चाइयां हैं। राजा का नाम ख़तडू रहा हो यह कल्पना से भी परे है।

उत्तराखंड राज्य की ठोस अवधारणा बेशक बहुत बाद की है । लेकिन शासक शोषक वर्ग और इसकी प्रतिरोधी शक्तियों के बीच संधर्ष बहुत पहले से जारी रहा है। श्री देव सुमन का संकल्प और गोविन्द प्रसाद घिल्डियाल का ख़तडू प्रेत की असलियत को सामने लाना वस्तुतः जनपक्षीय कोशिशों की महत्वपूर्ण घटनाएं  हैं। इसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए। 

शहीदों के सपनों का उत्तराखंड, अटल जी ने दिया, मोदी जी से संवारेंगे जैसे परस्पर विरोधाभासी निरर्थक जुमले राज्य की मूल अवधारणा और लंबे संघर्ष की वास्तविकता को नकारते हैं। 

बद्री दत्त पांडे, पीसी जोशी से लेकर  इंद्रमणि बड़ोनी तक आंदोलन के नेताओं को इतिहास में कुछ जगह मिली है हालांकि यह नाकाफी है। लेकिन अपने भविष्य को दाँव पर लगाकर राज्य आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने वाले हजारों गुमनाम या अज्ञात लोग रहे हैं। 1994 में ही दूरस्थ ग गांवों से लेकर शिक्षकों,कर्मचारियों ने बहुत कुछ दाँव पर लगाकर आंदोलन को निर्णायक ताकत दी है। जैसा कि हमने शुरू में लिखा है टिहरी गढ़वाल में ही राज्य द्वारा चिन्हित आंदोलनकारियों की संख्या लगभग साढ़े चार सौ है। यहां हम उनके योगदान को याद करेंगे जो राज्य की नजर में आंदोलनकारी नहीं हैं।….जारी।


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Govind Pundir

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